ईश्वर के पास जाने के नाम से ही हमारा मन क्यों घबराने लगता है? यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण और विचारणीय प्रश्न है। जिस ईश्वर ने हमें धरा पर भेजा है, वापिस उसके पास तो जाना ही पड़ेगा। हम सब जानते हैं कि यह संसार मरणधर्मा है। जिसका जन्म यहाँ होता है उसे अपनी आयु भोगकर इस संसार से विदा होना पड़ता है। फिर भी हम मृत्यु का नाम नहीं सुनना चाहते। जहाँ मौत शब्द आता है, हम उसे सुनकर डर जाते हैं कि जैसे वह अभी भागकर हमारे पास आ जाएगी।
पहले हम यह विचार करते हैं कि मनुष्य की निश्चित आयु कितनी है? मनुष्य की निश्चित आयु वही है जो हमारे पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार ईश्वर ने हमारे लिए निर्धारित की है। जो आयु निश्चित करके ईश्वर जीव को इस संसार में भेजता है, वह जब पूर्ण हो जाती है तब उसे यहाँ से विदा होना पड़ता है। इसमें जीव की इच्छा या अनिच्छा का कोई मतलब नहीं होता, न ही उससे इस विषय में पूछा जाता है।
इस असार संसार में आने के बाद मनुष्य अपने यहाँ आने का उद्देश्य ही भूल जाता है। कुछ निश्चित समय के लिए मिले हुए इस जीवन पर वह अपना अधिकार मानने लगता है। तब वह अपनी मनमानी करने लगता है। हर प्रकार के कर्म-कुकर्म करने में वह हिचकिचाता नहीं है। मनुष्य इस संसार में आने से पहले जब माता के गर्भ में होता है तब वह अन्धकार से घबराने लगता है। ईश्वर से उससे मुक्ति की प्रार्थना करता है। वह प्रभु से बहुत से वादे करता है, कसमें भी खाता है।
संसार में मनुष्य आते ही सब कुछ भूल जाता है। वह अपने वादों को याद नहीं रख पाता और अपनी कसमें तोड़कर इतराता फिरता है। इसलिए वह उन पर अमल भी नहीं कर पाता। फिर वह धीरे-धीरे ईश्वर से विमुख होता जाता है। उसकी यही बेरुखी उसके डर का कारण बनती है। उसके सिर पर मौत की तलवार हर समय लटकी रहती है जिसे वह उतार फैंकना चाहता है। उसी के लिए सारे प्रपंच करता है। उससे बचने के लिए धर्म का प्रदर्शन करता है। इन्सानों की आँखों में तो वह यदा कदा धूल झौंकता रहता है। साथ-साथ भगवान को भी धोखा देने से बाज नहीं आता। जब मनुष्य ऐसे कर्म करेगा तो उसके मन में डर स्वाभाविक ही घर बनाकर बैठ जाएगा।
अपने डर को दूर भगाने के लिए मनुष्य को देश, समाज, धर्म और घर-परिवार के नियमों के अनुकूल कार्य करने चाहिए। इस प्रकार के कार्यों को करने से मन में उत्साह बना रहता है। जब गलत काम नहीं किया जाएगा तो मन में ग्लानि का भाव कभी नहीं आएगा। सबसे बढ़कर उसका मन भी सदा प्रसन्न रहेगा। इसके विपरीत जो व्यक्ति देश, समाज, धर्म और घर-परिवार के नियमों के प्रतिकूल कार्य करता है, उसके मन में सदैव अपनी पोल खुल जाने का भय समाया रहता है।
ईश्वर उन्हीं लोगों से प्रसन्न होता है जो बिना भेदभाव के उसके बनाए हुए सब इन्सानों के साथ सदा समानता का व्यवहार करते हैं। छल-कपट से दूर वे सरल हृदय लोग प्राणिमात्र से स्नेह करते हैं। किसी भी व्यक्ति का दिल दुखाने की भूल तो वे कदापि नहीं करते। अपने कार्यों का सम्पादन करने के लिए किसी लालच अथवा डर के शिकार नहीं बनते। सच्चे मन से सबकी भलाई और उन्नति हेतु प्रयासरत रहते हैं, ढोंग नहीं करते।
अबू बिन आदम की कथा जो कभी बचपन में पढ़ी थी, इस प्रसंग में याद आ रही है। अबू बिन आदम ईश्वर से बहुत प्रेम करता है लेकिन वह खुद को बहुत तुच्छ समझता है। एक रात को अबू बिन आदम की नींद खुल जाती है। वह अपने कमरे में तेज रोशनी और एक देवदूत को देखता है जो एक पुस्तक में कुछ लिख रहा होता है। वह सूची में उन लोगों के नाम लिखता है जो ईश्वर से प्रेम करते हैं।
अबू बिन आदम देवदूत से पूछता है, “वह क्या लिख रहा है।”
देवदूत उसे बताता है, “वह उन लोगों के नाम लिख रहा है जो ईश्वर से प्रेम करते हैं।”
देवदूत उसे पुस्तक दिखाते हुए पूछा, “क्या तुम्हारा नाम उस सूची में है।”
अबू बिन आदम देवदूत से कहता है, “उसका नाम वहॉं नहीं है लेकिन वह उस सूची में अपना नाम लिखवाना चाहता है जिसमें उन लोगों के नाम हैं जो ईश्वर से प्रेम करते हैं।”
देवदूत ने एक और लिस्ट दिखाई, “उसमें उन अच्छे मनुष्यों में सबसे ऊपर उनका नाम था जो ईश्वर को प्रिय थे।”
उन्होंने आए हुए देवदूत से पूछा, “मेरा नाम सबसे ऊपर क्यों है? मैं तो ईश्वर की भक्ति ज्यादा नहीं करता।”
देवदूत ने उनसे कहा, “तुमने अपने सारे जीवन में लोगों की निस्वार्थ सेवा की है। इसीलिए ईश्वर के प्रिय जनों में सबसे ऊपर है।”
अतः ईश्वर के पास जाने से मन घबराना नहीं चाहिए क्योंकि यह आस्था और विश्वास की ओर बढ़ने वाला एक कदम है। जब मनुष्य ईश्वर की शरण में जाता है तो उसे मानसिक शान्ति मिलती है। इसका कारण है कि एक उच्च शक्ति पर भरोसा करना। हम अपनी समस्याओं को उसे समर्पित करते हैं और यह अनुभव करते हैं कि जीवन पर एक उच्च शक्ति का नियन्त्रण है। इसके लिए हम प्रार्थना, भजन-कीर्तन और ध्यान जैसे आध्यात्मिक साधनों का उपयोग कर सकते हैं।
इसलिए जब तक शरीर स्वस्थ्य है, मृत्यु दूर है तब तक ऐसे कार्य कर लेने चाहिएँ जो हमें ईश्वर का प्रिय बना दें। हमारे मन में किसी तरह का कोई भय न रहे और हम निडर होकर मृत्यु के पश्चात उस प्रभु के पास जा सकें।
