सीमा पर चीन की साँस अटकी-भारत ने रैम्पेज मिसाइल तैनात कर दी

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इसमें कोई शक नहीं है कि इस कांटे के चुनावी माहौल में भी, मोदी सरकार सीमाएं सुरक्षित रखने के लिए भी उसी तरह जी जान से लगी है, जैसा कि उसे चुनावों के पहले या फिर बाद में लगना चाहिए था। देश की सुरक्षा मोदी सरकार की पहली प्राथमिकता में है। चीन को घुटनों के बल अपने सामने लाने के लिए मोदी सरकार वह सभी कुछ कर रही है जो पहले की सरकारों ने करने का सोचा तक नहीं था। इसी का परिणाम यह है कि समय समय पर भारत को आँख दिखाने वाला चीन भारत के हर रक्षा प्रयास का या तो स्वागत कर रहा है या फिर रस्म के तौर पर एक असहमति दिखा कर चुप हो जाता है।

इस चुनावी माहौल में संभव है कुछ लोगों की रूचि यह जानने मे न हो कि चुनावी माहौल के नेपथ्य में भी मोदी, भारतीय सेनायें और सशस्त्र बल चुनाव के नतीजों का इन्तजार कर रहे हैं या फिर वे समय का लाभ उठा कर अपनी स्थिति और शक्तिसमार्जन पर भी कुछ कर रहे हैं?। आखिर वे कर क्या कर रहे हैं?। अपनी सरकार चुनते समय यह जानना और भी अधिक आवश्यक हो जाता है। आपको गर्व और प्रसन्नता की बात अवगत कराते हैं कि भारतीय वायुसेना ने घोषणा की है कि इस बीच उसने चीन सीमा पर तैनात अपने सुखोई और मिग-29 लड़ाकू विमानों को इजराइल निर्मित रैंपेज मिसाइलों से लैस कर लिया है जो सुपरसॉनिक गति से 250 किलोमीटर दूर के लक्ष्यों को बेहद सटीक और यथार्थ परिशुद्धता के साथ मारक क्षमता रखती हैं।

ये रैंपेज मिजाइलें कितनी खतरनाक हैं और क्या कर सकती हैं, इसका एक उदाहरण हमने हाल में ईरान पर हुए इजराइल के जवाबी हमले के रूप में देखा था जहाँ इस्फहान इलाके मे तैनात ईरानी एयर डिफेंस प्रणाली के राडारों को भस्म कर इजराइल ने ईरान को सीधा संदेश दे दिया था कि जिस दिन हम कोई वास्तविक हमला करेंगे, उस दिन तुम्हारे ये राडार ही सबसे पहले ध्वस्त किये जायेंगे जिन पर तुम को गर्व है. तुम्हारी वायु रक्षा प्रणाली को हमारे, आने और हमला करने की हवा तक नहीं लगेगी और इजराइली लडाकू विमान पलक झपकते तुम्हारे सबसे सुरक्षित आंतरिक क्षेत्र में घुस कर सारी सुरक्षा व्यवस्थाओं को स्वाहा कर देंगे।

इस सन्दर्भ मे विशेष गौर करने वाली बात यह भी है कि रैंपेज मिसाइलें भारतीय वायुसेना ने उसी स्पेशल फंड से खरीदी हैं जिसके अंतर्गत हमारी तीनों सेनाओं को किसी भी आपात जरूरत के लिए बिना लंबी चौड़ी मंत्रिमंडलीय प्रक्रिया से गुजरे ही 300 करोड़ तक मूल्य की कोई भी स्थापित या नयी हथियार प्रणाली सीधे सीधे खरीदने का अधिकार, इस सरकार ने गलवन में चीनी हरकतें देखने के तुरंत बाद दे दिया था। जरा कल्पना करिये कि चीन के साथ संघर्ष के उन दिनों में यदि कांग्रेस सत्ता मे रही होती तो क्या हुआ होता। तब संभवतः मनमोहन सिंह हमारी सेनाओं को सलाह देते कि वे तनाव बढ़ाने वाले कदमों से परहेज करें और नयी मिसाइलें खरीदने वगैरह का तो सोचें भी नहीं क्योंकि पैसे पेड़ों पर नहीं उगते। यदि कोई खरीद हुई भी होती तो वह वायुसेना के स्तर पर आपातकाल गति में न होकर सरकार के स्तर पर दस वर्षीय निर्णय गति मे हुई होती और उसकी अनुमति भी विक्रेता कंपनी के ‘सुपर प्रधानमंत्री’ से स्वीकृति लेने के बाद ही दी गयी होती।

