प्राय: हर घर में रसोई होती है जहां हल्दी, हींग, धनिया, काली मिर्च, आदि सभी वस्तुएं मौजूद रहती हैं। कोई भी सब्जी इन मसालों के बिना स्वादहीन रहती है। ये मसाले न केवल स्वाद बढ़ाते हैं वरन कई प्रकार से उपयोगी भी होते हैं। हल्दी, चाहे उत्तरी भारत हो या दक्षिणी भारत सभी जगह प्रधानता से पाई जाती है। यह रसोईघर के मसालों का एक अनिवार्य अंग है। हल्दी के विभिन्न भाषाओं में भिन्न भिन्न नाम दिये गये हैं। वानस्पतिक भाषा में इसे कुरकुमा लोंगा, संस्कृत में हरिद्रा, हिन्दी में हल्दी, मराठी में हलद, गुजराती में हलदर, बंगाली में हलुद , तेलगु में पसुपु, तमिल में मजल, मलयालम में मनजल, फारसी में जर्दचोब, अंग्रेजी में टरमेरिक, अरबी में डरूफस्सुकर तथा पंजाबी में हलदर कहते हैं। प्राचीन ग्रंथों में भी हल्दी का महत्व दिया गया है भावप्रकाश निघण्टु में लिखा है:-
हरिद्रा: कटुका तिल्ला रूक्षीष्णा कफपित्तनुत।
वपर्या: खरदोष मेहरात्र शोध पाण्डु वपापटा॥
हल्दी की वैसे तो कई जातियां है, परंतु सामान्यत: दो जातियां प्रमुख रूप से व्यवहार में आती हैं। प्रथम वह हल्दी जो दैनिक जीवन में प्रत्येक घर में दाल सब्जी में प्रयोग की जाती है तथा द्वितीय दारू हल्दी झाड़ के रूप में पर्वतीय क्षेत्रों में अधिक पाई जाती है। यह गुल्म जाति की वनस्पति है। हल्दी एक सर्वविदित पदार्थ है यह शरीर की त्वचा के रंग को उज्जवल करती है अत: इसे हरि वर्ण द्राति संशोध्यति कहा गया है। अनेक गुणों के अनुसार संस्कृत में इसे कई गुणवाचक नामों से पुकारा जाता है, जैसे 1. सोने जैसा पीतवर्ण वाली होने से कांचनी, 2. वर्ण को गोरा करने वाली होने से गोरी, 3. कृमिनाशक होने से कृमिन्धा, 4. उबटन लेप आदि प्रसाधनों तथा स्त्री रोगों में उपयोगी होने से योषितया, 5. वर्ण को सुंदर करने वाली होने से वखर्णिनी तथा 6. बाजारों की शोभा बढ़ाने वाली होने से हट्टा विलासिनी आदि। हल्दी का उपयोग केवल शाक, दाल आदि खाद्य व्यंजनों में ही सीमित नहीं है। वरन इसका उपयोग कई औषधियों एवं घरेलू नुस्खों में भी किया जाता है। हल्दी में वे समस्त गुण विद्यमान हैं जो मानव शरीर को स्वास्थ्य एवं सुदृढ़ता प्रदान करने के लिये आवश्यक हैं। इसका उपयोग औषधि के रूप में सर्दी जुकाम, गले की खराश, ट्रांसिलाइटिस, कफ विकार, त्वचा विकार, प्रमेह कामला, यकृत दोष, अतिसार, संग्रहणी घाव तथा नेत्र की व्याधियों को दूर करने में होता है। संस्कृत में हल्दी को क्रिधना भी कहते हैं, जिसका अर्थ है कीटाणुनाशक। अत: हल्दी का प्रयोग कीटाणुओं को नष्ट करने में ऐंटीबायोटिक के रूप में होता है। कई धार्मिक कार्यो में भी हल्दी का उपयोग होता है। व्यक्ति का जब यज्ञोपवीत होता है तो यज्ञोपवीत को पवित्र करने हेतु हल्दी के छींटे लगाये जाते हैं।
हल्दी औषधि के रूप में:- चेहरे की त्वचा मुंहासों और दाग धब्बों से कुरूप हो जाती है। पिसी हल्दी एक चम्मच, दो चम्मच बेसन, सन्तरे के सूखे छिलकों का बारीक पाउडर, आधा चम्मच दूध की मलाई व थोड़ा पानी मिलाकर गाढ़ा लेप बनाकर चेहरे पर लेप कर लें तथा 10 मिनट बाद गुनगुने गर्म पानी से चेहरा धो लें। नियमित रूप से यह प्रयोग करने पर एक माह में चेहरे के दाग धब्बे दूर होने लगते हैं।
चोट एवं सूजन- शरीर पर चोट लगने से सूजन आ जाती है। पिसी हुई हल्दी में थोड़ा गीला चूना मिलाकर लेप बना लें तथा चोट की जगह पर लगायें। इसी प्रकार एक गिलास दूध में एक चम्मच पिसी हल्दी 10 ग्राम गुड़ घोलकर पीयें। इन दोनों प्रयोगों से चोट की सूजन एवं पीड़ा दूर होती है।
