भारत के युद्धगत ‘शांति’ के कूटनीतिक मायने

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भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रूस-यूक्रेन युद्ध को खत्म करने के जारी नवीनतम प्रयासों का गत शुक्रवार को पुनः पुरजोर समर्थन किया और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यह संदेश दिया कि भारत इस संघर्ष का सौहार्दपूर्ण समाधान निकालने के लिए जारी सभी शांति प्रयासों में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहेगा। 

 

इस प्रकार यह स्पष्ट हो गया कि रूस-यूक्रेन युद्ध वाला मुद्दा दोनों नेताओं की वार्षिक शिखर वार्ता में केंद्रीय रूप से उभरा है जिसका उद्देश्य लगभग आठ दशक से अनवरत रूप जारी द्विपक्षीय साझेदारी को और अधिक मजबूत बनाना है जो जटिल भू-राजनीतिक माहौल और तनावों के बावजूद मानवता के दोस्ताना हित में स्थिर बनी रही है। 

 

तभी तो भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने शिखर वार्ता के दौरान अपने संबोधन की शुरुआत में ही कहा कि भारत, रूस-यूक्रेन संघर्ष को लेकर तटस्थ नहीं है बल्कि इसे शीघ्र समाप्त करने के लिए शांति का पक्षधर है। वह शांति के पक्ष में है। इसके कूटनीतिक मायने तिकड़मी पश्चिमी अमेरिकी-यूरोपीय देशों के खिलाफ हैं और समय रहते ही इन देशों को सचेत हो जाना चाहिए, अन्यथा उन्हें लेने के देने भी पड़ सकते हैं।

 

पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों को समझते हैं। उन्होंने ठीक ही कहा है कि यूक्रेन संघर्ष के शुरू होने के बाद से ही हमलोग इस मसले पर चर्चा करते रहे हैं।  एक करीबी मित्र के रूप में, आप हमें स्थिति के बारे में नियमित रूप से सूचित करते आए हैं। ऐसे में मुझे लगता है कि विश्वास एक बड़ी ताकत है। इसलिए हम सभी को शांति का मार्ग तलाशना चाहिए। बहरहाल, मैं नवीनतम प्रयासों से अवगत हूं और मुझे विश्वास है कि दुनिया शांति की ओर रुख करेगी। 

 

फिर प्रधानमंत्री मोदी ने जब दो टूक शब्दों अपनी स्थिति स्पष्ट की और साफ कहा कि, मैंने हमेशा कहा है कि भारत तटस्थ नहीं है बल्कि भारत का एक पक्ष है और वह है शांति। हम सभी शांतिगत प्रयासों का समर्थन करते हैं और इन कोशिशों के लिए कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। हम यहां स्पष्ट कर दें कि जब भारत शांति की बात करता है तो सत्य, अहिंसा, इन्हें कायम रखने वाले पराक्रम की चर्चा अपने आप छिड़ जाती है। ये सभी शब्द अवसरवादी पश्चिमी देशों के खिलाफ जाते हैं, जबकि रूस और उसका आचरण इन सभी बातों पर खरा उतरता है।

 

यही वजह है कि रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने अपने संबोधन में तुरंत कहा कि मॉस्को, रूस-यूक्रेन संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में काम कर रहा है। रूस शांतिपूर्ण समाधान के लिए प्रयासरत है। उल्लेखनीय है कि फरवरी 2022 में शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद गत 4-5 दिसम्बर को राष्ट्रपति पुतिन अपनी दो दिवसीय नई दिल्ली यात्रा पर आए हुए थे। चूंकि चार वर्षों के दौरान यह उनका पहला भारत दौरा था, इसलिए बृहस्पतिवार शाम को लाल कालीन पर उनका भव्य स्वागत किया गया।

 

वहीं, द्विपक्षीय वार्ता के दौरान भारत के पीएम मोदी ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन के समक्ष जोर दिया कि रूस-यूक्रेन संघर्ष को बातचीत और कूटनीति से शांतिपूर्ण तरीके से समाप्त किया जाना चाहिए। देखा जाए तो मोदी का यह वक्तव्य एक प्रकार से भारत की विदेश नीति (गुटनिरपेक्षता) को स्पष्ट करता है लेकिन अब यह तटस्थता (निष्पक्षता) के बजाय सक्रिय रूप से शांति को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। यही बात अमेरिका-यूरोपीय देशों के खिलाफ जाती है क्योंकि उनकी खल-कूटनीति ही दुनिया में शांति स्थापना की दिशा में सबसे बड़ी बाधक है। इसे अब दुनिया के अधिकांश देश समझने लगे हैं। जो नादान हैं, उन्हें भारत के कड़े कदमों से सबक मिल चुका है।

 

हालांकि, इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत, रूस और यूक्रेन दोनों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखते हुए मध्यस्थ की भूमिका निभाने को तैयार है जो कूटनीतिक स्वायत्तता और बहुपक्षवाद को मजबूत करता है। दरअसल, यह गुटनिरपेक्षता की ऐतिहासिक परंपरा का आधुनिक रूप है जहां भारत वैश्विक संघर्षों में संवाद को प्राथमिकता देता है, वह भी बिना किसी पक्ष का खुला समर्थन किए। वाकई अपने इस दृष्टिकोण से भारत वैश्विक शांति प्रयासों में रचनात्मक भूमिका निभा सकता है जो उसके बढ़ते कद को दर्शाता है। 

