अक्षय तृतीया पर विशेष बालिका वधुओं को पढ़ाने वाले धन्नाराम की प्रेरणास्पद कहानी
Focus News 10 May 2024राजस्थान में बाल विवाह एक बड़ी समस्या है। हर साल अक्षय तृतीय के अबूझे सावे पर राज्य में हजारों बच्चे वैवाहिक बंधन में बांध दिए जाते हैं। न्यायपालिका के कड़े आदेशों, सरकार के अभियानों और सख्त कानूनों के बावजूद राज्य में बाल विवाह पर लगाम नहीं लग पाई है। भले ही गांव-देहात के लोगों को बच्चों का विवाह न करने के लिए मनाना मुश्किल है मगर फिर भी अनेक संगठन एवं लोग इस बुराई के खात्मे के लिए जुटे हुए हैं। ऐसे लोगों में शामिल हैं नागौर जिले के सामाजिक कार्यकर्ता धन्नाराम नायक, जो बाल विवाह के खिलाफ कई दशकों से मुहिम चलाए हुए हैं। धन्नाराम नागौर जिले में जायल तहसील के झाड़ेली गांव में उरमूल खेजड़ी संस्थान नामक गैर सरकारी संस्था चलाते हैं। उन्होंने इस संस्था के जरिए न केवल बाल विवाह के खिलाफ अलख जगाई है बल्कि बचपन में ब्याह दी गईं गांवों की लड़कियों को शिक्षित कर उन्हें मुकाम तक पहुंचाया है।
मुझे धन्नाराम के काम को नजदीक से देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मैंने पत्रकारिता के लंबे कॅरियर में चार साल तक नागौर में काम किया है। इस दौरान मुझे धन्नाराम और उनकी संस्था की गतिविधियों को देखने का अवसर मिला। एक बार जब मैं झाड़ेली गांव में उरमूल खेजड़ी संस्थान में गया तो वहां दर्जनों छोटी उम्र की लड़कियां पढ़ाई करती हुई मिलीं। इनमें से कइयों के हाथों में मेहंदी और मांग में सिंदूर सजा देख मुझे हैरानी हुई। साफ पता चल रहा था कि उनकी बच्चियों का छोटी उम्र में ही विवाह कर दिया गया है।
दरअसल, नागौर जिले में अशिक्षा और रूढिय़ों के कारण ज्यादातर बच्चों की शादी होश संभालने से पहले ही कर दी जाती है। लोग बड़ी बेटियों के साथ छोटी कम उम्र बच्चियों के हाथ भी पीले कर देते हैं लेकिन गौना उसके सयानी होने के बाद किया जाता है। धन्नाराम ने अपने साथियों के साथ वर्ष 2004 में आसपास के गांवों में सर्वे किया तो ऐसी बच्चियों की बड़ी तादाद सामने आई जो कभी स्कूल नहीं गई थीं या फिर जिन्होंने थोड़े समय के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी। इनमें ऐसी नाबालिग बच्चियां भी थीं, जिनकी शादी हो चुकी थी। पूछने पर शादीशुदा बच्चियों ने पढऩे में दिलचस्पी दिखाई। उन्होंने ऐसी लड़कियों को चिन्हित किया और गौना होने तक उन्हें पढ़ाने के लिए उनके परिजनों को राजी कर लिया।
उस समय क्षेत्र में बाल विवाह की समस्या को देख धन्नाराम ने दो काम शुरू किए। एक तो वह ग्रामीणों को बाल विवाह नहीं करने के लिए के लिए प्रेरित करने लगे। दूसरा यह कि जो लोग बाल विवाह करने पर अड़े रहे तो उन्हें विवाहित बच्चियों को पढ़ाने के लिए राजी करना शुरू किया। उन्हें दूसरे काम में ज्यादा सफलता मिली। ग्रामीण उरमूल खेजड़ी संस्था के शिक्षा शिविरों में बच्चियों को पढऩे भेजने लगे। साथ ही शिविर में पढक़र जाने वाले किसी भी किशोर अथवा किशोरी का विवाह उनके परिजनों ने निर्धारित से कम आयु में नहीं किया है, यह धन्नाराम की विशिष्ट उपलब्धि है।
