भारत की सभ्यता और संस्कृति में संवेदनशीलता और समावेशिता की जडें काफी गहरी हैं : राष्ट्रपति मुर्मू

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नयी दिल्ली, 20 जून (भाषा) राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बृहस्पतिवार को इस बात पर जोर दिया कि भारत की सभ्यता और संस्कृति में संवेदनशीलता और समावेशिता की जड़ें मूल्यों के रूप में काफी गहरी समाई हुई हैं और इससे समाज की प्रगति को आंका जा सकता है।

मुर्मू ने यहां पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय शारीरिक दिव्यांगजन संस्थान का दौरा किया। उन्होंने दिव्यांग बच्चों और छात्रों से बातचीत की।

उन्होंने नवनिर्मित प्रोस्थेसिस एवं ऑर्थोसिस सेंटर का भी दौरा किया और रोगियों से बातचीत की और वहां शारीरिक रूप से दिव्यांग लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से उपलब्ध उन्नत सुविधाओं का अवलोकन किया।

राष्ट्रपति ने सभा को संबोधित करते हुए समाज की प्रगति को आंकने में संवेदनशीलता और समावेशिता के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ये मूल्य भारत की संस्कृति और सभ्यता में गहराई से निहित हैं।

उन्होंने कहा, “जब हमारे प्रयास दिव्यांगजनों की जरूरतों के प्रति समावेशी और संवेदनशील होते हैं, तो कोई भी शारीरिक स्थिति सामान्य जीवन जीने में बाधा नहीं बन सकती है।”

उन्होंने एथलीट दीपा मलिक, अरुणिमा सिन्हा और अवनी लेखरा और सामाजिक कार्यकर्ता के.एस. राजन्ना जैसे व्यक्तियों की उपलब्धियों को रेखांकित किया, जिन्होंने इस बात का उदाहरण पेश किया है कि कैसे समर्पण और दृढ़ संकल्प शारीरिक बाधाओं पर पार पा सकते हैं।

मुर्मू ने दिव्यांगजनों के सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण में संस्थान के महत्वपूर्ण योगदान को स्वीकार करते हुए दिव्यांगजनों को सशक्त बनाने में पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय शारीरिक दिव्यांगजन संस्थान की दीर्घकालिक प्रतिबद्धता की प्रशंसा की।

उन्होंने कर्मचारियों और सहयोगियों की अटूट प्रतिबद्धता और प्रयासों की भी सराहना की।

समावेशिता की जोरदार वकालत करते हुए राष्ट्रपति राष्ट्रपति संपदा में एमआईटीटीआई कैफे का उद्घाटन किया। कर्मचारियों के साथ अपना जन्मदिन मनाते हुए उन्होंने समावेशी समाज को बढ़ावा देने में कैफे की भूमिका पर जोर दिया।