महिलाओं को समानता का हक खुद लेना है : भारतीय उपन्यासकार सारा जोसेफ

तिरुवनंतपुरम,  जानी-मानी भारतीय उपन्यासकार सारा जोसेफ ने यहां आयोजित किए जा रहे मातृभूमि अंतरराष्ट्रीय पत्र महोत्सव (एमबीआईएफएल), 2024 में कहा कि समानता कोई ऐसी चीज नहीं है जो महिलाओं को दी जाए बल्कि आधी आबादी होने के कारण उन्हें यह लेनी होगी।

भारतीय उपन्यासकार और मलयालम में लघु कहानियां लिखने वाली जोसेफ ने कहा कि राजनीतिक समानता दी जा सकती है लेकिन समाज में अब भी कोई वित्तीय या सामाजिक समानता नहीं है।

उन्होंने कहा कि इसकी वजह यह है कि राजनीतिक दल चुनावों को केवल सत्ता हासिल करने के साधन के रूप में देखते हैं और इसलिए मतदाताओं को उनकी शक्तियों तथा अधिकारों के बारे में जागरूक बनाने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है।

जोसेफ ने त्रिशूर निर्वाचन क्षेत्र से 2014 का लोकसभा चुनाव आम आदमी पार्टी (आप) की टिकट पर लड़ा था। उन्होंने कहा कि केरल में सत्तारूढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) या उसकी वाम मोर्चे की सरकार अपने दलों में महिलाओं के लिए 33 फीसदी का आरक्षण न होने के कारण आगामी लोकसभा चुनाव में महिलाओं को 33 फीसदी सीटें उपलब्ध नहीं करा सकतीं।

चुनावों में महिलाओं की सफलता के आंकड़ों का हवाला देते हुए जोसेफ ने कहा कि ओडिशा में पिछले लोकसभा चुनाव में जिन महिलाओं को टिकट दी गयी थी, उनमें से 71 फीसदी विजयी साबित हुईं।

उन्होंने एमबीआईएफएल के पांचवें संस्करण में ‘महिलाओं द्वारा निर्मित केरल’ सत्र के दौरान कहा, ‘‘पश्चिम बंगाल में भी ऐसा ही हुआ। यह दर्शाता है कि अगर महिलाओं को सीट दी जाती है तो वे जीत जाएंगी।’’

केंद्र साहित्य अकादमी पुरस्कार, केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्मप्रभा साहित्य पुरस्कार जैसे कई पुरस्कारों से सम्मानिज जोसेफ ने कहा कि वह ‘देने’ या ‘आरक्षण’ जैसे शब्दों के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा, ‘‘समानता कोई देने की चीज नहीं है बल्कि महिलाओं को इसे लेना है। महिलाओं की आबादी 50 फीसदी है। उन्हें समानता देने की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्हें 33 फीसदी आरक्षण मांगने की जरूरत नहीं है।’’

आठ फरवरी को शुरू हुआ एमबीआईएफएल 11 फरवरी को समाप्त होगा।