कोविशील्ड वैक्सीन का निर्माण करने वाली कम्पनी एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड ने ब्रिटेन की अदालत में स्वीकार किया है कि उसकी कोविड वैक्सीन के कुछ दुष्प्रभाव हुए हैं । कम्पनी ने कहा है कि कुछ ही दुर्लभ मामलों में खून के थक्के बनने और प्लेटलेट कम होने की संभावना है । कंपनी ने स्वीकार किया है कि अत्यंत दुर्लभ मामलों में टीका थ्रोम्बोसिस थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम(टीटीएस) का कारण बन सकता है । कंपनी ने उन लोगों के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त की है जिन्होंने वैक्सीन के साइड इफेक्ट के कारण अपने परिवारजनों को खो दिया है या उन्हें किसी गंभीर समस्या का सामना करना पड़ा है । हमारे देश में अधिकतर लोगों को कोविशील्ड वैक्सीन लगी हुई है । भारत में कोविशील्ड का उत्पादन पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट एस्ट्राजेनेका से मिले फार्मूले से करता है । कंपनी ने अपनी वेबसाइट पर 19 अगस्त 2021 को कोविशील्ड वैक्सीन लगाने की वजह से होने वाले साइड इफेक्ट की जानकारी दी हुई है ।
कंपनी ने कहा है कि इस टीके की वजह से टीटीएस की समस्या हो सकती है लेकिन साथ ही कंपनी ने कहा है कि यह समस्या केवल एक लाख में एक से भी कम लोगों में हो सकती है । इसके अलावा कंपनी ने कहा है कि टीका लगवाने के बाद दिल की धड़कन में बदलाव, सांस फूलना या सांस लेने के दौरान सीटी जैसी आवाज आने की समस्या हो सकती है । होंठ, चेहरे या गले में सूजन की समस्या भी हो सकती है । इसके अलावा भी कंपनी में कुछ समस्याओं के पैदा होने का आशंका जताई है ।
देखा जाये तो जो बात कंपनी ने अभी अदालत में कही है, वो दो साल पहले ही उसने दुनिया के सामने कबूल कर ली थी । जब से यह खबर भारत में आई है, तब से एक अंजाना सा डर लोगों में फैल गया है । इस डर को फैलाने का काम मीडिया भी कर रहा है । कंपनी के बयान के बाद मोदी विरोधी लोगों को मौका मिल गया है और सोशल मीडिया में यह विमर्श फैलाने की कोशिश की जा रही है कि मोदी सरकार ने एक खतरनाक टीका भारत की जनता को लगा दिया है । वास्तव में एलोपैथी में हर दवा का कुछ न कुछ साइड इफेक्ट होता ही है । यहां तक कि सबसे हल्की दवा पैरासिटामोल के भी कुछ साइड इफेक्ट होते हैं लेकिन बुखार आने पर हम बिना साइड इफेक्ट की चिंता करे, उसे खा लेते हैं । एंटीबायोटिक दवाइयों के साइड इफेक्ट तो बहुत ज्यादा है लेकिन जरूरत पड़ने पर उन्हें खाना पड़ता है । आजकल तो लोग बिना जरूरत के भी एंटीबायोटिक लेने लगे हैं । कुछ दवाइयों के तो इतना ज्यादा साइड इफेक्ट होते हैं कि उनको पढ़ने के बाद खाते हुए डर लगता है लेकिन खाना पड़ता है और कुछ नहीं होता ।
वास्तव में दवाईयों पर परीक्षण के दौरान कुछ लोगों को साइड इफेक्ट होते हैं और कंपनी उन्हें ही बताती है । कोविशील्ड लगवाने में जो खतरा बताया गया है, वो एक लाख लोगों में सिर्फ एक आदमी को हो सकता है लेकिन कोरोना के खतरे से ये बहुत कम है । कोरोना होने पर एक लाख लोगों में से एक से दो हजार लोगों की जान जाने का खतरा था, ऐसे में देखा जाये तो ये वैक्सीन जान बचाने के लिए बहुत जरूरी थी । यूरोप और अमेरिका में इस वैक्सीन के कारण कई लोगों को जान गंवानी पड़ी लेकिन भारत में इस वैक्सीन के कारण बहुत कम लोगों को तकलीफ हुई । वास्तव में अगर हम दवाइयों से होने वाले साइड इफेक्ट की चिंता करते हैं तो हम किसी भी बीमारी का इलाज नहीं करवा सकते लेकिन बीमारी से बचने के लिए दवाइयां लेनी पड़ती है । अगर साइड इफेक्ट के डर से दवाई नहीं ली जाती है तो वैसे ही जान गंवानी पड़ सकती है ।
