सरकार का इस्पात उत्पादन बढ़ाने, कच्चे माल की सुरक्षा पर होगा जोर

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नयी दिल्ली, 26 दिसंबर (भाषा) सरकार आने वाले वर्ष में इस्पात उत्पादन बढ़ाने और कच्चे माल की सुरक्षा को प्राथमिकता देती रहेगी, क्योंकि भारत 2030 तक 30 करोड़ टन की स्थापित इस्पात विनिर्माण क्षमता हासिल करने के अंतिम पांच वर्षों में प्रवेश कर चुका है।

क्षमता विस्तार के साथ ही कम कार्बन उत्सर्जन वाली प्रौद्योगिकियों को अपनाने, हरित इस्पात क्षमता को बढाने और घरेलू उद्योगों तथा निर्यात बाजारों की बदलती जरूरतों को पूरा करने के लिए विशेष और उच्च-स्तरीय इस्पात के उत्पादन पर जोर बना रहेगा। इस्पात मंत्रालय के एक अधिकारी ने यह जानकारी दी।

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कच्चा इस्पात उत्पादक है और सरकार की विभिन्न नीतियों के कारण इस्पात की मांग को लगातार समर्थन मिल रहा है। हालांकि उद्योग के सामने चुनौतियां भी हैं, जिनमें बढ़ता आयात, कच्चे माल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और वैश्विक व्यापार अनिश्चितताएं शामिल हैं। पहले से लागू सुरक्षा और एंटी-डंपिंग उपायों के बावजूद एशियाई बाजारों से आयात, घरेलू उत्पादकों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।

सरकार ने मई 2017 में महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय इस्पात नीति पेश की थी, जिसका लक्ष्य लगभग 10 लाख करोड़ रुपये के अनुमानित निवेश के साथ 20 करोड़ टन से अधिक इस्पात निर्माण क्षमता जोड़ना है।

शोध फर्म बिगमिंट के अनुसार नवंबर 2025 तक भारत की स्थापित इस्पात विनिर्माण क्षमता 23.5 करोड़ टन थी और वित्त वर्ष 2025-26 तक इसके लगभग इसी स्तर पर बने रहने का अनुमान है। उत्पादन 11 करोड़ टन के मौजूदा स्तर के मुकाबले 16.7 करोड़ टन रहने का अनुमान है। मार्च 2026 तक प्रति व्यक्ति इस्पात खपत 107 किलोग्राम रहने का अनुमान है, जबकि इस समय यह 105 किलोग्राम है।

इस्पात मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि सरकार ने घरेलू उद्योग की सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए हैं, जिनमें चीन और वियतनाम जैसे देशों से फ्लैट इस्पात उत्पादों के आयात पर सुरक्षा शुल्क और एंटी-डंपिंग शुल्क लगाना शामिल है।

मूल्यवर्धित इस्पात को बढ़ावा देने के लिए मंत्रालय ने उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना लागू की है, जिसके तहत रक्षा, विद्युत पारेषण, नवीकरणीय ऊर्जा, ऑटोमोबाइल और विमानन जैसे क्षेत्रों में इस्तेमाल होने वाले उच्च-स्तरीय और विशेष इस्पात के विनिर्माण के लिए वित्तीय प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं।

सरकार कच्चे माल की उपलब्धता को मजबूत करने पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है। अधिकारी ने कहा, ”कोकिंग कोयले के नए भंडारों की खोज की जा रही है और आपूर्ति में विविधता लाने के लिए हम संसाधन समृद्ध देशों के साथ बातचीत कर रहे हैं।”

लौह अयस्क के लिए नीलामी पहले से ही चल रही है और इस्पात निर्माताओं को इसमें भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।

जिंदल स्टील के चेयरमैन और भारतीय इस्पात संघ के अध्यक्ष नवीन जिंदल ने कहा कि भारत ने अच्छी प्रगति की है, लेकिन इसे और तेजी से लागू करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आगे का मार्ग निरंतर मांग सृजन, नीतिगत स्थिरता और साहसिक निवेश की मांग करता है।

उद्योग निकाय एसोचैम ने कहा कि सरकार का समर्थन महत्वपूर्ण रहा है, लेकिन कोकिंग कोयले की बढ़ती लागत, ऊंचे लॉजिस्टिक खर्च, रेलवे रेक की सीमित उपलब्धता और अवसंरचना की बाधाएं अब भी इस क्षेत्र पर दबाव बना रही हैं।

एसोचैम को नए साल में इस्पात की मांग बढ़ने की उम्मीद है और उसके मुताबिक गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों में आगे ढील दिए जाने की संभावना नहीं है।

उद्योग निकाय ने कहा, ”भारतीय इस्पात निर्यात पर दूसरे देश व्यापार प्रतिबंध बढ़ा रहे हैं। यदि यूरोपीय संघ और अमेरिका के साथ मुक्त व्यापार समझौते होते हैं, तो कुछ राहत मिल सकती है, जिससे घरेलू उद्योग को समर्थन मिलेगा।”

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