राष्ट्रमंडल की तर्ज पर भारतमंडलम भी बने

raastra-madal

आज यह सवाल सिर्फ भारत सरकार या उसके राजनैतिक समाज से नहीं है, यह भारतीय उपमहाद्वीप के उन सभी देशों के लिए भी है जिन्होंने राष्ट्रमंडल के तर्ज पर भारतमंडल के बारे में सोचा नहीं। ऐसा मंडल जो आज अपनी साझी विरासत के बदौलत एक ऐसे राष्ट्रों का समूह बन सकता है जो दुनिया का सबसे बहुरंगी और शक्तिशाली होगा. आज के दौर में समय के बृहद पड़ाव पर अखंड भारत से अलग हुए कई देश अपने स्वतंत्र अस्तित्व में हैं. ऐसे में सघन राष्ट्रवाद के इस दौर में राजनैतिक अखंड भारत की कल्पना शायद वर्तमान समय की परिधि से बाहर है लेकिन इस संयुक्त धरा की साझा संस्कृति मेलजोल और साझे इतिहास को जोड़ने हेतु दुनिया में इस तरह के कई मॉडल उपलब्ध हैं जो अलग अलग देशों के स्वतंत्र राष्ट्र के अस्तित्व और राष्ट्रवाद को बरकरार रखते हुए भी उन्हें एक सूत्र में जोड़ता है. उदाहरण के तौर पर यूरोपीय संघ, गल्फ कोआपरेटिव कौंसिल जिसे जीसीसी भी कहते हैं या राष्ट्रमंडल संगठन। अगर हम कोई ऐसी कल्पना करें कि अखंड भारत के स्वतंत्र देश एक कॉमन चार्टर के तहत उपलब्ध सभी मॉडलों का अध्ययन करते हुए एक नए मॉडल भारत-मंडल के रूप में सामने आते हैं तो यह साकार होने जैसा है.

आधुनिक दौर के कई राष्ट्र जो इस मंडल के सदस्य बन सकते हैं उसमें है भारत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, तिब्बत, म्यांमार, थाईलैंड और श्रीलंका के साथ-साथ कंबोडिया, मलेशिया, वियतनाम और इंडोनेशिया . इन सब के पुराने इतिहास और नाम के तार इस पूरे परिक्षेत्र के पुराने सम्बन्ध को बयां करते हैं कि कैसे यह पूर्व में भी अलग अलग राज्य के रूप में थे लेकिन सांस्कृतिक या साझे इतिहास के रूप में एक दूसरे से जुड़े थे और यह साझी संस्कृति और विरासत इसकी स्थापना का सूत्र होगा. आज का अफगानिस्तान जहां  गांधार और कम्बोज के नाम से था, पाकिस्तान सिंध और बलोच नाम से था, नेपाल देवघर नाम से था, भूटान विदेही जनपद का हिस्सा कुछ लोग बताते हैं, तिब्बत त्रिविष्टप नाम से था, म्यांमार को ब्रह्मदेश बुलाते थे, श्री लंका सिंघली द्वीप चोल और पांडया साम्राज्य के तहत आता था. वर्तमान  वर्तमान के मलेशिया, सिंगापुर  कंबोडिया, वियतनाम, थाईलैंड, इंडोनेशिया मलय प्रायदीप के कभी हिस्से थे. सिंगापुर सिंह पूर के नाम से जाना जाता था, थाईलैंड का पुराना नाम श्यामदेश था।  इंडोनेशिया में भी हिन्दू राजाओं का ही शासन था, कंबोडिया कंबुज देश था.  कंबोडिया पर वर्मन राजाओं का राज था. इसी प्रकार वियतनाम का पुराना नाम चंपा था. इन पुराने नाम के आधार पर अगर इन राष्ट्रों के स्वतंत्र आस्तित्व और सम्प्रभुता को अक्षुण्ण रखते हुए अगर भारत मंडल बना इन्हे यूरोपीय संघ या राष्ट्रमंडल की तरह पिरोया जाये तो दुनिया का सबसे समृद्धशाली और अर्थशक्ति क्षेत्र के रूप में यह देश उभर सकता है.

