नीम : सौ दवाओं की एक दवा

बहुधा यह कहा जाता है कि जिस घर के आंगन में तुलसी का बिरवा और नीम की छाया हो, उस घर तक रोग कभी भी अपने पैर नहीं पटक सकता। तुलसी की पत्तियां प्रत्येक बीमारी का इलाज है। तुलसी का प्रभाव वर्तमान और भविष्य की स्वास्थ्य सुरक्षा को सम्बल प्रदान करता है, वहीं नीम वर्तमान, भविष्य के अतिरिक्त भूतकालीन रोगों से भी निजात दिलवा देता है। एक किंवदन्ती के अनुसार किसी विदेशी राजा ने अपने दूत के हाथ भारतीय राजा के लिए एक पैगाम भेजा। साथ ही दूत को यह आदेश दिया कि सफर तय करने के दौरान इमली के साए में ही सतत उठना, बैठना, सोना और रात बिताना। लिहाजा, जब वह दूत सफर खत्म करने के पश्चात भारतीय

राजा के दरबार में आया तो उसका पूरा शरीर फोड़़ों से ग्रसित था, वह चलने-फिरने में भी अपने आपको असहाय पा रहा था। पैगाम देने के पश्चात उस दूत ने राजा से अपनी बीमारी के इलाज के संबंध में पूछा। तब भारतीय राजा ने कहा कि अपने देश जाते समय आप जब-जब कहीं रुकें या विश्राम करें, तो नीम की छाया में ही ठहरना और जब वह दूत अपने देश पहुंचा तो एकदम भला-चंगा था तथा उसका स्वास्थ्य भी सुधार पर था। नीम के संबंध में यह किंवदन्ती नीम की महत्ता को प्रतिपादित करती है।
नीम सम्भावी कष्टों को तो दूर करता ही है, इसके प्रभाव से रोग समीप भी नहीं आ पाते, इसीलिए नीम के संबंध में यह उक्ति सही चरितार्थ होती है कि ‘नीम-हकीम खतरनाक है, नीम नहींÓ। नीम की पत्ती से लेकर उसकी छाल और छाया तक हमारे शरीर के लिए एक

बेहतरीन टॉनिक का काम करती है।
पुराणों में नीम को अमृत तुल्य कहा गया है। नीम में इतनी ऊष्मा अवश्य है, जिससे यह रोग को पैनीधार की मानिन्द चीर देता है। इसकी कड़वाहट रोम-रोम में ठंडक पैदा करती है। आयुर्वेद के अनुसार जो व्यक्ति नीम की दातुन करेगा, नीम की पत्ती और नीमौली खाएगा, नीम का रस सेवन करेगा तथा नीम तले अधिकांश समय व्यतीत करेगा, उसमें चार-पांच बरस बाद इतनी शक्ति अवश्य आ जायेगी कि उसे अगर सांप भी काट ले तो सांप ही मर जाए।
नीम को संस्कृत में निम्ब, हिन्दी में नीम, बंगाली में निम, मराठी में कडूलिंब, गुजराती में लीमड़ों, तमिल में बेब, तेलुगु में बेया, अरबी में आजाद दरख्त तथा लेटिन में मेलिया एजाडिरेक्टा कहते हैं। डॉक्टर एक्राइड के अनुसार नीम की पत्ती में प्रोटीन, कैल्शियम, लौह और विटामिन-ए काफी मात्रा में होता है। गंधक का तो भंडार भरा है

नीम में, जो लाख दु:खों की एक दवा है। नीम की छाल में कडुवा रालमय सत्व, पचने पर कटु हल्का होता है। मार्गोसीन उडऩशील तेल, गोंद, श्वेतमार, शर्करा व टेनिन होते हैं। पत्तियों में कड़ुवा पदार्थ कम होता है। बीज में मार्गोसा ऑइल 40 प्रतिशत गंधकयुक्त होता है। नीम का तेल बहुत गुणकारी होता है। यह स्वाद में कड़ुवा कसैला, पचने पर कटु हल्का होता है। इसका मुख्यत: प्रभाव त्वचा व ज्ञानेन्द्रियों पर रहता है। यह कीटाणुनाशक, शोधहर, उदर, कृमिहर, व्रणरोपण, पीड़ा शामक, रुचिकर, रक्त शोधक, कफहर, मूत्रविकार नाशक, गर्भाशय उत्तेजक दाह प्रशासक, ज्वरघ्न और नेत्रों के लिए बलकारक होता है।
कहते हैं नीम की पत्ती की 21 सीकें, 21 काली मिर्च के साथ लेकर 6 तोला पानी में पीसकर, फिर छानकर कुछ गर्म करके पिलाने से कठिन से कठिन और पुराना बुखार भी दो दिन में टूट

जाता है। बुखार में उल्टी-दस्ती की शिकायत हो तो नीम की लकड़ी जलाकर पानी में बुझाइए। यही पानी रोगी को पिलाएं, तुरन्त आराम पहुंचता है। नीम की पत्तियों का रस शहद के साथ पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। नीम की पत्ती को घी में भूनकर, आंवला मिलाकर खाने से शीत, पित्त, फोड़े, घाव, अम्लपित्त और रक्त विकार में निश्चित लाभ पहुंचता है। पायरिया में नीम का दातुन व नीमपानी के कुल्ले राहत प्रदान करते हैं। यदि बवासीर में खून आ रहा हो तो नीमौली की गिरी पीसकर दही के साथ सेवन से रक्त स्त्राव बन्द हो जाता है। नीम की पत्ती के रस को पानी में मिलाकर 6 माह तक लगातार सेवन करने से कुष्ठ रोग दूर हो जाता है।
नीम ऐसे-ऐसे भी किरदार अदा करता है, जो अकल्पनीय हंै। मसलन, सुन्न शरीर में चेतना फूंकना, अफीम की लत छुड़ा देना, पाचन संतुलित रखना, आंख संबंधी समस्त रोगों से

राहत, आधासीसी (आधा सिरदर्द), एन्फ्लुएंजा, एक्जीमा, आंव आना, कान से संबंधी समस्त तकलीफों का निदान, खांसी, खुजली, गंजापन, गठिया, सूजन, घमौरी, जलोदर, जुकाम, जुएं-लीखें टायफॉइड, दमा, दस्त, दाद, नासूर, प्लेग, पथरी, पीलिया, पक्षाघात, पेचिश, ब्लडप्रेशर, भगंदर, मिर्गी, मोच, मोतिया बिंद, मुंहासे, रतौंधी, सूजाक, हैजा एवं हृदय रोग में नीम बेहद फायदेमन्द है।