कोरोना के बाद कुछ लोगों के अचानक हृदयाघात से मरने की खबरें आ रही हैं । कुछ लोगों के जिम में कसरत करते हुए हृदयाघात से मरने की खबर मिली हैं. इसके अलावा कई युवा खेलते समय हृदयघात से मारे गये हैं, इसलिए लोगों में यह डर फैल रहा है कि क्या हम भी ऐसे ही चलते-फिरते मर सकते हैं । यह डर इसलिए है क्योंकि टीटीएस में प्लेटलेट अचानक बहुत कम हो जाते हैं, इसके अलावा खून में थक्के बन सकते हैं जिसके कारण अचानक हृदयाघात हो सकता है । हमारे देश में 200 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन की डोज दी गई हैं और उसमे से 175 करोड़ डोज कोविशील्ड की वैक्सीन की दी गई है । इसलिए इस डर का होना स्वाभाविक है कि क्या इस वैक्सीन के कारण हमें भी ऐसा कुछ हो सकता है । सवाल उठता है कि अब कंपनी को यह बात अदालत में क्यों कहनी पड़ी है, जिसके कारण मीडिया शोर मचा रहा है । ब्रिटेन के एक नागरिक जेमी स्कॉट ने अदालत में एक केस किया हुआ है कि उसने अप्रैल 2021 में इस वैक्सीन का एक डोज लिया था जिसके बाद उसके दिमाग को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचा है क्योंकि उसके शरीर में रक्त के थक्के बन गये थे ।
टेलीग्राफ का कहना है कि यूके के हाईकोर्ट में 51 केस इस मामले में चल रहे हैं । इनमें से कुछ पीड़ित हैं और कुछ पीड़ितों के रिश्तेदार हैं, जो कंपनी से हर्जाने के रूप में 100 मिलीयन पाउंड मांग रहे हैं । देखा जाये तो एक बड़ा केस यूके की अदालत में चल रहा है । कंपनी ने इस केस के कारण अदालत में स्वीकार कर लिया है कि उनके नुकसान का सम्बन्ध वैक्सीन से है । सवाल यह है कि जो बात कंपनी ने दस्तावेजों में पहले ही स्वीकार की हुई थी और अपनी वेबसाइट पर भी लिखा हुआ है, उसके लिए अब क्यों शोर मचाया जा रहा है ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार दस लाख लोगों में वैक्सीन लगाने पर सिर्फ चार लोगों को टीटीएस की समस्या हो सकती है जो कि बहुत कम है । यूरोपीय यूनियन में यह वैक्सीन देने पर एक लाख लोगों में से एक आदमी को यह समस्या हो सकती है । भारत की बात तो बिल्कुल अलग है, यहां दस लाख लोगों को वैक्सीन देने पर सिर्फ 0.6 लोगों को ही इस समस्या का सामना करना पड़ा है । इसका मतलब है कि सत्रह लाख लोगों में वैक्सीन लगाने पर सिर्फ एक आदमी को इस समस्या का सामना करना पड़ा है । भारत में 16 जनवरी 2021 को वैक्सीन लगाने की प्रक्रिया शुरू की गई थी । 175 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाने के बाद हमारे देश में सिर्फ 26 लोगों को इस समस्या का सामना करना पड़ा, क्या अब भी चिंता करने की बात है । जून 2023 में सरकार की एक कमेटी ने कहा कि भारत में वैक्सीन लगवाने वाले लोगों में सिर्फ 37 लोगों को इस समस्या का सामना करना पड़ा है और उसमें से सिर्फ 18 लोगों की मौत हुई है । इस तरह से देखा जाये तो वैक्सीन ने लाखों लोगों को मौत के मुंह में जाने से बचा लिया और कोरोना भी दुनिया से लगभग खत्म हो गया है ।
कोरोना के कारण एक बार ऐसा वक्त भी आ गया था कि हर आदमी को लग रहा था कि वो किसी भी वक्त कोरोना से मर सकता है । सरकार ने यह भी कहा कि इस समस्या के ज्यादातर मामले 2021 में ही सामने आये थे, जब पहली डोज दी गई थी । कोविशील्ड का कोरोना से सुरक्षा देने का रिकार्ड उससे होने वाले नुकसान से कहीं ज्यादा है । विशेषज्ञों की राय तो कहती है कि ये न के बराबर है । एक रिपोर्ट यह भी कहती है कि टीटीएस के मामले एशिया और अफ्रीका में बहुत कम देखे गये हैं जबकि इसकी तुलना में यूरोप में इसके मामले कहीं ज्यादा देखने में आये हैं । विश्व स्वास्थ्य संगठन की सुरक्षा सलाहकार समिति में रही डॉ गगनदीप कांग ने कहा है कि लोगों को यह भरोसा दिलाना जरूरी है कि टीटीएस का जोखिम टीकाकरण के तुरंत बाद होता है और अब हम बहुत आगे आ गये हैं । उनका कहने का मतलब यह है कि अब इससे बिल्कुल डरने की जरूरत नहीं है । अब इस वैक्सीन का कोई साइड इफेक्ट नहीं हो सकता । जब टीकाकरण हुआ था तब ज्यादा मामले सामने नहीं आये तो अब क्यों डर फैलाया जा रहा है । मीडिया और राजनीतिक कारणों से होने वाले शोर की तरफ ध्यान देने की जरूरत नहीं है । हम कोरोना और कोरोना वैक्सीन से होने वाले खतरे से बहुत आगे निकल आये हैं ।