ग्रीष्मावकाश में रानी गांव में अपने दादा-दादी के यहां आई। रोज सुबह उठकर दादाजी उसे घुमाने ले जाते। गांव और गांववालों के बारे में बतलाते, दादीजी उसे अच्छी बातें बतलाती, पांच-सात रोज उसे अच्छा लगा। एक दिन सुबह दादाजी ने उससे घूमने चलने को कहा। मुंह बनाकर वह बोली, मुझे घूमने नहीं चलना, मैं मम्मी-पापा के पास शहर जाऊंगी। दादाजी बोले बेटी! तू छुट्टियों में यहीं रहने को कह रही थी। पांच-सात दिन में ही ऊब गई, क्या कारण है?
वह बोली- दादाजी! शहर से जब चली थी गांव के प्रति मन में बहुत उत्साह था पर यहां आकर सारा उत्साह ठंडा पड़ गया। यहां गांव में मेरे साथ खेलने वाला कोई नहीं है। मेरी हम उम्र लड़कियां तो हैं मगर उन्हें काम करने से ही फुर्सत नहीं है, जैसे काम कर करके बड़ी बन जाएंगी। न खेले और न बोले, जाए मेरी बला से हूं…। दादाजी हंसे तो गुस्से में वह बोली- सुनिए! आज ही यहां से चली जाऊंगी। तभी दादीजी बोलीं- बेटी! सुन शहर जाना चाहती है चली जाना हम नहीं रोकेंगे, मगर जाने से पहले एक काम करना होगा। अपने प्यारे हाथों से मनपसंद रसोई बनाकर खिलानी होगी। क्या कहा जरा फिर से कहो मुझे रसोई बनाना नहीं आता बस खाना ही आता है।
उसके यह कहने पर दादी बोलीं- क्या तुम्हारी मम्मी ने रसोई बनाना नहीं सिखाया? चलो रसोई न सही दाल-रोटी बना लेती होगी, वही बनाकर खिला दे। दादीजी! सारी बात बतला चुकी हूं शहर में पढ़ाई से फुर्सत नहीं मिलती है जब कभी मम्मी के साथ काम करना चाहती हूं, तो वे इंकार कर कहती हैं, तुम पढ़ाई में ध्यान लगाओ। पढ़ाई जरूरी है काम तो तेरे पापा और मैं मिलकर कर लेंगे।
दादीजी हंसी और बोली- बेटी! बुरा नहीं मानो तो एक बात कहती हूं छुट्टियों में अगर यहीं रह जाओ तो तुम्हें रोटी और रसोई बनाना सिखा सकती हूं। डरते हुए रानी बोली- मगर मम्मी, पापा को मालूम हो गया तो डांट पड़ेगी। दादाजी बोले- बेटी! राज को राज ही रहने दिया जाएगा। न मैं, न तुम्हारी दादी और न तुम अपने मम्मी-पापा को बताओगी। तब तो मुझे मंजूर है अब शहर नहीं जाना कहकर वह हंसी।
बस उसी दिन से दादीजी उसे अपने साथ बैठाकर काम सिखाने लगी, पहले उसने आटा लगाना सीखा, फिर लोई बनाकर बेलना सीखा। धीरे-धीरे रोटी सेंकना भी सीख लिया। अब दादीजी ने उसे अलग-अलग तरह की दाल कैसे बनाई जाती है बतलाकर दाल बनवाई, फिर सब्जियां बनाना सिखाया। चावल से बनने वाली सारी वस्तुएं बनाना सिखाईं।
ग्रीष्मावकाश खत्म हो गया। शहर से रानी के मम्मी-पापा गांव आए उसे चपत लगाते मम्मी बोली- बेटी! तेरे बिना घर सूना-सूना लगता है तेरा भी मन बार-बार हमें याद करता होगा। हाथ नचाकर रानी बोली- किसने कहा दादाजी और दादाजी ने ऐसी बातें बतलाई और सिखलाई हैं कि जीवन भर काम आएंगी और इन बातों में मैं ऐसी रमी (खोई) कि आपकी याद ही नहीं आई। पापा बोले- जब हम शहर से चले थे, सोचकर डर रहे थे कि तुम्हारी शिकायत कैसे सुनेंगे। यहां उल्टा ही हुआ है। खैर, हमें खुशी है कि हमारी लाड़ली बेटी गांव में दादाजी-दादीजी के पास खुश रही। वह बोली मम्मी-पापा यहां से चलने का जरा भी मन नहीं है पर पढ़ाई के लिए चलना ही होगा। दादीजी बोली- क्या करूं बेटी! जबरदस्ती रोक नहीं सकती। वह बोली- दादीजी! अभी तो जा रही हूं पर अगले ग्रीष्मावकाश में मम्मी को साथ लाऊंगी। आपके साथ रहकर इन्हें भी बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।
मम्मी द्वारा पूछने पर पहले तो दादीजी ने ना-नुकुर की, फिर मम्मी द्वारा कसम देने पर सारी बात बताई तो खुश होकर पापा बोले मां! बहुत अच्छा काम किया है। वरना आज तक हम इससे काम कराने के लिए डरते रहे कि इसका ध्यान अगर दूसरी ओर चला गया तो पढ़ाई नहीं कर पाएगी पर मुझे खुशी इस बात की है कि इसे काम सिखलाकर आपने छुट्टियों का सदुपयोग किया है। केवल किताबी ज्ञान ही सब कुछ नहीं है, घर के काम का ज्ञान भी करवाना चाहिए।
दादाजी बोले- अरे बातों से ही पेट नहीं भरो। आज हमारी लाड़ली पोती अपने प्यारे हाथों से रसोई बनाएगी और सभी खाएंगे। दादीजी ने कुछ कहना चाहा तो दादाजी बोले आज तुम आराम करोगी। हमें अपनी लाड़ली पर पूरा भरोसा है। रानी बोली- दादाजी! आपका भरोसा नहीं टूटेगा, अब आप सभी मेरा कमाल और धमाल देखिये।
रसोईघर में पहुंचकर उसने रसोई बनाई। सभी खाने बैठे, खाते हुए पापा बोले- वाह क्या बात है। खाना ऐसा बना है कि छोडऩे को मन ही नहीं हो रहा है। जी कर रहा है कि खाता ही रहूं। मजाकिया अंदाज में दादाजी बोले- रोका किसने है। यह सुन सभी हंस दिए। दादीजी बोलीं- मेरी मेहनत रंग लाई है। रानी बोली- और देखना दादीजी! ये मेहनत सभी को रंगती जाएगी। सभी ताली बजाने लगे।