घरेलू महिला क्रिकेटर्स का मेहनताना बढ़ा – सैलेरी बढ़ोतरी या लैंगिक न्याय की अधूरी कहानी?
Focus News 29 December 2025 0
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) द्वारा साल 2022 में महिला क्रिकेटर्स की सैलेरी पुरुष क्रिकेटर्स के समान करने का ऐतिहासिक फैसला लिया गया था। वहीं अब भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने घरेलू महिला क्रिकेटर्स की सैलेरी में भी दोगुना से ज्यादा इजाफा करते हुए बड़ा कदम उठाया है। अब घरेलू क्रिकेट में महिला खिलाड़ियों की मैच फीस पुरुष खिलाड़ियों के समान हो गई है।
बीसीसीआई ने अपनी हालिया एपेक्स काउंसिल मीटिंग में घरेलू महिला क्रिकेटरों की मैच फीस में बढ़ोतरी करने का फैसला किया। अब महिला खिलाड़ियों को घरेलू वनडे और मल्टी-डे (लंबे फॉर्मेट) मैचों में प्लेइंग इलेवन का हिस्सा होने पर प्रति दिन 50,000 रुपए मिलेंगे। वहीं, रिजर्व खिलाड़ियों को प्रति मैच 25,000 रुपए की राशि दी जाएगी। दूसरी ओर, टी20 मैचों के लिए प्लेइंग इलेवन की खिलाड़ियों को 25,000 रुपए और बेंच पर बैठी खिलाड़ियों को 12,500 रुपए प्रति मैच का भुगतान होगा। बता दें, इससे पहले सीनियर महिला खिलाड़ियों को प्लेइंग इलेवन में होने पर 20,000 रुपए और बेंच पर 10,000 रुपए मिलते थे। इसके अलावा जूनियर टूर्नामेंट में प्लेइंग इलेवन वाले खिलाड़ियों को 25,000 और रिजर्व में शामिल प्लेयर्स को 12,500 रुपए रोज मिलेंगे। ऐसे में अब घरेलू क्रिकेट में खेलने वाली महिला प्लेयर्स के सैलरी में दोगुना से भी ज्यादा का इजाफा हुआ है।
भारतीय महिला क्रिकेट ने लंबे समय तक वह चुप्पी झेली है जिसे इतिहास अक्सर प्रतिभाशाली लेकिन उपेक्षित वर्गों के हिस्से में लिख देता है। मैदान पर पसीना बहाने वाली महिला खिलाड़ी देश के लिए खेलती रहीं, लेकिन उनकी मेहनत का मूल्य वर्षों तक प्रतीकात्मक ही बना रहा। क्रिकेट जैसे लोकप्रिय खेल में भी महिला खिलाड़ियों को वह आर्थिक सम्मान नहीं मिल सका, जो उनके समर्पण और श्रम के अनुरूप होता। अब घरेलू महिला क्रिकेट में मेहनताना बढ़ाने का फैसला उस ऐतिहासिक चूक को सुधारने की दिशा में एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप है जिसे केवल खेल सुधार नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी देखा जाना चाहिए।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड द्वारा घरेलू महिला क्रिकेट की भुगतान संरचना में की गई बढ़ोतरी यह संकेत देती है कि भारतीय क्रिकेट प्रशासन अब महिला खेल को परिधि से निकालकर केंद्र में लाने के लिए तैयार है। यह निर्णय उस दौर में आया है जब महिला क्रिकेट ने दर्शकों, प्रायोजकों और खेल विशेषज्ञों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। क्योंकि खेल जगत लंबे समय से पुरुष-प्रधान रहा है—प्रशासन, विज्ञापन, प्रसारण और पुरस्कारों तक में लैंगिक असंतुलन दिखता है। अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय महिला टीम का प्रदर्शन, महिला प्रीमियर लीग की लोकप्रियता और बढ़ती दर्शक संख्या यह साबित कर चुकी है कि महिला क्रिकेट अब ‘विकल्प’ नहीं बल्कि मुख्यधारा का खेल बन चुका है। हाल ही में भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने साउथ अफ्रीका को हराकर महिला वनडे वर्ल्ड कप का खिताब जीता था। ऐसे में घरेलू ढांचे को मजबूत किए बिना आगे बढ़ना संभव नहीं था।
अब तक घरेलू महिला क्रिकेट खेलने वाली अधिकांश खिलाड़ी आर्थिक असुरक्षा के साये में अपना करियर गढ़ने की कोशिश करती रहीं। सीमित मैच फीस, अनियमित टूर्नामेंट और संसाधनों की कमी ने कई प्रतिभाओं को बीच रास्ते ही रोक दिया। अनेक खिलाड़ी पढ़ाई, नौकरी और खेल के बीच संतुलन बनाने के दबाव में जूझती रहीं। कई बार परिवारों को भी यह समझाना मुश्किल होता था कि क्रिकेट भविष्य दे सकता है। मेहनताना बढ़ने से यह भरोसा पैदा होगा कि महिला क्रिकेट केवल जुनून नहीं बल्कि सम्मानजनक पेशा भी बन सकता है।
महिला क्रिकेट टीम की सैलेरी में हुई बढ़ोतरी को महज एक खेल-संबंधी फैसला मान लेना उसके सामाजिक अर्थ को सीमित कर देना होगा। यह निर्णय दरअसल उस लैंगिक असमानता पर चोट है जो वर्षों से खेल की दुनिया में सामान्य मान ली गई थी। मैदान पर पसीना एक-सा बहता है, जोखिम समान होते हैं, देश का प्रतिनिधित्व भी बराबरी से किया जाता है, फिर वेतन में यह खाई क्यों? सैलरी बढ़ोतरी इसी असहज सवाल का आंशिक उत्तर है, पूरी न्यायिक मंजिल नहीं।
भारतीय महिला क्रिकेटरों ने पिछले वर्षों में न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगातार बेहतर प्रदर्शन किया है, बल्कि दर्शक संख्या, टीआरपी और खेल की लोकप्रियता में भी निर्णायक योगदान दिया है। इसके बावजूद उन्हें लंबे समय तक “प्रेरणा” की श्रेणी में रखा गया, पेशेवर सम्मान से दूर। पुरुष खिलाड़ियों की सफलता को उपलब्धि कहा गया, जबकि महिलाओं की उपलब्धि को संघर्ष कथा बनाकर प्रस्तुत किया गया। यह पितृसत्तात्मक दृष्टि अब सवालों के घेरे में है।
सैलेरी बढ़ोतरी का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह महिला खिलाड़ियों के अदृश्य श्रम को दृश्य बनाती है। वे सिर्फ विरोधी टीमों से नहीं, बल्कि सामाजिक पूर्वाग्रहों, संसाधनों की कमी और असुरक्षा से भी लड़ती हैं। यह वेतन वृद्धि उस संघर्ष की स्वीकारोक्ति है, जो अब तक आंकड़ों में दर्ज नहीं था।
घरेलू महिला क्रिकेट में यह सुधार उस व्यापक बदलाव का हिस्सा है, जिसकी मांग लंबे समय से उठ रही थी। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में मैच फीस की समानता की घोषणा पहले ही हो चुकी है। अब घरेलू स्तर पर यह कदम उस दिशा में निरंतरता का संकेत देता है। हालांकि पुरुष और महिला क्रिकेट के बीच अभी भी पूरी आर्थिक समानता नहीं है, लेकिन यह स्वीकार करना होगा कि बराबरी की यात्रा छोटे लेकिन निर्णायक कदमों से ही आगे बढ़ती है।
