भौतिक तरक्की में सबसे ज्यादा नुकसान प्रकृति व पर्यावरण का हुआ है । यह बात केवल भारत पर ही नहीं अपितु सारी दुनिया के परिप्रेक्ष्य में सच है। ‘पर्यावरण बचाओ’ का नारा तो दिया जाता है पर प्राकृतिक संसाधनों का अतिशय दोहन भी जारी रहता है । नारा अपनी जगह कायम है और पर्यावरण का प्रदूषण का बढ़ता स्तर अपनी जगह । वातावरण में लगातार घटता ऑक्सीजन व जीवनदायिनी गैसों का स्तर व बढ़ती जहरीली गैसें मानव जीवन को चुनौती दे रहीं हैं । आज पर्यावरण व प्रकृति दोनों ही आज संकट में हैं । व्यवसायिक उद्देश्य से प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन पृथ्वी कर हम मानव व दूसरे जीव जंतुओं का जीवन को संकट में डाल रहे हैं । स्वार्थ पूर्ति में पर्यावरण , वातावरण व भौगोलिक संसाधनों को किसी भी हद तक नुकसान पंहुचाने में संकोच नहीं है । आध्यात्मिक , सांस्कृतिक परम्पराएं खत्म हो रही हैं पुराने पर्व , त्योहार , साथ -साथ उठने बैठने की आदतें भुला दी गई हैं , और इसका सबसे ज्यादा असर हुआ है पर्यावरण पर ।
लगातार बढ़ता हुआ तकनीकी का प्रयोग, तेज रफ्तार व भागमभाग का जीवन , भौतिक संसाधनों को असीमित की सीमा तक बढ़ाने की होड़ ने यदि जीवन में किसी चीज को सबसे ज्यादा उपेक्षित किया है तो वह है पर्यावरण । परिवहन , संचार , विज्ञान आदि के नाम पर होते अति अनाचार , लगातार होता प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, वृक्षों का कटान, अंधाधुंध बढ़ती जनसंख्या , लगातार धरती को ढकती पक्की सड़कों व चारों तरफ उगते कंक्रीट के जंगलों आदि ने पृथ्वी की श्वसन-क्रिया को ठप्प कर दिया है जिससे मानव जीवन असाध्य बीमारियों से जूझ रहा है ।
एक समय तुलसी पूजा , पीपल पूजा , वटवृक्ष की पूजा के माध्यम से पेड़ पौधों का संरक्षण तो होता ही था इनकी संख्या में वृद्धि का दरवाजा भी खुल जाता था । हिन्दू धर्म में ऐसे अनेक पर्व थे जिनमें बिना वृक्षों की पूजा के शुभ कार्य सम्पन्न नहीं होते थे । यही वजह रही होगी कि हवन व पूजन के समय अन्य देवी देवताओं के साथ साथ वृक्ष देवता का स्मरण भी अपरिहार्य होता था । पर , समय के बदलाव ने हमारे जीवन से पेड़ पौधों को अलग करके उनकी जगह मानव निर्मित उन सुविधाओं को दे दी जो पर्यावरण के प्रति तनिक भी संवेदनशील नहीं हैं । इसके विपरीत इन्होने वातावरण को प्रदूषित ही किया है । बढ़ती हुई जनसंख्या के चलते चीजों की पूर्ति का शाॅर्टकट ऑक्सीटाॅक्सिन के इंजेक्शन लगाकर ढूंढा जा रहा है , फल व सब्जियों पर चमक लाने के लिये जहरीले रंगों का प्रयोग जहां रोगों को निमंत्रण दे रहा है वहीं पर्यावरण को भी प्रदूषित कर रहा है । अब शुद्ध व ताजी हवा व साफ-सुथरा पीने योग्य पानी मिलने दूभर हो गये हैं । लगातार बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण की वजह से ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़ रही है , ग्लोबल वार्मिंग का खतरा मंडरा रहा है यदि उपयुक्त उपाय न किये गये तो वह दिन बहुत दूर नहीं सारी दुनिया प्रदूषण प्रलय का सामना कर रही होगी ।वक्त की मांग है कि हम पर्यावरण प्रदूषण रोकें, स्वयं भी पर्यावरण की रक्षा के प्रति सजग रहें और दूसरों को इस सम्बन्ध में जागरुक करें ।
और पर्यावरण बातों से नहीं संकल्प व ज़मीनी कार्य से बचेगा। पौधा रोप कर उसकी देखभाल करें, हरे वृक्ष न काटें ओर न ही काटने दें, पशु , पक्षियों व जीव जंतुओं का ख्याल रखें कछुए, मछली, सुअर, बाज ,गिद्ध, चील, आदि वातावरण को स्वच्छ करते हैं । वाहन के प्रयोग में ‘पूल’ सिस्टम अपनाएं, ऑटोमोबाईल्स की जगह साईकिल पर या पैदल चलें । अड़ोसी पड़ोसी के साथ एक ही वाहन में कई लोग आएं – जाएं। प्लास्टिक के प्रयोग को कम से कम कर दें ,खरीददारी के समय घर से थैला लेकर जाएं ,पाॅलिथिन को स्वेच्छा से ‘न’ कहना सीखें । ‘हरेला’, जैसे परंपरागत पर्व व त्योहारों को बढ़ावा दें , ‘चिपको‘ जैसे आंदोलन फिर खडे करें । अपने खानपान में शाकाहार की तरफ लौटें , पहनने ओढ़ने की चीजों में पशु- पक्षियों के अवशेषों से बनी चीजें न लें, चमड़े, खाल व रक्त से बनी वस्तुओं का बहिष्कार करें , कागज़ का उपयोग खत्म या बहुत कम कर दें तो पर्यावरण का बहुत भला होगा ।