नयी दिल्ली, खनन कंपनियों संगठन भारतीय खनिज उद्योग महासंघ (फिमी) ने सरकार से निचले ग्रेड के लौह अयस्क पर कोई निर्यात शुल्क नहीं लगाने का आग्रह किया है। फिमी का कहना है कि इस तरह के किसी कदम से सरकार को राजस्व के अलावा रोजगार का नुकसान होगा और साथ ही विदेशी मुद्रा आय भी प्रभावित होगी।
सरकार को दिए ज्ञापन में फिमी ने कहा कि मई, 2022 में जब निचले ग्रेड के लौह अयस्क फाइंस और पेलेट्स पर निर्यात शुल्क लगाया गया था, तो खनन क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ था। हालांकि, सरकार ने पिछले साल नवंबर में इस कर को वापस ले लिया था।
देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में खनन क्षेत्र के योगदान का एक बड़ा हिस्सा गैर-कोयला खनिजों में लौह अयस्क का है। इसमें कहा गया है कि लौह अयस्क खनन भी लगभग पांच लाख लोगों (45,000 प्रत्यक्ष और 4,50,000 अप्रत्यक्ष) को रोजगार देकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
देश के कुल लौह अयस्क निर्यात का 90 प्रतिशत से अधिक चीन को जाता है। फिमी ने कहा, ‘‘हम अनुरोध करते हैं कि लौह अयस्क और पेलेट्स के निर्यात पर किसी तरह के प्रतिबंध के प्रस्ताव पर विचार नहीं किया जाए और इन उत्पादों पर शून्य निर्यात शुल्क की यथास्थिति बनाए रखी जाए।’’ नई खदानें खुलने और मौजूदा खानों के विस्तार से वित्त वर्ष 2024-25 में लौह अयस्क उत्पादन क्षमता बढ़कर 33 करोड़ टन होने की संभावना है। लेकिन अगर लौह अयस्क के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया जाता है या इसके निर्यात पर शुल्क लगाया जाता है, तो ऐसी स्थिति में उत्पादन घटकर 22.5 करोड़ टन रह जाएगा।
लौह अयस्क खनन में 25-30 प्रतिशत हिस्सा लंप्स का और शेष फाइंस होता है।