गले की खराश- गले में खराश होने व टॉन्सिल्स में सूजन होने पर रात को सोते समय आधा कप गर्म दूध में आधा चम्मच पिसी हुई हल्दी घोलकर पी लें फिर एक कप गर्म दूध और पी लें परंतु ठंडा पानी न पियें। 3-4 दिन में ही गले की खराश व टॉन्सिल्स की सूजन दूर होती है।
मसूड़ों की खराबी-आधा चम्मच पिसी हुई हल्दी, पाव चम्मच पिसा नमक एवं 4-5 बूंद सरसों का तेल मिलाकर मसूड़ों पर लेप करने से दांत एवं मसूड़ों के सभी कष्ट दूर होते हैं।
नेत्र दोषों में- कन्जक्टिवाइटिस (नेत्राभिष्टानंद) में एक चम्मच पिसी हल्दी को दो कप पानी में डालकर उबालें एवं आधा कप पानी शेष रहने पर उसे कपड़े से छानकर शीशी में डाल लें तथा ड्रापर से दो-दो बूंद आंखों में डालने से यह रोग दूर होता है।
अस्थमा (दमा) रोग में-दमे का अटैक होने पर पांच ग्र्राम पिसी हल्दी को पाव भर पानी में मिलाकर पीने से लाभ मिलता है।
बहता खून रोकने में- किसी अंग के कटने पर बहते हुए खून को रोकने के लिये कटे अंग पर पिसी हल्दी की चुटकी भरने से बहता खून बंद हो जाएगा।
पेट दर्द में- दही या छाछ में हल्दी मिलाकर पीने से पेट का दर्द दूर होता है। दही या छाछ पेट को साफ करती है, जबकि हल्दी पाचन क्रिया को ठीक करती है।
मधुमेह रोग में- बारह ग्राम शहद में तीन ग्राम पिसी हल्दी मिलाकर थोड़ा थोड़ा लेकर चाटना चाहिए। यह क्रिया तीन माह तक करने एवं साथ में दो करेलों का रस पीने से इस रोग को दूर करने में सहायता मिलती है।
कान से पस आने पर-हल्दी को बारीक पीसकर सरसों के शुद्घ तेल में मिलाकर गर्म कर शीशी में भर लें व दिन में 2-3 बार कान में डालें तथा तीली पर रूई लगाकर पस निकाल लें इस क्रिया को 15 दिन तक करने से लाभ मिलता है।
गठिया (आमवात) रोग में- संस्कृत में इस रोग को आमवात कहते हैं इससे जोड़ों में दर्द रहता है। इसकी चिकित्सा के लिये एक किलो हल्दी की गांठों को आग में भून लें व फिर उसे आग से निकालकर उसे पीस कर इसमें एक किलो गुड़ मिलाकर लड्डू बना लें। इसके अतिरिक्त काजू भी डाल सकते हैं। प्रतिदिन सुबह तुलसी या नींबू की चाय के साथ इसका सेवन करने से आराम मिलता है।
हिचकी आने पर- पांच ग्राम हल्दी व पांच ग्राम उड़द की दाल मिलाकर पीस लें। इस चूर्ण को जलती चिलम में रखकर कश खींचने से हिचकियां तुरंत बंद हो जायेंगी।
विषैले कीड़ों के काटने पर- हल्दी को बारीक पीसकर तीन ग्राम की मात्रा को आधा किलो छाछ के साथ सेवन करें तथा गर्म पानी से स्नान न करें, एवं खाने में गर्म मसाले न खायें।
अथवा हल्दी (2 ग्राम) को गाय के 25 ग्राम मक्खन में मिलाकर प्रात: काल बिना कुछ खाये सेवन करने से इस रोग में लाभ मिलता है।
प्रसव कष्ट में- महिला के गर्भ धारण करने के आठवें मास में पांच ग्राम हल्दी पीसकर दूध के साथ नित्य सुबह व शाम सेवन करें। इससे प्रसव कष्ट कम होगा तथा बच्चे का रंग तथा स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।
चेचक के दाग में-चेचक के दागों को ठीक करने के लिए ताजा दूध में हल्दी एवं गेहूं का आटा मिलाकर थोड़ा सा सरसों का तेल मिलाकर ‘उबटन’ तैयार कर लें तथा इसकी मालिश इन दागों पर करने से दाग ठीक होते हैं। इसके अतिरिक्त हल्दी का एक विशेष टॉनिक बढ़ती उम्र में शरीर को स्वस्थ रखने तथा शरीर को कायाकल्प करने में काम आता है। आयुर्वेद के अनुसार जिस प्रकार बरगद के पेड़ से अनेक शाखाएं निकलती हैं, उसी प्रकार हल्दी से अनेक बीमारियां स्वत: ही नष्ट होकर शरीर का कायाकल्प करती है।