गीता बना सकती है नर को नारायण

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गीता के संक्षिप्त नाम से जन-जन में लोकप्रिय श्रीमद्भगवद्गीता में सभी शास्त्रों, उपनिषदों एवं वेदों का समन्वय कर इनके सार को व्यावहारिक रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसमें दिए गए संदेश सम्पूर्ण मानव जाति के लिए हैं। यह सार्वकालिक ग्रंथ है। विश्व के धर्मग्रंथों में इसका अत्यंत विशिष्ट स्थान है। गीता हर बार मनन करने पर नई प्रेरणा देती है तथा प्रत्येक परिस्थिति के अनुरूप मार्गदर्शन करती है। इसे किसी भी काल में पढ़ा जाए, नवीनता, नयी ऊर्जा तथा नया दृष्टिकोण प्राप्त होता है।

 

अर्जुन जैसे धीर, वीर और कर्तव्यनिष्ठ पुरुष भी जब मोहग्रस्त हो गए, तब कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें सत्य, धर्म और कर्तव्य का उपदेश देकर पुनः स्थितप्रज्ञ बनाया। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया था, वही गीता के रूप में हमारे समक्ष है। यह ऐसा ज्ञान है जिसे सुनकर अर्जुन मोह से सर्वथा मुक्त हो गए। अर्जुन की तरह हम सब भी कभी न कभी निराशा और कुंठा की स्थिति में आ जाते हैं तथा अपनी समस्याओं से उद्विग्न हो अपने कर्तव्य से विमुख हो जाते हैं, ऐसी स्थिति में गीता एक पथदर्शक का काम करती है। 

गीता आत्मा के प्रति सजग रहने का संदेश देती है। गीता का दर्शन मनुष्य के अन्तःकरण में समता भाव का विकास कर उसे विकार मुक्त बनाने का पावन उपक्रम है। गीता में यह विश्वास प्रकट किया गया है कि जो एक है, वही सबमें व्याप्त है। 

वस्तुतः मोह पर विजय ही मानव जीवन की मूल विजय है और यही सत्य जीवन की सिद्धि है। गीता दुर्बल मनुष्य में शक्ति संचार करने की महाऔषधि का नाम है। गीता का उपदेश अर्जुन को मोक्ष प्रदान करने के लिए नहीं दिया गया था बल्कि उसमें व्यावहारिक क्षेत्र में आए मोह, शोक और बंधन से मुक्त करने के लिए भी दिया गया था।   

भगवान कृष्ण का प्रथम उपदेश है कि समस्या से भागो मत, उसका सामना करो। यह अहंकार मत पालो कि “मैं करता हूँ” क्योंकि वास्तविक कर्ता परमात्मा ही हैं। मृत्यु अटल है, शरीर परिवर्तनशील है। अतः गीता केवल अध्ययन का ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने की साधना है। यदि हम गीता को आचरण में उतार लें तो भय, मोह और दुर्बलताओं से ऊपर उठकर जीवन को समर्पित, सार्थक और सफल बना सकते हैं। गीता से प्रेरित होकर ही लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय और सुभाषचंद्र बोस आदि स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत को आजाद करने में मुख्य भूमिका निभाई। 

आज समाज हो या देश या विश्व, प्रत्येक स्तर पर छोटी-छोटी-सी बात पर साधारण लड़ाई से लेकर परमाणु युद्ध तक की स्थिति बन रही है।

 

गीता में इस समस्या का समाधान बताया गया कि जो अपने मन को नियंत्रित नहीं करते, समस्या उनके सम्मुख खड़ी होती है क्योंकि अनियंत्रित मन व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु है। इसलिए योग और ध्यान की साधना के माध्यम से हमें अपने मन और शरीर दोनों को वश में रखना चाहिए। गीता हमें यह सन्देश देती है कि मनुष्य गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए आत्म संयम द्वारा अपने पुरुषार्थ से सफल हो सकता है और समाज, राष्ट्र तथा विश्व को समृद्ध करने में अपना योगदान दे सकता है। विश्व में शांति की स्थापना गीता के ही माध्यम से सम्भव है।

  

गीता का पहला शब्द है ‘धर्म’ और अन्तिम शब्द भी ‘धर्म’ है, अत: गीता हमें धर्म का सन्देश देती है। गीता के बारे में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कहते हैं – “मुझे जन्म देने वाली माता तो चली गई परंतु संकट के समय में गीता माता के पास के पास जाना सीख गया हूँ। जो मनुष्य गीता का भक्त बनता है उसके लिए निराशा को कोई स्थान नहीं है। वह हमेशा आनंद में रहता है। मैं तो चाहता हूँ कि गीता प्रत्येक शैक्षणिक संस्था में पढ़ाई जाए।”

 

अच्छे कर्म व्यक्ति के विकास में एक नई ऊर्जा का संचार करते हैं। गीता का मुख्य सिद्धान्त कर्मवाद है। गीता हमें यह संदेश देती है कि व्यक्ति को सद्‌कर्म में प्रवृत्त रहना चाहिए जिससे वह आत्मिक शांति और मानसिक रूप से स्वस्थ रह सकता है। गीता से हमें वर्तमान में जीने की प्रेरणा मिलती है। यह व्यक्ति को जीने की कला बताती है। गीता हमें संदेश देती है कि जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है।

 

पाश्चात्य जगत में भारतीय साहित्य का कोई भी ग्रंथ इतना अधिक उद्धृत नहीं किया जाता जितना कि श्रीमद्भगवद्गीता। विदेशों में भी अनेक व्यक्तियों ने विश्व की दृष्टि से भी श्रीमद्भगवद्गीता के अमूल्य ज्ञान का आश्रय लेकर अपने जीवन का उद्धार किया है। अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे महान वैज्ञानिक भी नियमित रूप से गीता का अध्ययन करते थे। उन्होंने कहा, “जब मैं पढ़ता तथा यह विचार करता हूं कि किस प्रकार भगवान द्वारा यह संसार रचा गया तो मुझे अन्य सब कुछ निरर्थक प्रतीत होते हैं।”

 

अमेरिकी दार्शनिक एवं कवि हेनरी डेविड थोरो ने कहा, “हर सुबह मैं अपनी बुद्धि को श्रीमद्भगवद्गीता के उस अद्भुत और दिव्य दर्शन से स्नान कराता हूं जिसकी तुलना में हमारा आधुनिक विश्व और इसका साहित्य बहुत छोटा और तुच्छ जान पड़ता है।” 

श्रीमद्भगवद्गीता भारतीय संस्कृति, साधना और प्रतिभा का ऐसा भण्डार है, जिसमें चारों पुरुषार्थ – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का सार है। यह भारतीय धर्म दर्शन, नीति, समाज विज्ञान, मानव विज्ञान, युद्ध विज्ञान की अद्भुत खान है। इसमें मानव चरित्र की उदारता, त्याग, तपस्या, दान, उपकार, न्याय, सत्य, सदाचार, प्रेम, वीरता आदि का वर्णन है। इस ग्रंथ को पथ प्रदर्शक के रूप में एवं इसमें सन्निहित निर्देशों को मार्गदर्शक मानते हुए उन्हें जीवन में आचरित करके जीवन को सफल बनाया जा सकता है। हमारे न्यायालयों में भी गीता के ऊपर हाथ रखकर सत्य बोलने की कसम खायी जाती है जो स्वतः अपने आप में प्रमाण है।

 

गीता ने मानव मात्र को ऐसा ज्ञान दिया है जिस पर विचार करके वह सुखी हो सकता है। गीता का सबसे बड़ा ज्ञान यही है कि सांसारिक जीवन में काम, क्रोध, मोह, विषाद सब आएंगे लेकिन परमात्मा के सच्चिदानन्द स्वरूप का स्मरण करने मात्र से ये सभी मिट जाएंगे और हमें बोध होगा कि हम परमात्मा के अंश हैं और ये विकार जब परमात्मा में ही नहीं हैं तो हमें भी इन विकारों से मुक्त होना ही है। यही हमारा कर्तव्य है। यही एकमात्र ऐसा संदेश है जिसमें नर को नारायण बना देने का सामर्थ्य है।

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