नयी दिल्ली उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि एहतियाती हिरासत एक कठोर उपाय है और शक्तियों के ‘‘मनमाने या नियमित प्रयोग’’ पर आधारित इस तरह के किसी भी कदम को शुरु में ही हतोत्साहित किया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने एक बंदी की अपील खारिज करने वाले तेलंगाना उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की।
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने बृहस्पतिवार को कहा कि निवारक हिरासत की आवश्यक अवधारणा यह है कि किसी व्यक्ति की हिरासत उसे उसके किए गए किसी काम के लिए दंडित करने के लिए नहीं है, बल्कि उसे ऐसा करने से रोकने के लिए है।
पीठ ने कहा, ‘‘निवारक हिरासत एक कठोर उपाय है, शक्तियों के मनमाने या नियमित अभ्यास के परिणामस्वरूप हिरासत के किसी भी आदेश को शुरुआत में ही हतोत्साहित किया जाना चाहिए।’’
याचिकाकर्ता को पिछले साल 12 सितंबर को तेलंगाना में राचाकोंडा पुलिस आयुक्त के आदेश पर तेलंगाना खतरनाक गतिविधियां रोकथाम अधिनियम, 1986 के तहत गिरफ्तार किया गया था। चार दिन बाद, तेलंगाना उच्च न्यायालय ने इसे चुनौती देने वाली आरोपी व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी थी।