इस देश की पूर्व सरकारों की मानसिकता को क्या कहा जाय जिन्होंने जनता और राजा की सहमति से स्वतंत्र भारत में विलयित हुए एकमात्र ‘बफर स्टेट’ सिक्किम को अपने शासनकालों में राज्य के विकास और पर्यटन की अभिवृद्धि के लिए साठ सालों तक रेलवे लाइन तक से नहीं जोड़ा और ना ही एकाध रेलवे स्टेशन ही बनाने की जहमत उठाने का कष्ट किया। रेलमार्ग से सिक्किम जाने के लिए मात्र दो अंतिम रेलवे स्टेशन जलपाईगुड़ी और सिलीगुड़ी मात्र हैं जो पश्चिम बंगाल के क्षेत्र में हैं।
सिक्किम एक सीमावर्ती राज्य है जो तीन देशों से घिरा हुआ है। नेपाल, भूटान, और तिब्बत (चीन के कब्जे में) इतनी महत्वपूर्ण भौगोलिक स्थिति होने के बावजूद यह क्षेत्र रेलवे नेटवर्क से जुड़ा हुआ नहीं था और पूर्ववर्ती किसी भी सरकार ने इस पर कभी गंभीरता से ध्यान भी नहीं दिया। 2008 में कांग्रेसनीत संप्रग सरकार ने एक रेलवे लाइन की योजना बनाई और बिना योजना और अंतिम प्रकल्प के ही 2010 में इसे बनाने का ठेका भी दे दिया गया जिससे 2013 तक कोई काम ही नहीं हो सका क्योंकि लाइन का सुयोजन ही तय नहीं किया जा सका था। मतलब 5 सालों में एक भी काम नहीं हुआ। बाद में पर्यावरण मंजूरी नहीं मिली। काम अटक गया। नई मोदी सरकार ने मामला कोर्ट में गम्भीरता से लड़ा। 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने अनुमति दी। साथ ही कई प्रतिबंध भी लगा दिये क्योंकि रास्ते में जंगल थे। जहाँ कई प्रकार के जंगली जानवर भी रहते हैं। उनकी सुरक्षा के प्रबंध करने के आदेशों के अधीन निर्माण की अनुमति दी गयी।
भगवान का नाम लेकर काम शुरू हुआ और सिक्किम को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ने के लिए जोरों से काम चल रहा है। इस संदर्भ में, राष्ट्रीय ट्रांसपोर्टर ने टनल सिवोक-रंगपो रेल परियोजना (एसआरआरपी) के टी-03 नंबर के सफल निर्माण के साथ एक और मील का पत्थर गाढ़ दिया है। इसके साथ ही परियोजना में अब तक सात सुरंगों में खनन पूरा हो चुका है। इस साल के अंत तक यहाँ वन्दे भारत ट्रेन चल जायगी। प्रधानमंत्री मोदी ने सिक्किम के पहले रेलवे स्टेशन रांगपो के निर्माण कार्य की आधारशिला रख दी है। कुछ ही महीनों में यह तैयार भी हो जायेगा।
सिवोक-रंगपो रेल लाइन परियोजना ने अब तक 90 प्रतिशत की भौतिक प्रगति हासिल कर ली है। सिक्किम और पश्चिम बंगाल को जोड़ने वाली 45 किलोमीटर लंबी इस रेलवे लाइन में 14 सुरंगें, 17 पुल और 5 स्टेशन विनिर्मित होंगे। नई लाइन परियोजना उत्तर पूर्व सीमांत रेलवे (एनएफआर) क्षेत्र के प्रशासनिक नियंत्रण में आती है। संपूर्ण परियोजना का लगभग 38 किलोमीटर हिस्सा सुरंगों से होकर गुजर रहा है और रेलवे ने सुरंग बनाने का 90 प्रतिशत काम पहले ही पूरा कर लिया है। सुरंग खनन इसी वित्तीय वर्ष तक पूरा होने की उम्मीद है। फिलहाल रेलवे ने टनल टी-14 की फाइनल लाइनिंग का काम पूरा कर लिया है. सुरंगों – टी-02, टी-05, टी-09, टी-10, टी-11 और टी-12 पर भी लाइनिंग का काम चल रहा है। सिवोक-रंगपो नई रेल लाइन परियोजना को 2008-09 में बजट में शामिल किया गया था। कुल लंबाई में से 41.55 किमी पश्चिम बंगाल में और 3.41 किमी सिक्किम में पड़ती है। यह देश में चल रही प्रतिष्ठित राष्ट्रीय परियोजनाओं में से एक है। इसके पूरा होने पर, यह नई रेल लाइन परियोजना सिक्किम राज्य को देश के साथ वैकल्पिक संयोजन प्रदान करेगी। केंद्र सरकार चीन सीमा से सटे सिक्किम राज्य को 2024 में निश्चित रूप से रेल सेवा से जोड़ देगी। सरकार की इस अति महत्वाकांक्षी योजना पर लगभग 12,500 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। इससे देश की राजधानी दिल्ली और सिक्किम के बीच सीधी रेल सेवा उपलब्ध होगी। इसका फायदा देशी-विदेशी पर्यटकों सहित राज्य के आम रेल यात्रियों को होगा। राज्य में व्यापार और आर्थिक गतिविधियां बढ़ेंगी जिससे रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। सिवोक(पश्चिम बंगाल) और रंगपो (सिक्किम) को जोड़ने वाली यह नई रेल लिंक परियोजना लगभग 45 किलोमीटर लंबी है। 