निर्वाचन आयोग भारत के दूरस्थ क्षेत्र के अंतिम मतदाता तक पहुंचने के लिए प्रयासरत

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नयी दिल्ली,  जंगलों और बर्फ से ढके पहाड़ों को पार करते हुए, जीवन रक्षक जैकेट पहनकर नदियों से होकर गुजरते हुए, मीलों तक पैदल यात्रा करते हुए और घोड़ों तथा हाथियों पर ईवीएम ले जाते हुए, निर्वाचन आयोग के दल देश के कोने-कोने में, दूरस्थ क्षेत्रों में और सबसे दुर्गम स्थानों तक पहुंचते हैं ताकि कोई भी मतदाता मताधिकार से वंचित न रह जाए।

समुद्र तल से 15,000 फुट ऊंचाई पर दुनिया के सबसे ऊंचे मतदान केंद्र से लेकर एक टापू में शिपिंग कंटेनर में बनाए गए बूथ तक, आयोग दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव कराने की तैयारी कर रहा है।

मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि उद्देश्य यह है कि ‘‘कोई भी मतदाता मताधिकार से वंचित न रह जाए।’’

इस महीने की शुरुआत में 18वीं लोकसभा के चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा करते हुए कुमार ने कहा था, ‘‘हम इसलिए अधिक से अधिक दूरी तय करेंगे ताकि मतदाताओं को न चलना पड़े। हम बर्फीले पहाड़ों और जंगलों में जाएंगे। हम घोड़ों, हेलीकॉप्टरों और पुलों से जाएंगे और यहां तक ​​कि हाथियों और खच्चरों पर भी सवारी करेंगे ताकि हर कोई मतदान करने में सक्षम हो सके।’’



आगामी लोकसभा चुनावों में, मणिपुर के आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों के लिए राहत शिविरों में 94 विशेष मतदान केंद्र स्थापित किए जाएंगे। पिछले साल मई से मणिपुर में मेइती और आदिवासी कुकी समुदायों के बीच जातीय संघर्ष में 200 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है।

राहत शिविरों में या उसके निकट स्थापित किए जाने वाले इन बूथ पर 50,000 से अधिक विस्थापित लोग मतदान करने के पात्र होंगे।

आयोग के रिकॉर्ड के अनुसार, हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति में ताशीगांग में समुद्र तल से 15,256 फुट की ऊंचाई पर स्थित दुनिया का सबसे ऊंचा मतदान केंद्र है।

आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘गांव के सभी 52 मतदाताओं ने कड़ाके की ठंड के बावजूद 12 नवंबर, 2022 को अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। हिमाचल प्रदेश में 65 मतदान केंद्र 10,000 से 12,000 फुट की ऊंचाई पर थे और 20 मतदान केंद्र समुद्र तल से 12,000 फुट की ऊंचाई पर थे।’’

मेघालय में, वेस्ट जयंतिया हिल्स जिले के कामसिंग गांव में एक नदी किनारे स्थित मतदान केंद्र के लिए मतदान कर्मियों को ‘लाइफ जैकेट’ पहनकर गोताखोरों के साथ जाना पड़ा।

निर्वाचन आयोग के अनुसार, ‘‘सुपारी की खेती और सौर ऊर्जा पर निर्भर इस गांव में मेघालय का दूरस्थ मतदान केंद्र है। यह जोवाई जिला मुख्यालय से 69 किलोमीटर दूर और उप-जिला मुख्यालय (तहसीलदार कार्यालय) अमलारेम से 44 किलोमीटर दूर स्थित है जहां किसी मोटर वाहन से नहीं बल्कि छोटी देसी नावों द्वारा ही पहुंचा जा सकता है।’

इस ब्योरे में यह भी कहा गया है, ‘‘भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित इस गांव तक पहुंचने के लिए क्रूज से एक घंटे की यात्रा करनी पड़ती है। गांव में रहने वाले 23 परिवारों के 35 मतदाताओं (20 पुरुष और 15 महिलाओं) के लिए गांव में एक मतदान केंद्र स्थापित किया गया था। मतदान कर्मियों को वहां जाने के लिए लाइफ जैकेट पहननी पड़ी और कुछ गोताखोरों के साथ वे मतदान केंद्र गए।’’

चुनाव संबंधी जानकारी पर आयोग द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘‘लीप ऑफ फेथ’’ के अनुसार, गिर के जंगलों में स्थित बानेज गांव में 2007 से केवल एक मतदाता – महंत हरिदासजी उदासीन – के लिए एक विशेष मतदान केंद्र स्थापित किया गया है। वह इलाके में स्थित एक शिव मंदिर में पुजारी हैं।

मंदिर के पास वन कार्यालय में एक बूथ बनाया गया है। बूथ स्थापित करने और एकमात्र मतदाता को उसके मताधिकार का अवसर देने के लिए आवश्यक व्यवस्था की खातिर एक विशिष्ट मतदान कर्मी दल नियुक्त किया जाता है।

पुस्तक में कहा गया है, ‘‘बाणेश्वर महादेव मंदिर, एशियाई शेरों के अंतिम प्राकृतिक पर्यावास गिर जंगल के अंदर है। जंगली जानवरों के डर से राजनीतिक दल इस क्षेत्र में प्रचार नहीं करते। 10 सदस्यीय मतदान दल ने एक मतदाता की खातिर बूथ स्थापित करने के लिए 25 किलोमीटर की यात्रा की।’’