 

अब दुनिया इस बात की साक्षी है कि रूस-यूक्रेन जैसे संकट में भी भारत पश्चिमी दबाव से बचते हुए अपने हितों की रक्षा करता है और शांति के पक्षधर के रूप में विश्वसनीयता हासिल करता है। साथ ही वह अपने अंतर्राष्ट्रीय मित्र रूस की आर्थिक व नैतिक मदद करने से भी नहीं हिचकता  जबकि अमेरिका और यूरोपीय देश तरह तरह के वैश्विक स्वांग रचते हैं। इस प्रकार से भारत की मौजूदा नीति उसको भू-राजनीतिक द्वंद्वों से अलग रखते हुए शांति की वकालत करने की स्वतंत्रता प्रदान करती है।

 

यही वजह है कि तटस्थता नहीं बल्कि शांति की पक्षधरता वाले प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी पर तत्काल सकारात्मक कूटनीतिक प्रतिक्रियाएं मिली हैं। प्रधानमंत्री मोदी के बयान पर खुद रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने भी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी और भारत के शांति प्रयासों के लिए आभार जताया और रूस द्वारा यूक्रेन संकट के शांतिपूर्ण समाधान पर काम को रेखांकित किया। यह बयान भारत-रूस द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करता है जो रक्षा, व्यापार और ऊर्जा सहयोग पर केंद्रित वार्ता में प्रमुख रहा। 

 

वहीं, वैश्विक मीडिया ने भी इसे भारत की सक्रिय शांति की वकालत के रूप में चित्रित किया जो तटस्थता से आगे की स्थिति को दर्शाता है। प्रधानमंत्री मोदी का बयान रूस-यूक्रेन संघर्ष में भारत को मध्यस्थ की भूमिका में स्थापित करता है जहां बातचीत और कूटनीति पर जोर दिया गया। वहीं, चतुराई पूर्वक पुतिन ने भी अमेरिका सहित अन्य भागीदारों के साथ संयुक्त शांति कदमों का उल्लेख किया जो भारत की भूमिका को वैधता प्रदान करता है। इससे पश्चिमी देशों पर दबाव बढ़ सकता है क्योंकि भारत, रूस के साथ संतुलित संबंध बनाए रखते हुए शांति पहल का समर्थन करता दिखा।

 

बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान का वैश्विक कूटनीति पर व्यापक असर लाजिमी है क्योंकि उनका यह बयान भारत की गुटनिरपेक्ष परंपरा को आधुनिक बहुपक्षवाद में बदलता है जो अमेरिका-ट्रंप प्रशासन को संदेश देता है कि भारत रूस के साथ साझेदारी जारी रखेगा। इससे वैश्विक शक्ति संतुलन में भारत का कद बढ़ेगा, खासकर गैर-पक्षपाती शांति पक्षधर के रूप में। वहीं, यूरोप और अमेरिका भारत पर रूसी तेल खरीद या यूक्रेन नीति को प्रभावित करने के लिए दबाव बढ़ा सकते हैं लेकिन यह भारत की कूटनीतिक स्वायत्तता को मजबूत करता है।

 

हालांकि, भारत के निकट सहयोगी देशों में QUAD (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया), फ्रांस और रूस शामिल हैं। जहां QUAD देशों ने पहले भारत की शांति की वकालत को समर्थन दिया है और QUAD सदस्य शांति-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का समर्थन करते हैं जैसा कि 2024 क्वाड समिट में पीएम मोदी के बयान पर सहमति बनी। वहीं, अमेरिका रूस पर प्रतिबंधों के बावजूद भारत की तटस्थ शांति नीति को स्वीकार करता रहा है, और ट्रंप प्रशासन के शांति प्रयासों से सामंजस्य संभव है जबकि जापान और ऑस्ट्रेलिया भारत की मध्यस्थ भूमिका को Indo-Pacific स्थिरता के लिए सकारात्मक मान सकते हैं।

 

वहीं, फ्रांस जैसे यूरोपीय सहयोगी, जो यूक्रेन का समर्थन करते हैं, सतर्क रह सकते हैं लेकिन भारत की कूटनीतिक स्वायत्तता का सम्मान करेंगे। कुल मिलाकर, यह बयान भारत के बहुपक्षीय संबंधों को मजबूत करेगा बिना किसी सहयोगी को अलग-थलग किए। वहीं, ट्रंप प्रशासन भारत की शांति की वकालत को सकारात्मक ले सकता है क्योंकि यह रूस-यूक्रेन युद्ध के समाधान से मेल खाता है, हालांकि रूस के साथ मजबूत संबंधों पर चिंता जताई जा सकती है। फिर भी भारत की कूटनीतिक स्वायत्तता को स्वीकार करते हुए QUAD साझेदारी बरकरार रहेगी। वहीं यूरोपीय देश सतर्क रहेंगे, क्योंकि भारत द्वारा रूस की खुली आलोचना न करने से यूक्रेन समर्थन पर असंतोष व्यक्त कर सकते हैं। फिर भी, शांति पहल को वैश्विक स्थिरता के लिए उपयोगी मानेंगे, खासकर फ्रांस जैसे सहयोगी।

 

कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

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