दिल्ली रिज में अवैध निर्माण को लेकर डीडीए के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश

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नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति ने शीर्ष अदालत के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए और केंद्र की मंजूरी के बिना दक्षिण दिल्ली के रिज क्षेत्र में अवैध निर्माण और लगभग 750 पेड़ काटने पर दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की है।

शीर्ष अदालत को सौंपी गई एक रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) ने कहा कि पिछले साल दिसंबर में, डीडीए ने मुख्य छतरपुर रोड से सार्क विश्वविद्यालय, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल चिकित्सा विज्ञान संस्थान और अन्य प्रतिष्ठान तक एक पहुंच मार्ग के निर्माण के लिए रिज जैसी विशेषताओं वाली एक भूमि आवंटित की थी। उसने कहा कि यह वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम, 1980 के प्रावधानों का उल्लंघन करके किया गया था।

सीईसी ने कहा कि सड़क के निर्माण के लिए गैर-वन क्षेत्र में 222 पेड़ दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1994 के तहत अनुमति के बिना काटे गए हैं, और ‘‘रिज जैसी विशेषताओं’’ वाले क्षेत्र में 523 पेड़ वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम, 1980 और उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के तहत केंद्र सरकार की बिना मंजूरी के काटे गए हैं।

समिति ने मामले की जांच तब की जब एक शिकायतकर्ता ने दावा किया कि स्थानीय अधिकारियों ने भू-माफिया और दिल्ली सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों की संलिप्तता के कारण सड़क के अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई नहीं की।

दिल्ली रिज अरावली पर्वतमाला का एक चट्टानी विस्तार है जो उत्तर में दिल्ली विश्वविद्यालय से लेकर दक्षिण और उससे आगे तक फैला हुआ है। यह 7,777 हेक्टेयर में फैला हुआ है और इसमें उत्तरी रिज (87 हेक्टेयर), मध्य रिज (864 हेक्टेयर), दक्षिण मध्य रिज (626 हेक्टेयर) और दक्षिणी रिज (6,200 हेक्टेयर) शामिल हैं।

वर्ष 1994 में, दिल्ली सरकार ने दिल्ली रिज को एक आरक्षित वन के रूप में अधिसूचित किया, जिसे आमतौर पर ‘अधिसूचित रिज क्षेत्र’ कहा जाता है। ‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’, रिज क्षेत्र के उस हिस्से को संदर्भित करता है ‘‘जिसमें रिज जैसी विशेषताएं हैं लेकिन यह एक अधिसूचित वन नहीं है’’।

दिल्ली रिज और रिज जैसी विशेषताओं वाले क्षेत्रों में किसी भी निर्माण के लिए दिल्ली के मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाले रिज प्रबंधन बोर्ड से अनुमति और केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) के माध्यम से उच्चतम न्यायालय से मंजूरी की आवश्यकता होती है।