रक्त सतहों पर जिस दबाव के साथ आगे बढ़ता है उसे बी पी कहते हैं। युवावस्था में स्वस्थ व्यक्ति का रक्तचाप सामान्यतः 120/80 एमएमएच जी होता है। ऊपर का अंक धड़कन अवस्था में रक्तचाप को बताता है। इसे सिस्टोलिक रक्तचाप कहते हैं। नीचे का अंक हृदय के विश्रामावस्था में रक्तदाब को बताता है। यह डायस्टोलिक कहलाता है। डायस्टोलिक का बढ़ना हायपरटेंशन एवं बी. बी. की अधिकता को बताता है जबकि इसका सामान्य स्तर 80 से कम होना लो बी पी को दर्शाता है। सिस्टोलिक एवं डायस्टोलिक अंक को साथ रख इसे पैमाने के रूप में बताया जाता है।
बी पी का बढ़ा रहना खतरनाक होता जाता है जबकि लो बी पी तुलनात्मक उतना खतरनाक नहीं होता। लो बी पी वाले सावधानी बरत दीर्घायु रह सकते हैं जबकि बी पी का लगातार बढ़ते रहना जान पर जोखिम को बढ़ा देता है। बढ़े बी पी से दिमाग, आंख, हृदय, पाचन एवं तंत्रिका तंत्रा, किडनी आदि प्रभावित होकर रूग्ण हो जाते हैं। इन अंगों के रूग्ण एवं कार्यक्षमता प्रभावित होने से पीडि़त की उम्र घट जाती है। हर पल जोखिम पूर्ण हो जाता है। आसन्न विपदा से बचने के लिए बी पी को नियंत्रित रखना जरूरी हो जाता है।
बढ़े बी पी का शरीर पर प्रभाव –
. यह मस्तिष्क की कार्यक्षमता को प्रभावित करता है। सोचने समझने की क्षमता में कमी आती है व ब्रेन अटैक का खतरा बढ़ जाता है।
. यह नेत्र ज्योति को प्रभावित कर सकता है। दृष्टि क्षमता में कमी आती है। धुंधला दिखता है।
. बढ़े बी पी के कारण हृदय लचीलापन खो कर कड़ा हो जाता है। आकार में बदलाव आ जाता है। बड़ा हो जाता है। हार्ट अटैक का जोखिम बढ़ जाता है।
. बढ़ा बी.पी तंत्रिका तंत्र एवं पाचन तंत्र को प्रभावित कर कमजोर बना देता है। यह खतरे का कारण बन जाता है। नर्वस एवं डाइजेशन सिस्टम को सही रखने हेतु बी.पी को काबू रखना जरूरी हो जाता है।
. बी. पी. के बढ़े रहने एवं दवाओं के प्रभाव से किडनी कमजोर हो जाती है। उसकी कार्यक्षमता में कमी के कारण आंखों के नीचे एवं पैरों में सूजन नजर आती है।
. बी. पी. के बढ़े रहने का कार्यक्षमता पर भी प्रभाव पड़ता है। पीडि़त व्यक्ति वांछित क्षमता में कमी एवं चित्त स्थिर नहीं रहने के कारण काम को सही ढंग से सही समय पर अंजाम नहीं दे पाता है।
बी. पी. क्यों बढ़ता है ?
. वजन, मोटापा के बढ़ने से बी. पी. बढ़ता है।
. कोलेस्ट्राल के बढ़ने से रक्त दाब बढ़ता है।
. तनाव, अवसाद, क्रोध से बी. पी. बढ़ता है।
. नींद की कमी से रक्तचाप बढ़ता है।
. धूम्रपान, नशापान से बी पी बढ़ जाता है।
. चिंता, घबराहट, बेचैनी से बल्ड प्रेशर बढ़ जाता है।
. शुगर बढ़ने से बी पी बढ़ता है।
. अनियमित जीवनशैली भी बी पी बढ़ाती है।
. जंक फूड, फास्ट फूड से बी पी बढ़ता है।
बी पी को बढ़ने से कैसे रोकें?
. वजन, मोटापा, ऊंचाई के अनुपात में हो।
. तेल, घी, मैदा, नमक, शक्कर अत्यन्त कम उपयोग करें।
. तनाव, अवसाद, क्रोध से बचें।
. रात को भरपूर नींद लें।
. धूम्रपान, नशापान से दूर रहें।
. घबराहट, बेचैनी, चिंता से बचें।
. धीरज रखें।
. योग, व्यायाम, ध्यान अपनायें।
. शुगर का स्तर सामान्य रखें।
. जंक फूड, फास्ट फूड एवं कोई भी डिंªक्स न लें।
. जीवनचर्या संयमित व नियमित हो।
. हल्का ताजा सुपाच्य भोजन करें।
. मौसमी फल, सब्जी, सलाद खाएं।
. मलाई, मक्खन के बिना दूध, दही उपयोग करें।
. हंसें हंसाएं।
. धीमा संगीत सुनें।
. प्रकृति, परिचित एवं पालतू जीवों के समीप रहें।
. डॉक्टर के द्वारा निर्धारित दवा एवं निर्देश का पालन करें।
स्वस्थ रहने के लिए निर्धारित चिकित्सकीय माप –
. जितने इंच ऊंचाई हो, उतना किलोग्राम के आसपास वजन हो।
. स्त्री की कमर का घेरा 30 से 35 इंच हो।
. पुरूष के कमर का घेरा 35 से 40 इंच के लगभग हो।
. बी पी 120/80 एमएमएचजी हो।
. कोलेस्ट्राल 130 एमजी/डीएल तक हो।
. ट्राईग्लिसराइड 130 एमजी/डीएल से नीचे हो।
. खाली पेट शुगर 100 एमजी/डीएल से नीचे हो।
. खाने के दो घण्टे बाद शुगर 140 एमजी/डीएल से नीचे हो।
