परंपरा और आधुनिकता के बीच जुझती युवा पीढी

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आज का युवा ऐसे परिवर्तनशील युग में जी रहा है जहां एक ओर आधुनिकता की तेज लहरें उसे नई सोच, नए अवसर और वैश्विक दृष्टिकोण प्रदान करती हैं, वहीं दूसरी ओर परंपराएं उसके जीवन को जड़ों से जोड़कर स्थिरता, मूल्य और सांस्कृतिक पहचान देती हैं। आधुनिकता और परंपरा-ये दोनों प्रवृत्तियां युवाओं के व्यक्तित्व निर्माण के लिए आवश्यक हैं, लेकिन जब दोनों की अपेक्षाएं आपस में टकराती हैं तो संघर्ष की स्थिति निर्मित होती है। यही संघर्ष आज युवक-युवतियों के मन, व्यवहार, निर्णय और भविष्य पर गहरा प्रभाव डाल रहा है।


सबसे पहले यदि हम आधुनिकता की बात करें तो यह विज्ञान, तकनीक, शिक्षा, वैश्वीकरण, व्यक्तिवादी सोच और स्वतंत्र जीवनशैली से जुड़ी धारा है। आधुनिकता युवाओं को स्वतंत्रता, नवीन अवसर और अपनी पसंद के अनुसार जीवन चुनने का अधिकार देती है। आज का युवा इंटरनेट, डिजिटल शिक्षा, सोशल मीडिया, स्टार्टअप संस्कृति और वैश्विक प्रतिस्पर्धा से पूरी दुनिया को अपने हाथ की पकड़ में महसूस करता है। उसकी सोच खुली हुई है, अभिव्यक्ति शक्तिशाली है और वह समाज की रूढ़ियों को चुनौती देने का साहस रखता है।


इसके विपरीत परंपरा वर्षों से चली आ रही सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक धारणाओं का समूह है, जो परिवार और समाज को एक सूत्र में बांधे रखती है। परंपराएं व्यक्ति को संस्कार, सदाचार, कर्तव्यबोध, सामाजिक अनुशासन, बड़ों का सम्मान और सांस्कृतिक पहचान देती हैं। भारतीय समाज में परंपरा को केवल अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन पद्धति माना जाता है। इसलिए परिवार युवाओं से अपेक्षा करता है कि वे परंपरागत मूल्यों को बनाए रखें, अपने समुदाय की मर्यादा का सम्मान करें और अपने निर्णयों में सामूहिक हित को प्राथमिकता दें।


समस्या तब उत्पन्न होती है जब आधुनिकता की स्वतंत्रता और परंपराओं की मर्यादा एक दूसरे से टकराती हैं। युवा मन स्वतंत्र उड़ान भरना चाहता है, लेकिन परंपराएं उसे कुछ सीमाओं में चलने की सीख देती हैं। यही द्वंद्व अनेक प्रकार की स्थितियों को जन्म देता है-


कॅरियर और जीवनशैली का संघर्ष-

कई युवा अपने करियर के चुनाव में आधुनिकता के अनुरूप स्वतंत्र निर्णय लेना चाहते हैं जैसे कला, खेल, डिजिटल कंटेंट, फैशन, स्टार्टअप आदि क्षेत्रों में जाना लेकिन परिवार परंपरागत सुरक्षित विकल्पों जैसे इंजीनियरिंग, मेडिकल, सरकारी नौकरी आदि पर जोर देता है। इस भिन्न सोच से टकराव पैदा होता है।


विवाह और संबंधों में संघर्ष-

आधुनिक युवा प्रेम-विवाह, समानता और व्यक्तिगत पसंद का समर्थन करता है, जबकि परंपरा परिवार की मर्यादा, सामाजिक स्वीकार्यता और जातीय-सांस्कृतिक मान्यताओं को महत्व देती है। कई बार यह संघर्ष मानसिक तनाव, पारिवारिक दूरी और भावनात्मक टूटन का कारण बन जाता है।
सांस्कृतिक पहचान और वैश्विक प्रभाव-

ग्लोबल कल्चर, फैशन, भाषा और आधुनिक जीवनशैली युवा को आकर्षित करते हैं। वहीं परंपरा चाहती है कि युवा अपनी मातृभाषा, रीति-रिवाज और सांस्कृतिक मूल्यों को न छोड़े। इस दोहरे आकर्षण में युवा स्वयं को दो दिशाओं में खिंचता हुआ महसूस करता है।
तकनीक और सामाजिक संबंध-

सोशल मीडिया, डिजिटल प्लेटफॉर्म और आधुनिक टेक्नोलॉजी ने युवाओं को दुनिया से जोड़ दिया है लेकिन परिवार अपेक्षा करता है कि वे समय, अनुशासन और सामाजिक मर्यादाओं का ध्यान रखें। इससे पीढ़ी-अंतराल और व्यवहारगत मतभेद बढ़ने लगे हैं।
समाधान की दिशा-

इस संघर्ष का समाधान किसी एक पक्ष को छोड़ देने में नहीं, बल्कि संतुलन बनाने में है। आधुनिकता को अपनाते हुए परंपराओं की गरिमा बनाए रखना ही वास्तविक परिपक्वता है। परिवार को चाहिए कि वह बदलते समय को समझे, युवाओं की रुचियों और क्षमताओं को स्वीकार करे और उन्हें स्वतंत्र निर्णय लेने का अवसर दे। युवाओं का कर्तव्य है कि वे अपनी सांस्कृतिक जड़ों, नैतिक मूल्यों और सामाजिक जिम्मेदारियों को त्यागे बिना ही आधुनिकता का सही उपयोग करें।


संवाद ही एकमात्र मार्ग है जिससे दोनों पीढ़ियां एक-दूसरे की भावनाओं और आवश्यकताओं को समझ सकती हैं। शिक्षा संस्थानों और समाज को भी चाहिए कि वे परंपरा और आधुनिकता के समन्वयित मूल्य युवाओं को प्रदान करें। आधुनिकता और परंपरा का संघर्ष वास्तव में विकास और मूल्यों की दो धाराएँ हैं। यदि युवा इन दोनों को संतुलित कर लें तो वे न केवल आत्मविश्वासी और आधुनिक बन सकते हैं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े हुए, अनुशासित और संवेदनशील नागरिक भी बन सकते हैं। आधुनिकता दिशा देती है और परंपरा आधारकृयुवाओं का वास्तविक विकास तभी संभव है जब दिशा और आधार दोनों एक-दूसरे का पूरक बनें।


डा वीरेन्द्र भाटी मंगल

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