पर्वतों की रानी मसूरी का सौंदर्य

बेहाल कर देने वाली गर्मी से दूर प्रकृति की गोद में कुछ पल सुकून के बिताने की चाहत रखने वालों के लिए मसूरी एक आदर्श हिल स्टेशन हो सकती है। पर्यटकों को आकर्षित करने वाली मसूरी सन 1826 तक वृक्षों व मंसूर झाड़ियों से ढंकी हुई थी। इस नगर की सुन्दरता पर मोहित होकर वेल्स की राजकुमारी ने इसे पहाड़ों की रानी नाम दिया था। ऐसा भी कहा जाता है कि इस जगह का  नाम यहाँ बड़ी तादाद में उगने वाली मसूर दाल पर पड़ा।
सन् 1820 में अंग्रेज कैप्टन यंग ने यहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य से मुग्ध हो अपना बंगला बनवाया था जिसके बाद यह स्थान एक हिल स्टेशन के तौर पर विकसित हुआ। यहाँ पुराने डाक बंगले और प्राचीन मंदिर काफी बड़ी संख्या में हैं। अब मसूरी आई.ए.एस. का प्रशिक्षण संस्थान लाल बहादुर शास्त्रा राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी के लिए भी जाना जाता है। प्रसिद्ध लेखक रस्किन बांड जिन्हें वर्ष 2014 के गणतंत्रा दिवस पर ‘पद्मश्री’ सम्मान प्रदान करने की घोषणा की गई थी, एक बार मसूरी आए तो उन्हें यह स्थान इतना भाया कि वे यहीं के होकर रह गए।
हर पहाड़ी पर्यटक स्थल की तरह यहाँ के मुख्य बाजार का नाम माल रोड है। इसे मसूरी की शान भी कहा जा सकता है क्योंकि यहाँ खूब चहल-पहल रहती है। सड़क के दोनों ओर कुछ स्थानों पर बेंच लगे हैं। थकान हो जाने पर यहाँ बैठ कर प्रकृति का आनंद ले सकते है। इसके अतिरिक्त पॉप कार्न तथा खानपान की वस्तुएं बेचती महिलाएं तो कलात्मक टोपियाँ  मफलर बेचने की दुकानें भी सजी है।
कुछ आगे जाने पर रिक्शों की भरमार है जो कंपनी गार्डन तक ले जाते है जो लगभग ढाई किमी की दूरी पर स्थित एक सुंदर उद्यान है। इसमें एक ग्लास हाउस है। सुंदर पेड़ पौधे लगे हैं। मसूरी का कंपनी गार्डन जिसे आजादी से पहले  बोटेनिकल गार्डन  कहा जाता था, इस गार्डन की संकल्पना विश्वविख्यात भूवैज्ञानिक डा. एच. फाकनार लोगी ने की थी। 1842 के आस-पास उन्होंने इस क्षेत्रा को सुंदर उद्यान में बदल दिया था। बाद में इसकी देखभाल कंपनी प्रशासन के देखरेख में होने लगा था। इसलिए इसे कंपनी गार्डन या म्युनिसिपल गार्डन कहा जाने लगा।  शाम के समय मॉल रोड पर पैदल घूमने टहलने वालों की भीड़ हो जाती है इसलिए संग्रहालय के पास रोड बंद कर दी जाती है।
गन हिल
यह जानना मजेदार था कि आजादी पूर्व यहाँ रखी तोप प्रतिदिन एक निश्चित समय पर चलाई जाती थी ताकि लोग उसकी आवाज सुनकर अपनी घड़ियों का समय सही कर लें। इसी कारण इस स्थान का नाम गन हिल पड़ा। मसूरी की इस दूसरी सबसे ऊँची चोटी तक रोप-वे से पहुँंचा जा सकता है तो पैदल का घुमावदार रास्ता भी है। ऊपर विशाल मैदान में बच्चों के खेल, खिलौने, खानपान तथा मनोरंजन के साधन हैं। मैंने एक स्थान पर महाराजा की पोशाक में फोटो खिंचवाने वालों को देखा तो अपने पौत्रा को कुछ क्षण के लिए ही सही, महाराजा बना दिया। यहां से हिमालय श्रृंखलाएं जैसे बंदरपुंछ, श्रीकंठ, पीथवारा व गंगोत्रा ग्रुप के अनुपम सौंदर्य को निहारा जा सकता है तो पूरा मसूरी नगर का विहंगम दृश्य भी देखा जा सकता है।
