बड़े तो बड़े, छोटों को भी गुस्सा खूब आता है। कम उम्र के बच्चे भी इससे अछूते नहीं हैं। बच्चों में इतना गुस्सा बढ़ता जा रहा है कि पैरंटस के लिए एक समस्या बनता जा रहा है। बच्चों के गुस्से को कंट्रोल करना माता -पिता के लिए मुश्किल हो रहा है।
इसमें बच्चों का भी पूरा दोष नहीं है। माता पिता भी दोषी हैं क्योंकि दोनों वर्किग होने के कारण बच्चों को क्वालिटी टाइम नहीं दे पाते, आसान रास्ता अपनाते हैं उनकी जिद्द पूरी करके। धीरे-धीरे बच्चों की जिद्द गुस्से में और बाद में अग्रेसिवनेस में बदलने लगती है। अगर शांत स्वभाव से प्रारंभ से ही बच्चों की जिद्द न मानी जाए और उनके गुस्से को कंट्रोल किया जाए तो परेशानी से बचा जा सकता है।
बहुत छोटे बच्चे भी दर्शाते हैं गुस्सा
चाहे बच्चा कितना भी छोटा क्यों न हो, अगर वह बोलकर अपनी बात या भावना को व्यक्त न कर सकता हो तब भी वह रोकर, चिल्लाकर अपना गुस्सा दिखाता है। स्वभाव से कुछ बच्चे शांत होते हैं और कुछ अशांत या डिमाडिंग। अगर उनकी डिमांड माता पिता नहीं समझ पाते तो वह रोकर अपनी भावना बताते हैं, तब भी माता-पिता नहीं समझ पाते तो चिल्लाकर अपनी भावना बताते हैं। यह चिल्लाना भी गुस्से का एक रूप है।
थोड़ा बड़ा होने पर
जब बच्चा बोलकर अपनी बात माता-पिता तक कर सकता है तो वह अपनी पसंद माता-पिता को बताता है जैसे क्या खाना है, कौन सा खिलौना चाहिए आदि। अगर माता-पिता उनकी बात नहीं मानते तो वह भी चिल्लाकर चीजें फेंककर, फर्श पर लेट कर अपना गुस्सा दर्शाता है। कुछ बच्चे जो स्वभाव से शांत होते हैं वे तो माता-पिता के समझाने पर मान जाते हैं पर जो अशांत होते हैं वे कोशिश करते हैं अपनी बात मनवाने की। अगर नहीं मानते तो अपने गुस्से के हथियार का प्रयोग करना शुरू का देते हैं।
स्कूल जाने वाले बच्चे
इस उम्र के बच्चे दोस्तों में और परिवार में अपनी अहमियत को समझने लगते हैं। अगर उनकी तुलना पढ़ाई खेल या व्यवहार में किसी से की जाए तो इस बात को समझते हैं और बुरा भी मानते हैं। दूसरों के पास क्या है और वे क्या चाहते हैं, अपनी डिमांड स्पष्ट रूप से माता-पिता को बताते हैं। अगर डिमांड पूरी न की जाए या समझाया जाए तो अपना गुस्सा निकालने के नये नये रास्ते ढूंढते हैं जैसे खाना न खाकर, पढ़ाई न करके, होम वर्क पूरा न करके, पैरंटस का कहना न मानकर जाहिर करते हैं।
टीन एज वाले बच्चे
इस उम्र तक के बच्चे जान जाते हैं कि अपनी बात कैसे मनवानी है, किससे और कब मनवानी है। वे अवसर का लाभ उठा कर अपनी बात मनवाते हैं। अगर माता-पिता कुछ भी समझाते हैं तो बस उन्हें कुछ भी गवारा नहीं होता। गुस्से में माता-पिता को जवाब देना, ऊंची आवाज में बोलना, रौब मारना, ब्लैक मेलिंग करना, पिता से नाराजगी जाहिर करना उन्हें बखूबी आता है।
कैसे करें हैंडल
शांत रहें और इंतजार करें
माता-पिता को जब लगे बच्चे गुस्से में हैं तो उन्हें उस समय रिएक्ट नहीं करना चाहिए। इससे बात और बढ़ती है। ऐसे में माता-पिता को पेशेंस रखनी चाहिए। अपनी बात शांत स्वभाव से उन तक पहुंचा कर उन्हें समय देना चाहिए पर जब माता-पिता थके हुए वापिस आते हैं, तब वे भी जल्दी रिएक्ट करते हैं। बच्चे उनकी आदतों को देखते हैं और वैसा व्यवहार करते हैं। बच्चों के प्रति कभी भी एग्रेसिव व्यवहार न दिखाएं।
शारीरिक रूप से उन्हें चुस्त रखें
माता-पिता को चाहिए कि बचपन से ही बच्चों को खेलने के लिए, अपने छोटे छोटे काम करने के लिए, घर में थोड़ी मदद करने के लिए प्रेरित करें उनके साथ इनडोर गेम्स खेलें, छुट्टी वाले दिन पार्क ले जाएं, उनसे बात करें, थोड़े बड़े बच्चों से चर्चा करें, छोटे बच्चों को बोर्ड ले दें ताकि वह उन पर कुछ भी लिख सकें। बच्चों के गुस्से के कारण को जानने का प्रयास करें, उन्हें महसूस कराएं कि वे उनका भला चाहते हैं, उनका सही मार्गदर्शन करते हैं। बच्चा जब बेचैन हो तब उसे कलर करने के लिए कहें, बोर्ड पर कुछ भी बनाकर उसे साफ कर पुनः कुछ बनवाएं। उसे उत्साहित करें।
बच्चे को सिखाएं गुस्से को कैसे करें काबू
बच्चों को अपने व्यवहार से सिखाएं कि गुस्सा आने पर आप क्या करते हैं, म्यूजिक सुनते हैं, घर से बाहर वॉक पर चले जाते हैं, गार्डनिंग करते हैं या अन्य किसी शौक को पूरा करने का प्रयास करते हैं। बच्चे भी आपको देखकर अपना गुस्सा शांत करने के लिए प्रेरित होंगे।
बच्चों की पिटाई न करें
बच्चों को मार पीट कर सुधारना गलत सोच है। बच्चे कभी भी मारपीट से नहीं सुधरते और ढीठ बनते हैं। कुछ बच्चे मारपीट के डर से अपनी गलती छुपाते हैं। यह व्यवहार भी खतरनाक है। मारपीट का रवैय्या बच्चों के दिमाग पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। माता-पिता अगर गुस्सैल होंगे तो बच्चे भावनात्मक रूप से उनसे दूर होते चले जायेंगे। अधिक मार पिटाई से बच्चों में भी मारपीट की प्रवृत्ति बढ़ती है। वे बाहर अपनों से छोटों को मारकर अपना गुस्सा निकालते हैं जो व्यवहारिक रूप से गलत है।