कोलंबो, भारत सरकार के निमंत्रण पर पहली बार भारत की यात्रा कर शनिवार को लौटे श्रीलंका की मार्क्सवादी जेवीपी पार्टी के सदस्यों ने कहा कि द्वीपीय राष्ट्र के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग महत्वपूर्ण है और यह दुनिया में अलग-थलग नहीं रह सकता।
भारत-श्रीलंका समझौते के खिलाफ 1987-90 में भारत विरोधी अभियान का नेतृत्व करने वाली मार्क्सवादी-लेनिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) का एक प्रतिनिधिमंडल शनिवार को भारत की पांच दिवसीय आधिकारिक यात्रा कर स्वदेश लौटा।
भारत से वापसी के बाद जेवीपी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके ने प्रतिनिधिमंडल के दौरे की एक संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि प्रतिनिधिमंडल ने भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ भी मुलाकात की।
उन्होंने कहा कि श्रीलंका में इस साल के अंत में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ में यह यात्रा महत्वपूर्ण थी।
दिसानायके ने कहा, ‘‘लोगों को राष्ट्रपति चुनाव से स्थानीय राजनीति में बदलाव की उम्मीद है। ये दौरा इसलिए अहम था, क्योंकि श्रीलंका दुनिया में अलग-थलग नहीं रह सकता।’’ उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग श्रीलंका के लिए अहम है।
श्रीलंका में भारत के निवेश के विरोध में उनकी बयानबाजी के बारे में पूछे जाने पर दिसानायके ने कहा, ‘‘आधिकारिक निमंत्रण का सम्मान करने और बैठक करने का मतलब यह नहीं है कि हमें अपनी राजनीतिक और आर्थिक नीतियों को बदलना चाहिए।’’
दिसानायके ने कहा कि श्रीलंका में व्याप्त आर्थिक और राजनीतिक संकट के बारे में भारत में अच्छी जागरूकता है। उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी और निवेश जैसे विभिन्न क्षेत्रों का अध्ययन करने के लिए जेवीपी की यह यात्रा उपयोगी थी।
जेवीपी ने भारत की यात्रा के दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी नीत केरल सरकार के प्रतिनिधि से भी मुलाकात की।
जेवीपी ने 1971 और 1987-90 में दो हिंसक आंदोलनों का नेतृत्व किया और 1994 में मुख्यधारा की राजनीति में शामिल हुई। यह दक्षिण श्रीलंका में तीसरा सबसे बड़ा राजनीतिक समूह है।