जलवायु मुद्दों पर एकजुटता के पक्ष में भारत, विकसित देशों की विफलता से वार्ता जटिल : भूपेंद्र यादव

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गुवाहाटी, एक दिसंबर (भाषा) केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने वैश्विक जलवायु मुद्दों को हल करने के लिए आम सहमति पर आधारित निर्णय लेने का आह्वान किया और कहा कि जब विकसित देश अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारियों के अनुसार कार्य नहीं करते हैं और कार्बन क्षेत्र के समान वितरण का विरोध करते हैं तो वार्ता “जटिल” हो जाती है।

हाल ही में ब्राजील में आयोजित संयुक्त राष्ट्र सीओपी30 जलवायु शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व यादव ने किया था। उन्होंने कहा कि जीवाश्म ईंधन से पूर्ण संक्रमण के लिए कार्ययोजना तय करते समय ‘ग्लोबल साउथ’ के लिए ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है।

यादव ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार में कहा, “भारत जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों के समाधान के लिए बहुपक्षीय मंचों का उपयोग कर आम सहमति आधारित निर्णय लेने की पहल का समर्थन करता है।” उनसे जलवायु मुद्दों के समाधान के तरीकों के बारे में पूछा गया था, जो कभी-कभी जटिल हो जाते हैं।

उनके अनुसार, विकसित और विकासशील देशों के बीच अंतर आर्थिक मापदंडों पर आधारित नहीं है, बल्कि ऐतिहासिक हरित गैस उत्सर्जन में योगदान पर आधारित है।

विश्व को ‘ग्लोबल नॉर्थ’ और ‘ग्लोबल साउथ’ के रूप में विभाजित करने वाली द्विआधारी शब्दावली के बारे में पूछे जाने पर यादव ने कहा, “यह शब्दावली यूएनएफसीसीसी के संदर्भ में अच्छी तरह से समझी जाती है और समानता तथा समान, लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं (सीबीडीआर-आरसी) के सिद्धांतों के साथ संरेखित है।”

‘ग्लोबल नॉर्थ’ एक भू-राजनीतिक और आर्थिक अवधारणा है, जो उन देशों को संदर्भित करती है, जो औद्योगिक रूप से विकसित और आर्थिक रूप से समृद्ध हैं। वहीं ‘ग्लोबल साउथ’ उन देशों को संदर्भित करती है, जो आर्थिक रूप से कम विकसित या विकासशील हैं। इसमें आम तौर पर एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और कुछ ओशिनिया के देश शामिल होते हैं।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु समाधानों में इन सिद्धांतों का सम्मान किया जाना चाहिए तथा विकासशील देशों के लिए जलवायु न्याय को आगे बढ़ाया जाना चाहिए।

केंद्रीय मंत्री ने कहा, “जब विकसित देश ऐतिहासिक जिम्मेदारी स्वीकार करने में विफल रहते हैं या कार्बन क्षेत्र के न्यायसंगत वितरण का विरोध करते हैं, तो वार्ताएं जटिल हो जाती हैं। स्थिति तब और भी जटिल हो जाती है, जब वे जलवायु संधियों के तहत निर्धारित अपने दायित्वों का निर्वहन करने से कतराते हैं।”

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र कार्यढांचा संधि (यूएनएफसीसीसी) के वार्षिक सम्मेलन (सीओपी) के लिए 194 देशों के वार्ताकार इस वर्ष 10 से 22 नवंबर तक अमेजन क्षेत्र में स्थित ब्राजील के शहर बेलेम में एकत्र हुए।

जीवाश्म ईंधन से आगे बढ़ने की कार्ययोजना का भारत द्वारा समर्थन न किए जाने के बारे में पूछे जाने पर यादव ने कहा, “ब्राजील के राष्ट्रपति द्वारा घोषित जीवाश्म ईंधन से आगे बढ़ने के लिए बेलेम कार्ययोजना वार्ता से बाहर है और इसका उद्देश्य राष्ट्रीय परिस्थितियों का सम्मान करते हुए राजकोषीय, सामाजिक और आर्थिक पहलुओं को संबोधित करना है।”

उन्होंने कहा कि यूएनएफसीसीसी प्रक्रिया के तहत जीवाश्म ईंधन से दूर जाने के संबंध में निर्देशात्मक भाषा नहीं दी गई।

यादव ने कहा, “भारत ने ‘ग्लोबल साउथ’ में ऊर्जा सुरक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया। हमने नवीकरणीय ऊर्जा की ओर पूर्ण संक्रमण की योजना बनाते हुए पावर ग्रिड प्रबंधन में आने वाली तकनीकी चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से बिजली की उपलब्धता रुक-रुक कर होती रहती है।”

ब्राजील में संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता प्रतिकूल मौसम के प्रकोप से निपटने के लिए देशों को और अधिक धनराशि देने के वादे के साथ समाप्त हुई। लेकिन इसमें जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की कोई रूपरेखा शामिल नहीं थी।

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