वस्तुत: इज़राइल ने हाल ही में ईरानी सैन्य अड्डे पर हमले में हवा से सतह पर मार करने वाली एक कुशल मिसाइल रैम्पेज का इस्तेमाल किया था। यह लंबी दूरी की , सुपरसोनिक , हवा से जमीन पर मार करने वाली , खोज रहित , सटीक मार करने वाली मिजायल है। स्मरणीय है कि इस मिजायल को इज़राइल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज और इज़राइली मिलिट्री इंडस्ट्रीज सिस्टम्स द्वारा विकसित किया गया था। इसे संचार और कमांड सेंटर, वायु सेना अड्डों, रखरखाव केंद्रों और बुनियादी ढांचे जैसे उच्च गुणवत्ता वाले, अच्छी तरह से संरक्षित लक्ष्यों को नष्ट करने के उद्देश्य से उपयोग के लिए विकसित किया गया है।

यह सुपरसोनिक गति से आक्रमण कर सकती है जिससे वायु रक्षा प्रणालियों के साथ इसकी पहचान करना और अवरोधन करना मुश्किल हो जाता है। यह 4.7 मीटर (15.4 फीट) लंबा ढांचा है और इसका कुल वजन 570 किलोग्राम है। इसकी मारक क्षमता 150 किलोग्राम विस्फोटक के साथ 190 मील (250 किलोमीटर) से अधिक है। इसमें विस्फोट विखंडन या सामान्य प्रयोजन वारहेड है। इसे किसी विमान से या स्टैंड-अलोन सिस्टम के रूप में दागा जा सकता है और यह जीपीएस/आईएनएस मार्गदर्शन नेविगेशन और एंटी-जैमिंग क्षमताओं का उपयोग करती है। यह भी स्मरणीय है कि यह उड़ान के बीच में अपने निर्धारित पथ को भी समायोजित कर सकती है ताकि जिस लक्ष्य को हिट करने के लिए इसे प्रोग्राम किया गया था, उस पर सटीक निशाना लगाया जा सके। यह दिन या रात, किसी भी मौसम की स्थिति में काम कर सकती है।

चीन ने भी ईरान जैसी हरकत 2019 में लद्दाख के गलवान में की थी। दरअसल 1996 में भारत सरकार और चीन के बीच हुए समझौते के अनुसार वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास नोमेंस लैंड पर दोनों देशों के सैनिक बगैर हथियारों के ही गश्त कर करेंगे। इसी समझौते के अनुसार गलवान में दोनों देश की सेना के बीच बातचीत के लिए जून 2019 में एक बैठक आयोजित की गई थी जिसमें हिस्सा लेने भारतीय सैनिक तो बगैर हथियारों के पहुंचे लेकिन चीनी सैनिक कटीले तार लगे लाठी डंडों के साथ आए और बिना किसी उकसावे के उन्होंने भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया मगर निहत्थे भारतीय सैनिकों ने बहादुरी से इसका जवाब देते हुए कई चीनी सैनिकों को ढेर कर दिया तथा सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण पहाड़ियों पर भी कब्जा कर लिया। भारत ने गलवान हमले के बाद चीनी सीमा पर अपनी रक्षा तैयारी पर और जोर देना शुरू कर दिया था। भारत ने चीनी सीमा पर हवाई सुरक्षा को इजरायल की तरह अभेद्य बनाने के लिए लद्दाख के पास नियोमा में नए हवाई अड्डे का निर्माण किया है। इसके अलावा दौलतबेग ओल्डी नमक हवाई पट्टी का भी विस्तार किया गया है। इन दोनों स्थानों से अब राफेल जैसे मारक लड़ाकू विमान उड़ान भर सकते हैं।

 हवाई हमले की पूर्व सूचना देने के लिए भारत ने आकाश नामक स्वदेशी एयरडिफेंस सिस्टम को भी चीनी सीमा पर तैनात कर दिया है। यह मिस्राइल लेजर सिस्टम से नियंत्रित होती है जिसका लक्ष्य से भटकना असंभव है। इसके अतिरिक्त दुश्मन पर मिसाइल से हमला करने के लिए आईजीएलए नामक मिसाइल के 120 लांचर भी सीमा पर तैनात कर दिए गए हैं। 1000 आधुनिक ड्रोन किसी भी खतरे से मुकाबले के लिए हमेशा तैयार रहते हैं मार्च में प्रधानमंत्री मोदी ने सेला पास नामक सुरंग का उद्घाटन किया था। 2010 से पहले लेह को भारत से जोड़ने के लिए केवल एक सड़क श्रीनगर लेह ही थी। अब लेह को एक और लंबी सुरंग द्वारा हिमाचल प्रदेश से भी जोड़ा जा चुका है। हिमाचल वाला सुरंग मार्ग बहुत सुरक्षित है जिस तक पाकिस्तान किसी भी दशा में पहुंचने की सोच ही नहीं सकता। इसी प्रकार चीन के सर्वाधिक लक्ष्य, अरुणाचल प्रदेश और लेह लद्दाख के लिए संचार व्यवस्था और सड़क मार्गों की सुचारू आल वेदर व्यवस्था से इन स्थानों की सुरक्षा व्यवस्था एकदम मजबूत हो गई है। भारत की इन रक्षा तैयारियों को देखकर अब चीन अपने बाल नोचने या फिर खम्भा नोचने के अलावा कुछ सोच भी नहीं सकता ।