मसूरी में माल रोड के अतिरिक्त गाँधी चौक, कुलरी बाजार व लैन्डयोर बाजार से छड़िया, हाथ के बुने आकर्षक डिजाइनों के स्वेटर बिकते हैं तो कुछ दुकानों पर  परंपरागत सामान बिकता नजर आता है। और हाँ, लैन्डयोर बाजार  में 150 वर्ष पुरानी मिठाई की दुकान का अपना आकर्षण है। हर सुबह हमारा नाश्ता यहीं होता था। इस रेस्टोंरेंट के वर्तमान स्वामी के अनुसार उनके दादा ने 1865 में इसे आरंभ किया था। शुद्ध घी में बनी जलेबी के क्या कहने।
यूं मसूरी एक ऐतिहासिक शहर है। इसका म्युनिसिपलटी भवन बहुत पुराना है। हमारा सेमिनार उसी के मुख्य सभागार में हुआ। इसके अतिरिक्त 1853 में स्थापित  सेंट जार्ज विद्यालय, मसूरी बहुत प्रसिद्ध स्कूलों में से एक है। यह पैट्रीशियन बंधुओं द्वारा सन 1893 में स्थापित 400 एकड़ में फ़ैला  कैम्पस मैनर हाउस के नाम से प्रचलित है। इसके पुराने छात्रों ने कई क्षेत्रों में योगदान दिया है। सेंट जार्ज स्कूल अपने स्थापत्य के लिये मसूरी भर में अद्वितीय है। अन्य विद्यालयों में वायनबर्ग ऐलन, गुरु नानक पंचम सेंटिनरी, मसूरी इंटरनेशनल, टिबेटन होम्स और वुडस्टॉस्कूल हैं।
कैमल बैक रोड
कुल 3 कि.मी. लंबा यह रोड रिंक हाल के समीप कुलरी बाजार से आरंभ होता है और लाइब्रेरी बाजार पर जाकर समाप्त होता है। इस सड़क पर पैदल चलना या घुड़सवारी करना अच्छा लगता है। हिमालय में सूर्यास्त का दृश्य यहाँ से सुंदर दिखाई पड़ता है। मसूरी पब्लिक स्कूल से कैमल रोड जीते जागते ऊँट जैसी लगती है। वैसे हमारे कमरे से कैमल बैक बिलकुल सामने दिखाई देती थी।
एक सुबह हम मसूरी के पास के पर्यटन स्थलों को देखने के लिए निकले। भोपाल और गुजरात के मित्रा संग थे, इसलिए हमने आने- जाने के लिए एक टैक्सी बुक कर ली। सबसे पहले हम कैम्पटी फॉल गए।
 कैम्पटी फाल
मसूरी से 15 किमी दूर  4500 फुट की ऊंचाई पर यह इस सुंदर घाटी का नामकरण कैसे हुआ, यह जानना बहुत दिलचस्प है। अंग्रेज अफसर अपनी चाय दावत अक्सर इस खूबसूरत स्थान पर करते थे, इसीलिए इसे कैंपटी (कैंप$टी) फाल कहा गया है। यहाँ चारों ओर ऊँची पहाड़ियों से  पाँच अलग -अलग धाराओं में बहते झरनों का एकाकार है।  इसके नीचे स्नान करने का अपना अलग ही आनंद है क्योंकि यहाँ से आप तरोताजा होकर निकलते हैं। बिजली से चलने वाले रस्सों की गाड़ी (रोप वे) पर सवार होकर उस स्थान पर पहुँचते हैं जहाँ बच्चे और युवा वाटर गेम्स में ठंडे पानी की बौछारों का लुत्फ उठाते हैं। हमारा अक्षित अस्वस्थ था इसलिए नहाने से कतरा रहा था लेकिन टयूब पर सवार कर जब मैंने उसे पानी में धकेला तो इतना प्रफुल्लित हुआ कि वह बाहर आने को तैयार नहीं था। इस झरने के आसपास भी कुछ अच्छे स्थान हैं लेकिन साफ-सफाई का अभाव खटकता है।
तिब्बती मंदिर
बौद्ध सभ्यता की गाथा कहता यह मंदिर पर्यटकों को आकर्षित करता है। इस मंदिर के पीछे की तरफ कुछ ड्रम लगे हुए हैं जिनके बारे में मान्यता है कि इन्हें घुमाने से मनोकामना पूरी होती है।
चाइल्डर्स लाज
लाल टिब्बा के निकट यह मसूरी की सबसे ऊँची चोटी है। पर्यटन कार्यालय से यह 5 कि.मी. दूर है, यहाँ तक घोड़े पर या पैदल भी पहुंचा जा सकता है। यहां से बर्फ के दृश्य देखना बहुत रोमांचक लगता है।
नाग देवता मंदिर