दरअसल, धन्नाराम ने झाड़ेली में बीस साल पहले वर्ष 2004-05 में शिक्षा से वंचित 11 से 20 वर्ष आयु वर्ग की बालिकाओं को पढ़ाने के लिए आवासीय शिविरों का सिलसिला शुरू किया था। पहले शिविर में 98 बालिकाएं आईं, जिनमें 25 विवाहित थीं। इसके बाद इन शिविरों में सैकड़ों बालिका वधुओं को पढ़ाया गया। शिविरों में पढ़ाई के बाद अनेक विवाहित लड़कियों ने आठवीं व दसवीं पास कर ली। यह सिलसिला आगे भी इसी प्रकार चला। बाल विवाह के बाद पढऩे वाली लड़कियों में एक कैलाशी भी थी, जिसने वहां आवासीय व्यवस्था में रहकर दसवीं की परीक्षा पास की। बाद में वह अपने ससुराल तंवरा में सरपंच चुनी गई। ऐसी कई लड़कियां हैं जिनके जीवन में धन्नाराम की कोशिशों से बदलाव आया। धन्नाराम अब भी बाल विवाह नहीं करने के लिए लोगों को प्रेरित करने में जुटे हैं।
राजस्थान में बाल विवाह की समस्या व्यापक है। राज्य में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की ओर से वर्ष 2019-21 तक किए गए एक सर्वे के अनुसार अधिक बाल विवाह वाले राज्यों में राजस्थान सातवें स्थान पर है। सर्वे मेंं राज्य में 25.4 फीसदी बालिकाओं का बाल विवाह होना पाया गया। राज्य में शहरी क्षेत्रों में अब भी 15.1 फीसदी तो ग्रामीण क्षेत्रों में 28.3 फीसदी बालिकाओं के विवाह किए जा रहे हैं। राज्य में बाल विवाह के मामलों में चित्तौडग़ढ़ जिला सबसे आगे है. यहां 42.6 फीसदी बाल विवाह होने पाए गए। भीलवाड़ा 41.8 फीसदी के साथ दूसरे स्थान पर है, जबकि झालावाड़ में 37.8 फीसदी बाल विवाह के साथ तीसरे स्थान पर है। नागौर, अजमेर, जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, बीकानेर, सिरोही, फलौदी, बालोतरा आदि जिलों में भी बड़ी तादाद में बाल विवाह होते हैं। धन्नाराम जी के प्रयास भले ही चंद गांवों तक सीमित हों लेकिन उन्हें छोटा नहीं कहा जा सकता। उनके प्रयास महत्वपूर्ण हैं। अगर उनकी तरह हर कोई अपने आसपास के क्षेत्र में करना शुरू कर दे तो यह बाल विवाह की समस्या को समाप्त करने में बड़ा योगदान साबित हो सकता है।
धन्नाराम जी 38 सालों से नागौर जिले में जल संरक्षण, बंधुआ मजदूरों की मुक्ति व पुनार्वास, वंचित एवं मजदूर वर्गों के जीवन में सुधार लाने, युवाओं में कौशल विकास, दिव्यांग कल्याण, स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच जैसे काम भी कर रहे हैं। उनसे प्रेरणा ली जानी चाहिए।
अमरपाल सिंह वर्मा
मुझे धन्नाराम के काम को नजदीक से देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मैंने पत्रकारिता के लंबे कॅरियर में चार साल तक नागौर में काम किया है। इस दौरान मुझे धन्नाराम और उनकी संस्था की गतिविधियों को देखने का अवसर मिला। एक बार जब मैं झाड़ेली गांव में उरमूल खेजड़ी संस्थान में गया तो वहां दर्जनों छोटी उम्र की लड़कियां पढ़ाई करती हुई मिलीं। इनमें से कइयों के हाथों में मेहंदी और मांग में सिंदूर सजा देख मुझे हैरानी हुई। साफ पता चल रहा था कि उनकी बच्चियों का छोटी उम्र में ही विवाह कर दिया गया है।
दरअसल, नागौर जिले में अशिक्षा और रूढिय़ों के कारण ज्यादातर बच्चों की शादी होश संभालने से पहले ही कर दी जाती है। लोग बड़ी बेटियों के साथ छोटी कम उम्र बच्चियों के हाथ भी पीले कर देते हैं लेकिन गौना उसके सयानी होने के बाद किया जाता है। धन्नाराम ने अपने साथियों के साथ वर्ष 2004 में आसपास के गांवों में सर्वे किया तो ऐसी बच्चियों की बड़ी तादाद सामने आई जो कभी स्कूल नहीं गई थीं या फिर जिन्होंने थोड़े समय के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी। इनमें ऐसी नाबालिग बच्चियां भी थीं, जिनकी शादी हो चुकी थी। पूछने पर शादीशुदा बच्चियों ने पढऩे में दिलचस्पी दिखाई। उन्होंने ऐसी लड़कियों को चिन्हित किया और गौना होने तक उन्हें पढ़ाने के लिए उनके परिजनों को राजी कर लिया।
