भारत में राजनीतिक दलों को शिक्षा के क्षेत्र पर ध्यान देने की जरूरत : वीआईटी के कुलाधिपति

वाशिंगटन, ‘वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’ (वीआईटी) के कुलाधिपति गोविंदसामी विश्वनाथन ने कहा कि भारत में राजनीतिक दलों को शिक्षा क्षेत्र पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए क्योंकि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था सीधे तौर पर उसकी शिक्षा से जुड़ी होती है।

‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य को हासिल करना बेहद महत्वपूर्ण है, ऐसे में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का छह प्रतिशत शिक्षा के क्षेत्र में खर्च किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘वर्ष 2023 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 2,600 अमेरिकी डॉलर थी। ऐसे राज्य, जहां शिक्षा की स्थिति बेहतर है जैसे दक्षिणी राज्य या पश्चिमी राज्य, इन राज्यों में प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से ऊपर है।’’

विश्वनाथन ने कहा, ‘‘ दक्षिणी राज्यों में, प्रति व्यक्ति आय 3,500 से 4,000 अमेरिकी डॉलर तक है। इस मामले में केरल पहले स्थान पर, तेलंगाना दूसरे और तमिलनाडु तीसरे स्थान पर है… इन सभी राज्यों में प्रति व्यक्ति आय चार हजार अमेरिकी डॉलर के आसपास है। जबकि बिहार और उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय 1,000 अमेरिकी डॉलर से कम है क्योंकि ये राज्य शिक्षा में पिछड़े हुए हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘लोग इस बारे में जागरूक नहीं है। लोगों को इसके बारे में जागरूक करना होगा। राजनीतिक दल भी इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। जब तक हम शिक्षा पर ध्यान नहीं देंगे, आर्थिक रूप से हम ऊपर नहीं आ सकते। राज्य सरकारें और केंद्र सरकार एक साथ विमर्श करें और शिक्षा के लिए पर्याप्त धन का आवंटन सुनिश्चित करें।’’

वीआईटी के संस्थापक विश्वनाथन को अंतरराष्ट्रीय उच्च शिक्षा में उनके योगदान के लिए 10 मई को बिंघमटन में स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क (एसयूएनवाई) द्वारा डॉक्टर ऑफ लॉ की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया।

बिंघमटन विश्वविद्यालय के प्रेसिडेंट हार्वे स्टेंजर ने कहा, ‘‘कुलाधिपति विश्वनाथन भारत में उच्च शिक्षा तक लोगों की पहुंच को बढ़ाने और दुनियाभर के संस्थानों के साथ साझेदारी करने में अग्रणी रहे हैं।’’

रविवार को, समुदाय के सदस्य और वीआईटी के पूर्व छात्र उन्हें सम्मानित करने के लिए वाशिंगटन डीसी के वर्जीनिया उपनगर आर्लिंगटन में इकट्ठा हुए।

एक सवाल के जवाब में विश्वनाथन ने कहा कि शिक्षा पर जीडीपी का छह फीसदी खर्च करने की मांग लंबे समय से की जा रही है, लेकिन आजादी के 76 वर्षों में यह खर्च कभी भी तीन प्रतिशत से अधिक नहीं हुआ।

उन्होंने कहा, ‘‘इस साल इसमें और भी कमी की गई है। पिछले साल शिक्षा के क्षेत्र में खर्च जीडीपी का तीन फीसदी था। इस वर्ष यह 2.9 फीसदी हो गया है क्योंकि वे शिक्षा को प्राथमिकता नहीं दे रहे हैं। अन्य क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जा रही है। इसे बदलना होगा और केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार दोनों विमर्श के साथ तय करें कि साल-दर-साल इसमें बढ़ोतरी की जाए।’’