इस संघ से सांस्कृतिक संबंधों की पुनर्स्थापना के साथ साथ आर्थिक व्यापार कई गुना हो जायेगा। पर्यटन में अभूतपूर्व वृद्धि हो सकती है तथा एक दूसरे देश में जाने की अनावश्यक औपचारिकताओं से मुक्ति मिलने पर स्वतंत्र पारगमन सौदों से लगायत संबंधों को और बढ़ाएगा। साझी विरासत साझी संस्कृति के साथ विवाद मुक्त व संघर्ष मुक्त  युद्ध विहीन समाज की स्थापना संभव होगा और मजहब आधारित हिंसा का खात्मा होगा.

इसके क्रियान्वयन के तहत सबसे पहले इन सारे देशों के साथ वार्ता शुरू की जाय, फिर उन बिंदुओं को चिन्हित किया जाय जहां समझौता हो सकता है और इस दिशा में धीरे धीरे आगे बढ़ा जाये जिसमें सबसे पहले है राष्ट्रमंडल खेलों की तरह अंतरराष्ट्रीय भारत-मंडल खेल प्रतियोगिता का आयोजन जिसमें सभी सम्बद्ध देशों के खिलाडी आयें और प्रति वर्ष यह भारत-मंडल के अलग अलग देशों में आयोजित हो. दूसरे चरण में भारत-मंडल देशों के मध्य अंतरराष्ट्रीय  सांस्कृतिक प्रतियोगिता का आयोजन किया जाय. तीसरे चरण के रूप में आपस में सारे देश वीसा ऑन एराइवल की सुविधा के साथ पारगमन को और आसान बना सकते हैं और जहां जहां वीसा शुल्क हो, उसे माफ़ कर सकते हैं. चौथे चरण में नाटो के तर्ज पर कॉमन नेवी के रूप में एक सुरक्षा समझौता कर सकते हैं. यूरो की तरह एक मान्य कॉमन करेंसी के प्रयोग से आपस में व्यापार की गति को बढ़ा सकते हैं और पश्चिमी देशों से आयात निर्भरता को काफी कम कर सकते हैं.

कुल मिलाकर अखंड भारत आज के इस वैश्विक व्यवस्था में एक देश के रूप में तो चिन्हित नहीं हो सकता लेकिन भारत मंडल का स्वप्न साकार किया जा  सकता है. यह लगभग वैसे ही होगा जैसे कि पूर्व में था, सारे राज्य अपने अपने अस्तित्व में और संस्कृति सभ्यता के डोर से एक सूत्र में बंधे होंगे. भारत की धरा जो हजारों साल पहले से सबसे गौरवशाली धरा थी, अपने पहचान को पुनः प्राप्त करेगी. रही बात नाम की तो भारत-मंडल के साथ अन्य नामों पर विचार किया  जो अखंड भारत, जम्बूदीप मंडल, आर्याव्रत मंडल या सबके सुझाव से कई अन्य नाम हो सकते हैं. यह मंडल की स्थापना ही इन देशों के नागरिकों के मध्य एक बॉन्डिंग पैदा करेगी और आज की पीढ़ी अपने इतिहास, संस्कृति और सभ्यता के बारे में जानने को खूब लालायित होगी. पाकिस्तान के कारण शुरू में इसमें रुकावट आ सकती है लेकिन एक बार उनके भी बात समझ में आ गई तो पलायन के दर्द को हम काफी कर सकते हैं तथा चीन के जोखिम से भी सुरक्षा मिल सकती है. इस अवधारणा के साथ ही भारत को बुद्ध को मानने वाले देशों का भी एक संगठन बनाने की पहल करनी चाहिए जैसे कि OIC है, भारत, भारत मंडल के साथ साथ इसमें भी लीड ले सकता है .