‘‘लीप ऑफ फेथ’’ पुस्तिका में लिखा है, ‘‘हरिदास उदासीन महंत भरतदास दर्शनदास के उत्तराधिकारी हैं, जो नवंबर, 2019 में निधन से पहले लगभग दो दशक तक मतदान केंद्र के एकमात्र मतदाता रहे थे।’’

अरुणाचल प्रदेश के मालोगाम में सिर्फ एक मतदाता वाले एक गांव में, चुनाव कर्मियों ने 2019 में घुमावदार पहाड़ी सड़कों और नदी घाटियों के रास्ते चार दिन में 300 मील की यात्रा की थी। मालोगाम चीन के साथ लगने वाली सीमा के करीब, अरुणाचल प्रदेश में जंगली पहाड़ों में एक दूरस्थ गांव है।

गिर सोमनाथ जिले के तलाला क्षेत्र में 14वीं और 17वीं शताब्दी के बीच भारत आए पूर्वी अफ्रीकियों के वंशज सिद्दियों के लिए भी मतदान केंद्र बनाए गए हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, क्षेत्र में ऐसे 3,500 से अधिक मतदाता हैं।

आयोग के अभिलेखों के अनुसार, सिद्दियों ने 17वीं शताब्दी में मुरुद के पास जंजीरा द्वीप पर शासन किया जो महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले का एक तटीय शहर है। जंजीरा ब्रिटिश भारत में एक रियासत थी, जिसमें जाफराबाद भी शामिल था जो अब गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में है।

किताब में कहा गया है, ‘‘गिर सोमनाथ जिले के जम्बूर गांव में सिद्दियों का बाहुल्य है, जो पहले जूनागढ़ रियासत का हिस्सा था। चुनावी इतिहास में पहली बार, 2022 के गुजरात चुनावों के दौरान, जंबूरा-मधुपुर में एक विशेष मतदान केंद्र स्थापित किया गया था। सिद्दीयों ने एक निर्दलीय उम्मीदवार को मैदान में उतारा था। जाम्बुरा में मतदान चुनाव के पहले चरण में हुआ था।’’

देश के पूर्वी तट पर, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में, निर्वाचन आयोग के दलों ने 2019 में नौ मतदाताओं के लिए मगरमच्छों से भरे दलदली इलाके को पार किया था।

गुजरात में 1,600 किलोमीटर लंबी तटरेखा है, जो किसी भी भारतीय राज्य में सबसे लंबी तटरेखा है। समुद्र में कई टापू हैं।

किताब में कहा गया है, ‘‘आयोग ने 2022 में टापुओं में पहली बार मतदान की सुविधा प्रदान की, जिससे मतदाताओं को मुख्य क्षेत्र की यात्रा करने की आवश्यकता नहीं पड़ी। भरूच जिले के आलियाबेट में, एक शिपिंग कंटेनर में एक मतदान केंद्र स्थापित किया गया था। 217 मतदाताओं के लिए न्यूनतम सुविधाओं का आश्वासन दिया गया था। उन्हें भरूच में निकटतम मतदान केंद्र पर मतदान करने के लिए 80 किलोमीटर से अधिक की यात्रा नहीं करनी पड़ी।’’

किताब में कहा गया है, ‘‘इसी तरह, अमरेली जिले के राजुला एसी के तहत द्वीपीय गांव सियालबेट में पांच मतदान केंद्र स्थापित किए गए थे। इससे गांव के 4,757 मतदाताओं को 15 किलोमीटर पैदल चलकर निकटतम शहर जाफराबाद की दूरी नहीं तय करनी पड़ी।’’

आयोग ने 2022 में ऐसे मतदान अधिकारियों के मानदेय को दोगुना करने का निर्णय लिया था, जिन्हें दूरदराज और दुर्गम क्षेत्रों में स्थित मतदान केंद्रों तक पहुंचने के उद्देश्य से तीन दिन पहले चुनाव ड्यूटी के लिए निकलना पड़ता है। पहले इनका मानदेय अन्य कर्मियों के बराबर था।

यह निर्णय मुख्य निर्वाचन आयुक्त कुमार की उत्तराखंड के चमोली जिले के डुमक और कलगोथ गांवों की यात्रा के बाद आया।

आयोग के एक अधिकारी ने कहा, ‘‘निर्वाचन कर्मियों ने बद्रीनाथ निर्वाचन क्षेत्र के मतदान केंद्रों तक पहुंचने के लिए तीन दिन में आठ किलोमीटर की पैदल यात्रा की, जहां 2022 में चुनाव हुए थे। मतदान अधिकारियों के साहस और दृढ़ संकल्प को रेखांकित करते हुए, उन्होंने सबसे सुरक्षित और सबसे छोटे मार्ग का संकेत देने वाले अद्यतन मार्ग नक्शों की आवश्यकता पर जोर दिया। ’’

साल 2022 में, निर्वाचन आयोग ने दुर्गम इलाकों में मतदान दलों को ईवीएम ले जाने के लिए पानी और झटकों से अप्रभावित रहने वाले विशेष ‘बैकपैक’ उपलब्ध कराने का भी निर्देश दिया था।