नयी दिल्ली, प्रस्तावित व्यापार समझौतों में बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) और दवा क्षेत्र के मुद्दों पर भारत का रुख सार्वजनिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं के साथ नवाचार को संतुलित करता है। सस्ती दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करता है और जेनेरिक दवा उद्योग के विकास को बढ़ावा देता है। एक रिपोर्ट में शुक्रवार को यह बात कही गई।
शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) की रिपोर्ट के अनुसार, मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) में ‘डेटा विशिष्टता’ और ‘पेटेंट लिंकेज’ जैसे मुद्दों पर विकसित देशों की मांगों का विरोध करके भारत यह सुनिश्चित करता है कि जेनेरिक दवा निर्माताओं को अधिक बाजार पहुंच मिले और जीवन रक्षक दवाओं की लागत काफी कम हो जाए।
जीटीआरआई ने कहा, ‘‘ भारत का दृष्टिकोण सार्वजनिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं के साथ नवाचार को संतुलित करने, अपने विकासात्मक लक्ष्यों के साथ संरेखित करने के लिए ‘टीआरआईपीएस’ की मजबूत व्याख्या को अपनाने और विशेष रूप से दवा क्षेत्र में अनुचित एकाधिकार की स्थापना को रोकने की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।’’
यह मुद्दा महत्वपूर्ण है क्योंकि विकसित देश हमेशा भारत जैसे विकासशील देशों पर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार-संबंधित पहलुओं (टीआरआईपी) समझौते के तहत सहमत आईपीआर मामलों को लेकर एफटीए में दबाव बनाते हैं। व्यापार की भाषा में इसे टीआरआईपीएस-प्लस कहा जाता है।
शोध संस्थान के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘ भारत का रुख इन हितों को संतुलित करने और व्यापार समझौतों के जरिए आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने की उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है… भारत का हमेशा टीआरआईपीएस-प्लस प्रावधानों के खिलाफ रुख रहा है। भारत ने एफटीए में अपने घरेलू जेनेरिक दवा उद्योग के हितों की लगातार रक्षा की है।’’
विकसित देशों के एफटीए प्रस्तावों में डेटा विशिष्टता, पेटेंट अवधि विस्तार, व्यापक पेटेंट योग्यता मानदंड और पेटेंट लिंकेज आदि पर टीआरआईपीएस-प्लस प्रावधान शामिल हैं।
जीटीआरआई ने कहा, ‘‘ भारत ने ऐसे प्रावधानों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है।’’