नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय नागरिकता संशोधन कानून, 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं का निस्तारण होने तक केंद्र को नागरिकता संशोधन नियमावली, 2024 के क्रियान्वयन पर रोक लगाने का निर्देश देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए शुक्रवार को सहमत हो गया।
भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की इन दलीलों पर गौर किया कि विस्थापित हिंदुओं को नागरिकता दिए जाने के बाद उसे वापस नहीं लिया जा सकता है और इसलिए इन मुद्दों पर तत्काल सुनवाई की आवश्यकता है।
सीजेआई ने कहा, ‘‘हम मंगलवार को इस पर सुनवाई करेंगे। 190 से अधिक मामले हैं। उन सभी पर सुनवाई की जाएगी। हम अंतरिम याचिकाओं के पूरे बैच की सुनवाई करेंगे।’’
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 237 याचिकाएं हैं और उन लंबित याचिकाओं में से चार अंतरिम याचिकाएं नियमों के क्रियान्वयन के खिलाफ दायर की गयी हैं।
भारत सरकार ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 लागू किया, जिससे 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत आए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने का मार्ग प्रशस्त हो गया। केंद्र ने संसद द्वारा इस विवादित अधिनियम के पारित होने के चार साल बाद नियमों को अधिसूचित किया है जिसके बाद ये याचिकाएं दायर की गयी हैं।
नागरिकता कानून को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक आईयूएमएल द्वारा दायर याचिका में अदालत से यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि मुस्लिम समुदाय के लोगों के खिलाफ कोई बलपूर्वक कार्रवाई न की जाए।
सीएए के तहत मुस्लिम भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं।