असम के बहुविवाह निषेध विधेयक 2025 के मायने क्या है!

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असम ‘बहुविवाह निषेध कानून’ लागू करने जा रहा है। इसके लागू होने के साथ ही असमवासी एक से ज्यादा शादी तब तक नहीं कर सकता, जब तक उसका पार्टनर जिंदा है या उसने उसे तलाक नहीं दे दिया है। अगर व्यक्ति एक से ज्यादा विवाह करने का दोषी पाया गया तो उसे 7 साल जेल की सजा हो सकती है।

बहुविवाह यानी एक से ज्यादा विवाह। पुरुष हो या स्त्री, दोनों के एक ही वक्त में एक से ज्यादा विवाह प्रतिबंधित होगा। बहुविवाह पर रोक लगाने के लिए ये कानून बनाया जा रहा है। एक समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में ये एक बड़ा कदम माना जा रहा है। सरकार के मुताबिक, कानून का उद्देश्य महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना और धार्मिक आधार पर समाज में समानता लाना है।

सीएम हिमंता सरमा के अनुसार नए कानून के लागू होने के बाद बहुविवाह के मामलों में गैर-जमानती अपराध के रूप में मुकदमा दर्ज किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि सरकार बहुविवाह से पीड़ित महिलाओं के लिए मुआवजे का एक विशेष कोष स्थापित करेगी जिससे उन्हें आर्थिक सहायता दी जा सके। हम चाहते हैं कि कोई भी महिला इस स्थिति में आर्थिक तंगी का सामना न करे, इसलिए सरकार उनकी मदद के लिए आगे आएगी हालाँकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि यह कानून छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों और जनजातीय समुदायों पर लागू नहीं होगा।

पुरुष के जेल जाने के बाद महिला का क्या होगा? या, अगर वह पुरुष की जानकारी के बिना उसकी दूसरी पत्नी है तो महिला ही पीड़ित है। कभी-कभी, पुरुष द्वारा दूसरी महिला से शादी करने के बाद पहली पत्नी को घर से निकाल दिया जाता है। इसलिए, यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई महिला पीड़ित न बने, असम सरकार एक सहायता राशि महिलाओं को देगी। मुआवजे की राशि और पात्रता के मानदंड नियम बनने पर तय किए जाएँगे। ऐसा कानून लाने वाला असम देश का पहला राज्य होगा। राज्य के बराक घाटी, मध्य असम के जमुनामुख और होजई में बांग्ला भाषी मुस्लिम की तादाद ज्यादा है। इन क्षेत्रों में बहुविवाह के केस ज्यादा आते हैं।

असम कैबिनेट ने जिस ‘असम बहुविवाह निषेध विधेयक, 2025’को मंजूरी दी है, उसे 25 नवंबर को राज्य विधानसभा में पेश किए जाने की उम्मीद बताई जा रही है। विधेयक के कानून बनने के बाद भी जनजातीय समुदाय पर ये लागू नहीं होगा। उन्हें इस कानून से छूट दी गई है। इनमें बहुविवाह हो सकता है। राज्य के बीटीएडी, दिमा हसाओ और कार्बी आंगलोंग जैसे जनजातीय समुदाय की बहुतायत है।

विधेयक के तहत छूट के बारे में सीएम सरमा का कहना है कि, “आदिवासी लोगों को इससे बाहर रखा जाएगा क्योंकि उनके कुछ रीति-रिवाज हैं और छठी अनुसूची के ज़िलों में, जो बीटीसी (बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद), दीमा हसाओ और कार्बी आंगलोंग में आते हैं, ये विधेयक तुरंत लागू नहीं होंगे.. इसलिए छठी अनुसूची के क्षेत्रों में, अगर कोई अल्पसंख्यक मुसलमान 2005 से पहले वहाँ रहा है तो उसे भी छूट दी जाएगी।”

जानकारी के अनुसार राज्य में बहुविवाह की प्रथा को खत्म करने संबंधी कानून का मसौदा तैयार करने के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया था। इसमें राज्य के महाधिवक्ता देवजीत सैकिया, पुलिस महानिदेशक ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह और लिगल एडवाइजर कुंतल शर्मा शामिल थे। जस्टिस फूकन समिति ने समान नागरिक संहिता, राज्य के नीति निदेशक तत्व और अनुच्छेद 25 में दिए गए मूल अधिकार के साथ-साथ मुस्लिम पर्सनल लॉ अधिनियम 1937 के प्रावधानों की भी जाँच की। इस दौरान समिति ने 45 दिनों में विधेयक के लिए मसौदा तैयार कर लेने की बात कही।