उस समय क्षेत्र में बाल विवाह की समस्या को देख धन्नाराम ने दो काम शुरू किए। एक तो वह ग्रामीणों को बाल विवाह नहीं करने के लिए के लिए प्रेरित करने लगे। दूसरा यह कि जो लोग बाल विवाह करने पर अड़े रहे तो उन्हें विवाहित बच्चियों को पढ़ाने के लिए राजी करना शुरू किया। उन्हें दूसरे काम में ज्यादा सफलता मिली। ग्रामीण उरमूल खेजड़ी संस्था के शिक्षा शिविरों में बच्चियों को पढऩे भेजने लगे। साथ ही शिविर में पढक़र जाने वाले किसी भी किशोर अथवा किशोरी का विवाह उनके परिजनों ने निर्धारित से कम आयु में नहीं किया है, यह धन्नाराम की विशिष्ट उपलब्धि है।
दरअसल, धन्नाराम ने झाड़ेली में बीस साल पहले वर्ष 2004-05 में शिक्षा से वंचित 11 से 20 वर्ष आयु वर्ग की बालिकाओं को पढ़ाने के लिए आवासीय शिविरों का सिलसिला शुरू किया था। पहले शिविर में 98 बालिकाएं आईं, जिनमें 25 विवाहित थीं। इसके बाद इन शिविरों में सैकड़ों बालिका वधुओं को पढ़ाया गया। शिविरों में पढ़ाई के बाद अनेक विवाहित लड़कियों ने आठवीं व दसवीं पास कर ली। यह सिलसिला आगे भी इसी प्रकार चला। बाल विवाह के बाद पढऩे वाली लड़कियों में एक कैलाशी भी थी, जिसने वहां आवासीय व्यवस्था में रहकर दसवीं की परीक्षा पास की। बाद में वह अपने ससुराल तंवरा में सरपंच चुनी गई। ऐसी कई लड़कियां हैं जिनके जीवन में धन्नाराम की कोशिशों से बदलाव आया। धन्नाराम अब भी बाल विवाह नहीं करने के लिए लोगों को प्रेरित करने में जुटे हैं।
राजस्थान में बाल विवाह की समस्या व्यापक है। राज्य में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की ओर से वर्ष 2019-21 तक किए गए एक सर्वे के अनुसार अधिक बाल विवाह वाले राज्यों में राजस्थान सातवें स्थान पर है। सर्वे मेंं राज्य में 25.4 फीसदी बालिकाओं का बाल विवाह होना पाया गया। राज्य में शहरी क्षेत्रों में अब भी 15.1 फीसदी तो ग्रामीण क्षेत्रों में 28.3 फीसदी बालिकाओं के विवाह किए जा रहे हैं। राज्य में बाल विवाह के मामलों में चित्तौडग़ढ़ जिला सबसे आगे है. यहां 42.6 फीसदी बाल विवाह होने पाए गए। भीलवाड़ा 41.8 फीसदी के साथ दूसरे स्थान पर है, जबकि झालावाड़ में 37.8 फीसदी बाल विवाह के साथ तीसरे स्थान पर है। नागौर, अजमेर, जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, बीकानेर, सिरोही, फलौदी, बालोतरा आदि जिलों में भी बड़ी तादाद में बाल विवाह होते हैं। धन्नाराम जी के प्रयास भले ही चंद गांवों तक सीमित हों लेकिन उन्हें छोटा नहीं कहा जा सकता। उनके प्रयास महत्वपूर्ण हैं। अगर उनकी तरह हर कोई अपने आसपास के क्षेत्र में करना शुरू कर दे तो यह बाल विवाह की समस्या को समाप्त करने में बड़ा योगदान साबित हो सकता है।
धन्नाराम जी 38 सालों से नागौर जिले में जल संरक्षण, बंधुआ मजदूरों की मुक्ति व पुनार्वास, वंचित एवं मजदूर वर्गों के जीवन में सुधार लाने, युवाओं में कौशल विकास, दिव्यांग कल्याण, स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच जैसे काम भी कर रहे हैं। उनसे प्रेरणा ली जानी चाहिए।
अमरपाल सिंह वर्मा