अरावली केवल पर्वत नहीं बल्कि राजस्थान का ‘रक्षा कवच’ है: अशोक गहलोत

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जयपुर, 16 दिसंबर (भाषा) पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अरावली की पहाड़ियों को राजस्थान का ‘रक्षा कवच’ बताते हुए मंगलवार को कहा कि इसकी छोटी पहाड़ियों को खनन के लिए खोल देने का मतलब दिल्ली और पूर्वी राजस्थान तक रेगिस्तान को निमंत्रण देना है।

गहलोत ने एक बयान में कहा कि केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में ऐसी रिपोर्ट पेश की है जिससे अरावली का दायरा सिमट गया है।

उन्होंने कहा, “अरावली राजस्थान का केवल पर्वत नहीं, हमारा ‘रक्षा कवच’ है। केंद्र सरकार की सिफारिश पर इसे ‘100 मीटर’ के दायरे में समेटना, प्रदेश के 90 फीसदी अरावली के ‘मृत्यु प्रमाण पत्र’ पर हस्ताक्षर करने जैसा है।”

कांग्रेस नेता ने कहा, “सबसे भयावह तथ्य यह है कि राजस्थान की 90 प्रतिशत अरावली पहाड़ियां 100 मीटर से कम हैं। यदि इन्हें परिभाषा से बाहर कर दिया गया, तो यह केवल नाम बदलना नहीं है, बल्कि कानूनी कवच हटाना है।”

उनके अनुसार, इसका सीधा मतलब है कि इन क्षेत्रों में अब वन संरक्षण अधिनियम लागू नहीं होगा और खनन बेरोकटोक हो सकेगा।

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि पहाड़ की परिभाषा उसकी ऊंचाई से नहीं, बल्कि उसकी भूगर्भीय संरचना से होती है।

उन्होंने कहा कि एक छोटी चट्टान भी उसी ‘टेक्टोनिक प्लेट’ और पर्वतमाला का हिस्सा है जो एक ऊंची चोटी है और इसे अलग करना वैज्ञानिक रूप से तर्कहीन है।

अरावली को थार रेगिस्तान को आगे बढ़ने से रोकने वाली दीवार बताते हुए गहलोत ने कहा, “विशेषज्ञों के मुताबिक 10 से 30 मीटर ऊंची छोटी पहाड़ियां (रिज) भी धूल भरी आंधियों को रोकने में उतनी ही कारगर होती हैं। इन छोटी पहाड़ियों को खनन के लिए खोल देने का मतलब दिल्ली और पूर्वी राजस्थान तक रेगिस्तान को खुद निमंत्रण देना है।”

उन्होंने कहा कि अरावली की चट्टानी संरचना बारिश के पानी को रोकती है और उसे जमीन के भीतर भेजती है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि ये पहाड़ियां पूरे क्षेत्र में भूजल रिचार्ज का काम करती हैं और इन्हें हटाने का मतलब पहले से ही पानी की कमी से जूझ रहे उत्तर-पश्चिम भारत में सूखे को निमंत्रण देना है।

गहलोत ने कहा कि यही नहीं अरावली वह दीवार है जो पश्चिम से आने वाली जानलेवा ‘लू’ और थार रेगिस्तान को पूर्वी राजस्थान, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के उपजाऊ मैदानों में घुसने से रोकती है।

उन्होंने कहा,“यह फैसला पर्यावरण संरक्षण नहीं, बल्कि खनन माफियाओं के लिए ‘रेड कार्पेट’ है। थार के रेगिस्तान को दिल्ली तक जाने का निमंत्रण देकर सरकार आने वाली पीढ़ियों के साथ जो अन्याय कर रही है, उसे इतिहास कभी माफ नहीं करेगा।”

गहलोत के अनुसार, विडंबना ये है कि उच्चतम न्यायालय में यह सुनवाई इसलिए शुरू हुई थी ताकि अरावली को स्पष्ट रूप से पहचाना और बचाया जा सके, लेकिन केंद्र सरकार की जिस सिफारिश को न्यायालय ने माना, उसने अरावली के 90 फीसदी हिस्से को ही तकनीकी रूप से ‘गायब’ कर दिया।

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, “मैं उच्चतम न्यायालय से आग्रह करता हूं कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को देखते हुए अपने इस फैसले पर पुनर्विचार करे। यह फैसला सीधा विनाश को निमंत्रण देने वाला है।”

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