   असम सरकार ने पहले इस बात का पता लगाया कि राज्य विधायिका को ऐसा कानून बनाने का अधिकार है या नहीं। राज्य विधायी शक्तियों की जाँच के लिए गुवाहाटी हाईकोर्ट के रिटायर पूर्व जस्टिस रूमी फूकन की अध्यक्षता में समिति बनाई गई। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में साफ किया कि असम सरकार को बहुविवाह पर कानून बनाने का अधिकार है। यही नहीं, राज्य सरकार ने बहुविवाह पर विधानसभा में ‘असम बहुविवाह निषेध विधेयक 2025’ लाने से पहले जनता से राय भी माँगी। इस पर जनता ने अपनी प्रतिक्रिया दी और सरकार के कानून बनाने का समर्थन किया।

1961 में जनगणना के वक्त 1 लाख सैंपल लेकर बहुविवाह पर सर्वे किया गया था। उस वक्त ये बात सामने आई थी कि मुस्लिम में बहुविवाह का प्रतिशत 5.6 था जो देश में सबसे अधिक था। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के 2019-2020 के आँकड़ों से पता चलता है कि हिंदुओं की 1.3 फीसदी, मुसलमानों की 1.9 फीसदी, ईसाइयों में 2.1फीसदी और दूसरे धार्मिक समूहों के 1.6 फीसदी लोग बहुविवाह करते हैं। जनजातीय क्षेत्रों में ये ज्यादा होता है, इसलिए पूर्वात्तर में बहुविवाह का प्रचलन ज्यादा है।

जानकारों के अनुसार भारत में हिन्दू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन आदि के लिए बहुविवाह प्रतिबंधित है। हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 के मुताबिक, एक वक्त पर एक पुरुष या स्त्री सिर्फ एक शादी के बंधन में रह सकता है। इस कानून के द्वारा हिंदू बहुविवाह को समाप्त कर दिया गया और इसे अपराध माना गया। इस अधिनियम की धारा 17 और भारतीय दंड संहिता,1860 की धारा 494 और 495 के तहत बहुविवाह करने पर सजा का प्रावधान है। हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 न सिर्फ हिन्दुओं बल्कि सिखों, जैनों, बौद्धों पर भी लागू होता है क्योंकि इनका अपना कोई अधिनियम नहीं है।

पारसी विवाह और तलाक अधिनियम 1936 के तहत पारसियों के बहुविवाह पर रोक लगा दी गई। पहले उनकी दो शादियों को समाज में मान्यता थी लेकिन कानून लागू कर तय कर दिया गया कि कोई भी पारसी स्त्री या पुरुष एक समय पर एक शादी के बंधन में ही रह सकता है।

लेकिन मुस्लिम पुरुषों को धार्मिक कानून के तहत एक साथ 4 बीवियों को रखने का अधिकार है। मुस्लिम पर्सनल लॉ के शरिया एप्लीकेशन अधिनियम 1937 के तहत मुस्लिम पुरुष एक ही वक्त पर चार बीवियाँ रख सकते हैं हालाँकि उन्हें सबके साथ समान व्यवहार करने की शर्त रखी गई है लेकिन ये कानून मुस्लिम महिलाओं पर लागू नहीं होता है। यहाँ तक कि स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 में भी बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाया गया है। अलग-अलग धर्म के पुरुष-स्त्री की शादी इस एक्ट के अंतर्गत आते हैं।

   बहुविवाह का मामला मुस्लिम पुरुषों तक ही सीमित है जो एक से ज्यादा बीवी कानूनी तौर पर रख सकते हैं। इसलिए असम में बनने वाला कानून मुस्लिम पुरुषों को भी एक से ज्यादा निकाह करने पर प्रतिबंध लगाएगा। भारत की न्याय संहिता 2023 के तहत, बहुविवाह को एक अपराध माना ही जाता है। एक समान नागरिक संहिता की दिशा में असम राज्य की यह एक बड़ी पहल होगी।

 

रामस्वरूप रावतसरे

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