
प्रकृति के पंच भूतों में से एक जल जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक परम आवश्यक है।वैज्ञानिकों, प्रौद्योगिकी एवं औद्योगिक क्षेत्र के विकास एवं उन्नयन के लिए जल एक अत्यावश्यक संसाधन हैं । नदियां हमें जल ही नहीं देती बल्कि हमारे समग्र जीवन प्रणाली की जीवनरेखा हैं।जैव विविधता, मिट्टी, रेत ,जल एवं अविरल प्रवाह मिलकर नदी की गुणवत्ता निर्धारित करते हैं। व्यक्ति के जीवन यापन के लिए ऑक्सीजन का महत्व हैं ,ठीक उसी प्रकार नदियों के जीवन के लिए इन सूक्ष्म से लेकर विशाल धाराओं की उपादेयता हैं। जैव विविधता नदियों के जीवन के लिए प्राणवायु हैं,जो नदियों के जल के लिए अति आवश्यक है जो उनके जल को शुद्ध करके ऑक्सीजन से भरते हैं इसलिए नदी में इतना जल हो कि वह जैव विविधता का ऑक्सीकरण कर सके।
मानवीय सभ्यता के लिए नदियों को ईश्वरीय वरदान माना जाता हैं ।पृथ्वी पर जीवन का आधार नदियां हैं । भारतवर्ष में संस्कृतियों ,सभ्यता के विकास के समय से नदियां सर्वदा पूजनीय एवं श्रद्धा की धारक रही हैं । नदियों को साक्षात शक्ति एवं भक्ति का प्राकट्य माना गया हैं । ईश्वरीय आराधना में नदियों का विशेष योगदान रहा हैं। अर्थववेद में नदी को माता कहा गया है। नदियां हमारी माता है, जो हमें जल रूपी दूध प्रदान करती हैं। पृथ्वी पर नदियां सुरक्षित हैं तो मानवीय जीवन भी सुरक्षित हैं ।जीवनदायिनी नदियां व्यक्ति को जल मार्ग ही नहीं बल्कि वर्षा के जल को सहेजकर धरती के नमी को भी बनाए रखती हैं। महर्षि मनु ने नदी के स्थान को अत्यधिक गौरवपूर्ण बताया हैं । उपनिषदों में नदी को सर्वोच्च स्थान प्रदान किया गया है। नदी सभी गुरुजनों में सर्वोच्च स्थान रखती है।
महाभारत में गंगा जी की उपादेयता को बताते हुए कहा गया है कि परशुराम जी क्षत्रिय विनाशक होते हुए भी गंगा माता के निवेदन पर देवव्रत को शिक्षा प्रदान किए थे। नदियां परम गुरु हैं। नदियों को प्रदूषित करने में कारपोरेट जगत का विशेष योगदान है, क्योंकि उनके सह पर अवैध खनन ने भी नदियों को प्रदूषित किया हैं ।क्षेत्रीय स्तर, राष्ट्रीय स्तर एवं वैश्विक स्तर पर नदियों के महत्व को रेखांकित करना एवं लोगों में जागरूकता पैदा करना सभ्य नागरिक समाज की विशिष्टता हैं ।हम सभी लोगों को नदियों के स्वास्थ्य उन्नयन, नदी प्रदूषण के रोकथाम के लिए प्रयास करना, नदी प्रदूषण, नदी संरक्षण एवं नदी स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए जागरूक होना चाहिए। अमेरिकी शोध संस्थान,’ प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकैडमी आफ साइंसेज ‘ द्वारा प्रकाशित शोध रपट के अनुसार, पेरासिटामोल, निकोटीन, कैफीन, मिर्गी की दवा एवं मधुमेह की दवाइयां नदियों के जल को प्रदूषित एवं संक्रमित कर रहे हैं। शोध संस्था के प्रतिवेदन के अनुसार ,नदियों में विषाक्त की मात्रा बहुत ज्यादा मात्रा में पाई जा रही हैं। प्लास्टिक कचरा, पॉलीथिन एवं पॉलीथिन की पनिया नदियों को प्रदूषित करने का बड़ा कारण हैं।एक प्रतिवेदन के अनुसार,संसार भर में 20 नदियां हैं जिनके सहारे बहुत बड़ी मात्रा में प्लास्टिक महासागरों में बहकर आ रहे हैं।
समाज में नदियों के महत्व, उपादेयता,संरक्षण की आवश्यकता, जागरूकता एवं वैज्ञानिक सोच के द्वारा नदियों को संरक्षित किया जा सकता हैं ।नदियों के प्रति समाज की सहयोग एवं सुरक्षा का दृष्टिकोण नदियों को स्वस्थ एवं पर्यावरण हितैषी बना सकता हैं । नदियों को स्वच्छ एवं सुरक्षित रखने के लिए जल प्रदूषण को नियंत्रित करना ,नदियों के किनारे वृक्षारोपण करना ,नदियों में पॉलीथिन, प्लास्टिक कचरा एवं कूड़ा को प्रवाहित ना करना चाहिए। नदियां स्वच्छ,प्रदूषणविहीन, एवं स्वस्थ हैं तो मानवीय सभ्यता सुरक्षित है। नागरिक समाज के लिए नदियां अमृतदायिनी और ऊर्ज़दायिनी है।
रामाशीष
राष्ट्रीय संगठन मंत्री, गंगा समग्र, आरएसएस।