मप्र: एक लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूरों को मतदान के वास्ते बुलाने के लिए विशेष कॉल सेंटर शुरू
Focus News 25 April 2024अलीराजपुर (मध्यप्रदेश), अलीराजपुर के जिलाधिकारी कार्यालय परिसर में खास तौर पर बनाए गए कॉल सेंटर में काम कर रहीं सुनीता खरत रोजगार के लिए गुजरात गए आदिवासी मजदूरों को फोन करके उन्हें लोकसभा चुनाव के लिए मतदान का बुलावा देने में व्यस्त हैं।
खरत उन 30 महिला कर्मचारियों में शामिल हैं जिन्हें इस काम का जिम्मा सौंपा गया है।
झाबुआ-रतलाम लोकसभा क्षेत्र में कुल 1.10 लाख प्रवासी मजदूरों को मतदान के लिए बुलाने के वास्ते अलीराजपुर के साथ ही झाबुआ में अलग-अलग कॉल सेंटर खोले गए हैं। मध्यप्रदेश का यह आदिवासी बहुल इलाका गुजरात से सटा है जहां के खेतों, कारखानों और भवन निर्माण क्षेत्र में मिलने वाली बेहतर मजदूरी के कारण ये श्रमिक अपनी मातृभूमि से सैकड़ों किलोमीटर दूर पलायन के लिए पिछले कई दशकों से मजबूर हैं।
जनजाति समुदाय के लिए आरक्षित झाबुआ-रतलाम सीट पर 20.9 लाख मतदाता 13 मई को उम्मीदवारों का भविष्य तय करेंगे।
अलीराजपुर के जिलाधिकारी अभय बेड़ेकर ने बृहस्पतिवार को “पीटीआई-भाषा” को बताया कि जिले में रोजगार के लिए गुजरात गए प्रवासी मजदूरों की तादाद लगभग 80,000 है और विशेष कॉल सेंटर के जरिये फोन करके उन्हें मतदान के वास्ते अपने गांव लौटने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
उन्होंने कहा, “प्रवासी मजदूरों का यह आंकड़ा आंखें खोलने वाला है क्योंकि समूचे अलीराजपुर जिले में करीब 5.80 लाख मतदाता हैं। ऐसे में इनमें से 80,000 मतदाताओं के रोजगार के लिए मध्यप्रदेश से बाहर रहने के कारण मतदान का प्रतिशत जाहिर तौर पर प्रभावित हो सकता है।”
बेड़ेकर ने कहा कि मौजूदा लोकसभा चुनाव में अच्छी बात यह है कि भगोरिया का त्योहार मनाने के बाद प्रवासी मजदूरों के कई परिवार अब भी अपने गांवों में हैं और उन्हें फोन करके अनुरोध किया जा रहा है कि वे 13 मई को मतदान के बाद ही गुजरात जाएं।
झाबुआ में भी जिला प्रशासन ने प्रवासी मजदूरों को मतदान का बुलावा देने के लिए कॉल सेंटर स्थापित किया है। इसमें सात महिला कर्मियों को नियुक्त किया गया है।
झाबुआ की जिलाधिकारी नेहा मीना ने बताया, “हमारे द्वारा गांव-गांव से जुटाए आंकड़ों के मुताबिक जिले के 5,000 से ज्यादा परिवारों ने मजदूरी के लिए गुजरात पलायन किया है। इनमें मतदाताओं की तादाद 27,000 से 30,000 के बीच है।”
उन्होंने बताया, “हम कॉल सेंटर के जरिये इन परिवारों के मुखियाओं से संपर्क कर रहे हैं। हम उनसे अपील कर रहे हैं कि वे अपने गांव लौटकर जरूर मतदान करें।”
मीना ने बताया कि झाबुआ का प्रशासन प्रवासी मजदूरों को मतदान के वास्ते प्रोत्साहित करने के लिए अफसरों के दलों को गुजरात के उन 12 जिलों में भेजने पर भी विचार कर रहा है जहां ऐसे श्रमिकों की तादाद काफी ज्यादा है।
उन्होंने कहा, “मतदान की तारीख 13 मई के आस-पास आदिवासी समुदाय में कई शादियां होने वाली हैं। ऐसे में हम उम्मीद कर रहे हैं कि झाबुआ जिले के प्रवासी मजदूर अपने गांव लौटेंगे जिससे मतदान के प्रतिशत में सुधार होगा।”
गुजरात के जामनगर जिले के एक खेत में मजदूरी करने वाले दिलीप मावी (30) का कहना है कि कॉल सेंटर से फोन आने के बाद वह वोट डालने के लिए अलीराजपुर जिले के अपने गांव कदवाल आने के बारे में सोच रहे हैं।
वैसे मावी जैसे हजारों प्रवासी श्रमिकों को अपने गांव आना-जाना आर्थिक रूप से भारी पड़ता है।
मावी ने बताया कि जामनगर से बस के जरिये अपने गांव आने में उन्हें 600 रुपये किराया लगता है, जबकि गुजरात में उन्हें 350 रुपये की दैनिक मजदूरी मिलती है।
विकास के तमाम सरकारी दावों के बावजूद, अलीराजपुर और झाबुआ जिलों में रोजगार के लिए आदिवासियों के पलायन का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है।
प्रवासी मजदूरों का कहना है कि दोनों जिलों में रोजगार का अकाल है और पड़ोसी गुजरात में उन्हें बेहतर मजदूरी मिलती है।
अलीराजपुर जिले में प्रवासी मजदूरों के एक परिवार के युवा सदस्य दीप सिंह बताते हैं, “मेरे गांव के लगभग हर घर से कोई न कोई व्यक्ति मजदूरी के लिए गुजरात जाता है। गांव में हमारे लिए कोई काम-धंधा नहीं है।”