14 सुरंगें, 22 पुल और तीन रेलवे स्टेशन इसकी विशेषता है। रेललाइन की कुल लंबाई का 87 प्रतिशत हिस्सा सुरंगों से गुजरता है यानी 38 किलोमीटर हिस्सा सुरंग से होकर जाता है। स्मरणीय है कि यह पूरी परियोजना भूकंपीय चार और पांच क्षेत्रों में आती है। रेल मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले एक केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रम इरकान इंटरनेशनल के परियोजना निदेशक मोहिंदर सिंह ने एक प्रेस रिलीज में बताया कि योजना पर युद्ध स्तर पर अत्यधिक सावधानी के साथ कार्य चल रहा है क्योंकि पूरी परियोजना भूकंपीय चार और पांच क्षेत्रों में आती है। इसके अलावा, भूस्खलन और अचानक बाढ़ का खतरा हमेशा बना रहता है। चार देशों बांग्लादेश, नेपाल, चीन और भूटान के सीमावर्ती भारत के इस हिस्से को ‘चिकन नेक’ भी कहा जाता है। यह एक बहुत ही संवेदनशील क्षेत्र है। इस क्षेत्र में शेष भारत से संयोजन, पर्यटन स्थलों पर पर्यटन को बढ़ावा के साथ इस क्षेत्र की संवेदनशील सुरक्षा के लिए सैनिकों की आवाजाही में भी मदद मिलेगी।
पूर्व सीमांत रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी सब्यसाची डे ने बताया कि पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में हनुमान झोरा के पास स्थित 600 मीटर की एक निकासी टनल के साथ मुख्य टनल टी-04 की लंबाई 3948 मीटर है जबकि टी-13 की लंबाई 2560 मीटर है, जो परियोजना के पश्चिम बंगाल हिस्से का अंतिम टनल हैं और कलिम्पोंग जिले में स्थित है। मुख्य टनल हिमालय के अतिसंवेदनशील एवं चुनौतीपूर्ण भूगर्भीय और भूकंपीय स्थितियों से होकर गुजरती है। एसआरआरपी में अन्य सभी टनलों की तरह, भू-द्रव्यमान की भेद्यता का मुकाबला करने के लिए, नवीनतम और सबसे परिष्कृत टनलिंग तकनीक यानी न्यू ऑस्ट्रियाई टनलिंग मेथड (एनएटीएम) का उपयोग किया गया है। बंगाल और सिक्किम को जोड़ने वाली परियोजना 45 किलोमीटर लंबी है। डे ने बताया कि सिवाक (पश्चिम बंगाल) और रंगपो (सिक्किम) को जोड़ने वाली सिवाक-रंगपो नई रेल लिंक परियोजना लगभग 45 किलोमीटर लंबी है। इसमें 14 टनल, 17 पुल और 5 स्टेशन शामिल हैं। सबसे लंबी टनल (टी -10) की लंबाई 5.3 कि.मी. और सबसे लंबे पुल (ब्रिज -17) की लंबाई 425 मीटर है। पूरी परियोजना का लगभग 38.6 किलोमीटर टनल से होकर गुजर रहा है और 90% टनलिंग कार्य पूरा हो चुका है।
उन्होंने यह भी बताया वर्तमान में टनल टी-14 में अंतिम लाइनिंग पूरी हो चुकी है और टनल टी -02, टी -05, टी-06, टी -09, टी -10, टी -11 और टी -12 में अंतिम कार्य प्रगति पर है। सभी सेक्शनों में दिन-रात कार्य किया जा रहा है। यह परियोजना भारत में चल रही प्रतिष्ठित राष्ट्रीय परियोजनाओं में से एक है और इस परियोजना के पूरा होने पर, पहली बार सिक्किम राज्य शेष भारत के साथ रेलवे से सीधा जुड़ जाएगा। इस रेलवे नेटवर्क को पूरा करने का उद्देश्य सिक्किम राज्य को वैकल्पिक कनेक्टिविटी प्रदान करना है। वर्तमान में परियोजना को शीघ्र पूरा करने के लिए टनल, पुलों और स्टेशन यार्डों के निर्माण से संबंधित सभी काम-काज युद्ध स्तर पर चल रहे हैं जिनके निर्धारित समय में निश्चित रूप से पूरा हो जाने की अतीव सम्भावना है।