इस फैसले का सामाजिक पक्ष भी उतना ही महत्वपूर्ण है। भारत जैसे समाज में जहां आज भी कई जगह लड़कियों के लिए खेल को गंभीर करियर विकल्प नहीं माना जाता, वहां आर्थिक मान्यता सोच बदलने का सबसे सशक्त माध्यम बनती है। जब एक महिला खिलाड़ी अपने खेल से आत्मनिर्भर बनेगी तो वह केवल व्यक्तिगत सफलता नहीं हासिल करेगी, बल्कि सामाजिक रूढ़ियों को भी चुनौती देगी। इससे परिवारों और समाज का नजरिया बदलेगा और बेटियों को मैदान में उतरने से रोकने के बजाय प्रोत्साहित किया जाएगा।
यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि घरेलू क्रिकेट किसी भी खेल की रीढ़ होता है। यदि घरेलू स्तर मजबूत नहीं होगा, तो अंतरराष्ट्रीय सफलता टिकाऊ नहीं रह सकती। महिला क्रिकेट में यह सुधार राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ाएगा, चयन प्रक्रिया को अधिक व्यापक बनाएगा और छोटे शहरों व ग्रामीण क्षेत्रों की प्रतिभाओं को आगे आने का अवसर देगा। इससे भारतीय महिला टीम का स्वरूप और अधिक विविध तथा समावेशी बन सकेगा।
घरेलू टूर्नामेंटों की संख्या और गुणवत्ता बढ़ाना भी इस प्रक्रिया का अहम हिस्सा है। नियमित और प्रतिस्पर्धात्मक मैच ही खिलाड़ियों को निखारते हैं। साथ ही खिलाड़ियों के लिए शिक्षा, करियर संक्रमण और खेल के बाद के जीवन से जुड़ी योजनाओं पर भी विचार होना चाहिए। खेल जीवन सीमित होता है और उसके बाद की तैयारी समय रहते करना जरूरी है। यदि इन पहलुओं को नजरअंदाज किया गया, तो सुधार अधूरा रह जाएगा।
इसके बावजूद, घरेलू महिला क्रिकेट में मेहनताना बढ़ाने का फैसला भारतीय क्रिकेट के इतिहास में एक सकारात्मक मोड़ के रूप में दर्ज किया जाएगा। यह उन अनगिनत खिलाड़ियों के संघर्ष की मान्यता है जिन्होंने सीमित संसाधनों और सामाजिक दबावों के बावजूद मैदान नहीं छोड़ा। यह संदेश भी स्पष्ट है कि अब महिला क्रिकेट को उपेक्षित नहीं किया जा सकता।
भारतीय क्रिकेट यदि वास्तव में भविष्य की ओर देख रहा है, तो उसे इस फैसले को केवल एक घोषणा तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि इसे निरंतर नीति और व्यवहार का हिस्सा बनाना होगा। यदि यह प्रतिबद्धता बनी रही, तो आने वाले वर्षों में महिला क्रिकेट न केवल उपलब्धियों में, बल्कि संसाधनों और सम्मान में भी पुरुष क्रिकेट के समानांतर खड़ा दिखाई देगा। घरेलू महिला क्रिकेट में बढ़ा हुआ मेहनताना उसी भविष्य की बुनियाद है, जहां मैदान पर प्रतिभा का मूल्य लिंग से नहीं, प्रदर्शन से तय होगा।
महिला क्रिकेट टीम की सैलेरी बढ़ना एक सकारात्मक लेकिन अधूरा कदम है। हालांकि जेंडर दृष्टि से यह समान कार्य के लिए समान सम्मान की दिशा में पहला ठोस कदम माना जा सकता है पर असली जीत तब होगी जब खेल की दुनिया में महिला और पुरुष खिलाड़ियों को योग्यता, श्रम और उपलब्धि के आधार पर बिना लैंगिक भेदभाव के समान अवसर और सम्मान मिलेगा। (लेखक भारत अपडेट के संपादक हैं)
बाबूलाल नागा
