नयी दिल्ली, 12 जून (भाषा) दुनिया को प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर अंतर से हर साल अरबों डॉलर का नुकसान हो रहा है तथा कृत्रिम मेधा (एआई) इस समस्या को और भी बड़ा बना सकती है। एक अध्ययन में यह बात कही गई है। अध्ययन में उत्पादकता और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए डिजिटल अंतर को पाटने की जरूरत पर प्रकाश डाला गया है।
सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कंपनी एचपी ने बुधवार को ऑक्सफोर्ड इकनॉमिक्स के साथ मिलकर एक अध्ययन जारी किया। इसमें प्रत्येक देश के 1,036 सी-सूट अधिकारियों और लगभग 100 सरकारी अधिकारियों की राय ली गई।
अध्ययन में कहा गया, “वैश्विक आबादी का लगभग एक-तिहाई हिस्सा डिजिटल दुनिया से दूर रहता है, जिससे दुनिया को हर साल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में अरबों डॉलर का नुकसान होता है। प्रौद्योगिकी के आगमन के बाद से डिजिटल विभाजन बढ़ता जा रहा है, और अगर इस दिशा में जानबूझकर कोई कदम नहीं उठाया गया, तो एआई इन असमानताओं को और बढ़ा सकती है।”
पिछले साल अक्टूबर से नवंबर तक यह अध्ययन 10 देशों- अमेरिका, फ्रांस, भारत, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, मेक्सिको, ब्राजील और कनाडा में किया गया है।
एचपी ग्लोबल हेड ऑफ सोशल इम्पैक्ट और एचपी फाउंडेशन के निदेशक डायरेक्टर मिशेल मालेजकी ने कहा, “हम जानते हैं कि प्रौद्योगिकी एक महान समतावादी और प्रगति को आगे बढ़ाने वाला शक्तिशाली माध्यम हो सकती है। फिर भी, हमारी तेजी से विकसित हो रही दुनिया में डिजिटल अंतर को वास्तव में कम करने के लिए, हमें व्यक्तियों को प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के कौशल से भी लैस करना होगा।”