कार्ट मेकेंजी रोड पर स्थित यह प्राचीन मंदिर मसूरी से लगभग 6 कि.मी. दूर है। वाहन ठीक मंदिर तक जा सकते हैं। यहाँ से मसूरी के साथ-साथ दून-घाटी का वहींगम दृश्य दिखाई देता है।
मसूरी झील
मसूरी से लगभग 6 कि.मी. दूर देहरादून रोड पर नया विकसित किया गया पिकनिक स्पाट है। इस आकर्षक स्थान पर पैडल-बोट भी उपलब्ध हैं। यहाँ से दून-घाटी और आसपास के गांवों का सुंदर दृश्य दिखाई देता है।
क्लाउड्स एंड
यह बंगला 1838 में एक ब्रिटिश मेजर ने बनवाया था जो मसूरी में बने पहले चार भवनों में से एक है। अब इस बंगले को होटल में बदला जा चुका है। क्लाउड्स एंड कहे जाने वाला यह होटल मसूरी हिल के एकदम पश्चिम में, लाइब्रेरी से 8 कि.मी. दूर स्थित है। यह रिजार्ट घने जंगलों से घिरा है जहाँ पेड़-पौधों की विविध किस्में हैं। यहाँ से हिमालय की हिमाच्छादित चोटियां और यमुना नदी को देखना मनोहरम् लगता है।
सुरखंडा देवी
यह स्थान मसूरी-टिहरी रोड पर मसूरी से लगभग 33 कि.मी. दूर और धनोल्टी से 8 कि.मी. दूर स्थित है। बस या कार द्वारा कड्डु खल (देवास -थाली) तक ही जा सकते हैं। उससे आगे 2 कि.मी. पैदल चलना ही पड़ता है। समुद्र तल से 10,000 फुट की ऊँचाई पर स्थित इस मंदिर से हिमालय का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। यहाँ का यात्रा अनुभव भुलाए नहीं भूलता।
लाखा मंडल
कैम्पटी फाल से गुजरने पर मसूरी -यमुनोत्रा रोड पर 75 कि.मी. दूर है लाखा-मंडल। कुवा तक 71 कि.मी. की सड़क यात्रा के बाद यमुना नदी को सड़क-पुल से पार करना पड़ता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा यहाँ पुरातत्व महत्त्व की सैंकड़ां मूर्तियां रखी गई हैं। कहा जाता है कि कौरवों ने यहाँ लाख का महल बनाया था और यहां पांडवों को जिंदा जलाने का षडयंत्रा रचा था।
मसूरी में चौथे दिन हमने अपने कमरे में रहकर ही बिताया क्योंकि वहाँ के पानी में कैल्शियम की मात्रा अधिक होने के कारण हमारे अधिकांश साथियों के पेट खराब हो गए। चूंकि मैं यात्राओं का अभ्यस्त रहा हूँ इसलिए स्वस्थ प्रसन्नचित्त रहते हुए सभी की सेवा सुश्रूषा करता रहा। शाम को हम वापस देहरादून के लिए रवाना हुए जहाँ देर रात दिल्ली की ओर प्रस्थान करना था।
कुल मिलाकर बहुत शानदार रहा मसूरी से मिलन का यह अवसर। जानकारी से भरपूर तो मानवीय संवेदनाओं को झकझोरने वाला भी। मुझे माल रोड पर पॉपकार्न बेचती महिला द्वारा अपनी बच्ची को जोरदार थप्पड़ रसीद करने का वह दृश्य शायद ही कभी भूले। सड़क के किनारे मेज पर स्टोव, कढ़ाई रखकर कर गर्मागर्म पॉप कोर्न बेचने वाली वह महिला बच्चों को साथ देखकर आवाज लगा रही थी, ‘बच्चे को दिलवा दो, गर्मागर्म कुरकुरे पॉप कोर्न!’
अधिकांश लोग उसे अनसुना कर आगे बढ़ गए क्योंकि आजकल नई-नई चीजों की उपलब्धता के कारण बच्चों को पॉपकोर्न में कोई खास रूचि नहीं रह गई है। उस महिला की बच्ची जो पास ही रखे एक स्टूल पर बैठी थी, ने अपनी माँ से पॉपकोर्न मांगे तो ग्राहक न आने से झल्लायी माँ ने उसे जोरदार चांटा लगाते हुए कहा, ‘तू ही सब खा लेगी तो रोटी कहाँ से खाएंगे’। मन बहुत दुःखी हो उठा यह दृश्य देखकर। अगर हम अभी पेट की जरूरतें ही पूरी नहीं कर पा रहे हैं तो कैसी उन्नति, कैसा विकास? आखिर कब आवश्यक जरूरतें पूरी कर लेगा हमारा देश!