क्या विचारों का वजन होता है?

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विचारों में वजन होता है अथवा नहीं? यह विचार ही अपने आप में बहुत विवादित लगता है। भला विचारों का क्या वजन?

 

जैसे हवा होती अवश्य है लेकिन दिखलाई नहीं देती, अनुभव होती है किन्तु उसका दबाव और वजन अनुभव में नहीं आता है। इसी तरह विचार भी हैं जो दिखलाई नहीं देते लेकिन उनका वजन है अथवा नहीं जानना एक विषम बात है। मस्तिष्क में उठने वाली समस्त तरंगें जो किसी विषय पर केन्द्रित, अकेन्द्रित हों वह विचार कहलाते हैं। शिक्षित-अशिक्षित सब में विचार आने की उत्पादकता विद्यमान होती है, लेकिन विचार का आम व्यक्ति उत्पत्ति स्थल मन को मानता है।


विचार मन में उठते हैं। अक्सर बोलचाल की भाषा में- मन में विचार आने की बात को हम उपयोग में भी लेते हैं। लेकिन पूरे शरीर में मन कहां है? यदि पूरे शरीर का विच्छेदन कर दें तो मन नाम का अंश कहीं मौजूद नहीं होता है। हृदय मन नहीं है और हृदय के मांस पिण्ड में विचारों का जन्म नहीं होता है क्योंकि उसका मुख्य कार्य रक्त का संचलन है। इसलिए मुख्य रूप से विचार का आना और निर्विचार होना प्रमुख रूप से मस्तिष्क का ही कार्य है।

 

 मस्तिष्क के प्रत्येक भाग में प्रत्येक भाव की अनुभूति एवं उसको विश्लेषित करने की अपार क्षमता होती है। मनुष्य के विकसित मस्तिष्क में दृश्य और अदृश्य बहुत सी संभावनाएं छिपी होती हैं।


पुन: हम अपने मूल प्रश्न पर लौटते हैं कि- विचारों में वजन होता है या नहीं? विचारों में दम होता है और वजन भीहोता है। हम इस बात से समझने कीकोशिश करेंगे कि विचारों में वजन होता है- मूलरूप से जो छोटे बच्चे होते हैं जो कि पूर्णत: विचार शून्य होते हैं, जो कि नहीं जानते कि रिश्ते क्या होते हैं, तथा कहां क्या बोलना है? सामने वाले को कितना सम्मान देना है इत्यादि। अतएव वह इन बंधनों से मुक्त होकर पूरी तरह से हल्के होते हैं। हंसना, खेलना, जिद करना उनके जीवन के प्रमुख अंश होते हैं लेकिन जैसे-जैसे वह बालक बड़ा होता है उसे हम शिक्षित करते हैं, सोचना-विचारना सिखलाते हैं परिणाम स्वरूप वह धीरे-धीरे संबंधों, रिश्तों को निभाना सीखता जाता है। शिष्टाचार को जानने समझने लगता है। रिश्तों पर विचार करने लगता है और देखते-देखते वह गंभीर होता जाता है। शिक्षा ग्रहण करते-करते वह विचारशील हो जाता है। प्रत्येक कार्य को विचार पूर्वक करता है। परिणाम स्वरूप उन विचारों, शिक्षा का प्रभाव उसके जीवन पर पडऩे लगता है। यह प्रभाव इतना अधिक बलशाली होता है कि उनके जीवन में विचारों का प्रभाव दिखलाई देने लगता है। इसी दबाव, इसी वजन में वह जीवन जीने लगता है। परिणाम स्वरूप उसके आचार-विचार और व्यवहार में विचारों का वजन स्पष्ट दिखलाई देने लगता है।


प्रश्न अब यह उठता है कि शिक्षा के चलते यह वजन आया अथवा विचारों के चलते? स्पष्ट है कि यह वजन शिक्षा से नहीं बल्कि शिक्षित होने पर उठे विचारों के चलते यह परिणाम सामने आया। विचारों से मुक्त हो जाना अथवा विचार शून्य हो जाना ध्यान प्रक्रिया का एक हिस्सा है जो स्वयम् को खाली करने की प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत मनुष्य खाली होकर पुन: बच्चों की तरह स्वयम् को ईष्र्यारहित, हल्का अनुभव करने लगता है। विचारों के वजन से मुक्त होना सम्भव नहीं है लेकिन उसे हल्का कर लेना सम्भव है। यह सम्भव है कि यदि हम बाल सुलभ कार्य करें। ध्यान की एक प्रक्रिया है जिसमें आपको एक घण्टे बाल सुलभ क्रियाकलाप करना होता है जो कि बहुत कठिन प्रक्रिया है जिसमें तोतला बोलना, बच्चों जैसे चलना, मस्ती करना याने एक घण्टे आप स्वयम् को बालक ही अनुभव करते हैं। एक निश्चित समय उपरान्त आप में परिवर्तन दिखलाई देने लगता है कि जो विचार आपको दबाव में डाल देते थे, वजनदार बना देते थे वह आते हैं और चले जाते हैं। उनका कोई भी वजन आप मन-मस्तिष्क-शरीर पर अनुभव नहीं करते हैं। विचारों के वजन से आप मुक्त हो जाते हैं। अतएव यह स्पष्ट होता है कि विचारों में वजन होता है और यह प्रतिदिन के कार्यकलापों पर प्रभाव डालते हैं। इससे मुक्त नहीं हो सकते हैं लेकिन इसे कम जरूर किया जा सकता है। यह विचारों का दबाव ही अंतत: हृदयाघात, मानसिक रोगों का कारण बनता है। अतएव स्वयम् को प्रत्येक दिन विचारों से मुक्त कराने हेतु प्रयास करें, बाल ध्यान क्रिया को अपनाएं ताकि आप भार शून्य हो सकें।