रुग्ण बनाती है प्रकृति के विरुद्ध दिनचर्या

प्यारे बच्चो! मुझे आज भी बचपन अच्छा लगता है। बल्कि यह कहूँ कि आप से मिलकर मैं स्वयं बच्चा बन जाता हूँ। बचपन से उम्र बढऩे तक बहुत पड़ाव आते हैं। लेकिन बचपन की सुखद स्मृतियाँ मानस पटल पर चलचित्र की तरह चलती रहती हैं।


जिस तरह मैं बचपन में नित्य ही सूर्य उगने से पहले जगता था  और जल्दी सोता था,  वही क्रम आज भी जारी है। भोर में जगकर मुझे अपार आनंद की प्राप्ति होती है। योग, व्यायाम आदि होता है। पक्षियों और पौधों से बातें होती हैं। कुछ लिखना पढऩा हो जाता है।

 किशोरावस्था और युवावस्था में भी मैं विद्यार्थी जीवन में भोर में जगकर पढ़ाई करता था।  देर रात में जगकर पढऩा तो प्रकृति के विरुद्ध मुझे लगता रहा है।


जीवन की यात्रा धीरे – धीरे प्रभु आगे बढ़ा रहे हैं। जो कुछ भी है, सब कुछ उसको ही सौंप दिया है। मेरा कुछ नहीं । अब तक का अनुभव कहता है कि मनुष्य जो चाहता है वह कर्मशील रहते हुए भी वह स्वप्न पूरे नहीं कर पाता है। अब केवल मन संकल्पित रहता है कि सब कुछ निष्काम भाव से चलता रहे। वह नित्य ही नया मार्ग दिखाया करता है। हम समझ ही नहीं पाते हैं।


देर रात तक जगने के लोगों ने तर्क कुतर्क ढूंढ लिए हैं। कोरोना महामारी ने भी लोगों को सबक नहीं दिया। टीवी और मोबाइल संस्कृति ने मनुष्य के जीवन में ऐसा ग्रहण लगाया है कि वह प्रभु की बनाई सृष्टि पर ही प्रश्नचिन्ह लगाता रहता है।


हम अपनी दिनचर्या में विषमताओं में भी सुचारू बनाने का प्रयास करते हैं। वही जगकर पेटभर गुनगुने जल का पान। तुरंत ही पक्षियों के लिए पारले की बिस्किटें, बाजरा, रोटी आदि तीन जगह डालते हैं। सैकड़ों पक्षी रोज ही हमारे मेहमान बनते हैं। उनमें होते हैं तोते, गौरैयाँ, बुलबुल, कबूतर, फाख्ता, गिलहरी, कौवे,  कोयल और अन्य पक्षी। रोज ही खुशियों को बाँटते हैं।


हम जब मुरादाबाद में नहीं होते हैं तब हमारी अनुपस्थिति में  सेविका जी पक्षियों के लिए दाना पानी। बिस्किट आदि डालती हैं। पौधों को पानी और बाहरी हिस्से की सफाई व्यवस्था आदि करती हैं।


फिर हम हल्की दौड़ कपालभाति प्राणायाम करते हुए योग करते हैं। आजकल काफी दिनों से एक जगह बैठकर भी कपालभाति प्राणायाम अधिक चल रहा है। कुछ शारीरिक व्याधियों को ठीक करने के लिए। कभी घर में। कभी छत पर तो कभी पार्क में। सब कुछ समयानुकूल और परिस्थितियों के अनुसार। लेकिन हम कंपकपी वाली ठंड में भी नहीं रुकते हैं। साथ ही प्रभु का स्मरण और ध्यान भी नित्य करते हैं। और स्वस्थ रहने की हर कोशिश करते हैं।
फिर हम प्रात: काल के जलपान में सुविधा अनुसार आटा की ब्रेड या बासी दो रोटियाँ हर्बल चाय के साथ दूध मिश्रित लेते हैं। आयुर्वेद कहता है कि हमें सुबह का जलपान  आठ बजे के आसपास अच्छी तरह से कर लेना चाहिए। क्योंकि शरीर सुबह सात बजे से 10 बजे के बीच कुछ विशेष रस बनाता है। सब कुछ चबा-चबा कर ही खाना चाहिए। जल भी डेढ़ घंटे बाद सिप करके लेना चाहिए।
आज मैं देख रहा हूँ कि लोगों की दिनचर्या में बड़ा बदलाव आया है। आधुनिकता में ढले लोग देर रात तक सोते हैं और सुबह को देर से जगकर   अन्य कामों को जल्दबाजी में कर दिल को बीमार बनाते हैं तथा अन्य मानसिक व शारीरिक बीमारियों को आमंत्रण देते हैं। क्रोध करते हैं, अशांत रहते हैं। शांति प्रिय मनुष्य को अशांत कर अपने को धन्य समझते हैं।


 अधिकांश   परिवारों का यही हाल है। इसका प्यारे बच्चों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है। उनका भविष्य दाँव पर लग गया है। लोग टीवी चैनलों पर फूहड़ सीरियल और मोबाइल पर सीरिज बेवजह ही देखकर मानसिक व शारीरिक बीमारियों को निमंत्रित कर रहे हैं। हमारे शरीर की इम्युनिटी तभी बढ़ती है जब हम प्रकृति के अनुकूल चलते हैं। क्योंकि हम प्रकृति के अनुकूल नहीं चलेंगे तो बीमारी और अधिक घेरेंगी। कारण है आजकल हवा प्रदूषित है। सुबह कुछ ठीक रहती है। इसलिए हमें योग अवश्य करना चाहिए। खाने – पीने की चीजों में मिलावट है, इसलिए हमें सब कुछ सोच समझकर ही आहार के रूप में लेना चाहिए। तभी हम अपने को स्वस्थ रख सकते हैं। अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं। नहीं तो मनुष्य का जीवन ही व्यर्थ है। ईश्वर ने मनुष्य को ही सबसे सुन्दरतम करती कृति बनाया है। इसलिए वर्तमान जब अच्छा रहेगा तब भविष्य अपने आप सुन्दरतम बन जाएगा।