हमारे मन में यह भ्रामक धारणा घर कर गई है कि योग का अभ्यास केवल बच्चे या युवक ही कर सकते हैं क्योंकि उन्हीं का शरीर इतना लचीला रहता है कि योगासनों के अभ्यास के लिए विविध प्रकार से उसे मोड़ सकते हैं।
वृद्धावस्था तक आते-आते शरीर का लचीलापन खत्म हो जाता है। संधियों या जोड़ों में एक प्रकार का कड़ापन आ जाता है जिस कारण पद्मासन, पादहस्तासन आदि का अभ्यास एक प्रकार से असंभव सा हो जाता है।
यह भ्रामक धारणा इस गलत धारणा से बनती है कि योग का मतलब ही योगासन है और योगासन शब्द सुनने पर हमारे मन में पद्मासन या शीर्षासन आदि का अभ्यास करने वालों के चित्रा उभर आते हैं। फल स्वरूप हमारे वृद्ध जन योगाभ्यास के लिए प्रायः तैयार नहीं होते।
हमें इस धारणा को सुधारना है। योग में आसन तो हैं पर योग केवल आसन ही नहीं है। योग के और भी अंग हैं जैसे प्राणायाम, ध्यान इत्यादि जिनका अभ्यास वृद्धावस्था में भी बड़ी सरलता से किया जा सकता है।
एक प्रकार से देखें तो वृद्धावस्था योगाभ्यास के लिए अपेक्षाकृत अधिक अनुकूल है क्योंकि इसी अवस्था में हमें इन सब बातों के लिए पर्याप्त समय और अवकाश मिल जाता है। गृहस्थी के सामान्य झंझटों से हम मुक्त रहते हैं। व्यस्तता कम रहती है।
जो लोग विविध प्रकार के कठिन आसनों के अभ्यास से डरते हैं उन्हें यह सुन कर तसल्ली मिलेगी कि कुर्सी पर बैठे-बैठे भी आज कल योग का अभ्यास किया जा सकता है। महर्षि पंतजलि ने आसन के संबंध में इतना ही कहा है कि ’स्थिरं, सुखं आसनम्‘ यानी थोड़ी देर तक आराम से बैठने की आदत डालना ही आसन है।
जो लोग घुटनों के दर्द के कारण पदमासन में नहीं बैठ सकते, वे साधारणतयाः हम जिस प्रकार भोजन करने के लिए फर्श पर बैठते हैं, वैसे भी बैठकर प्राणायाम, ध्यान इत्यादि का अभ्यास कर सकते हैं। इसे सुखासन कहते हैं।
वैसे तो वृद्धावस्था में योग की अधिक आवश्यकता है। वृद्धावस्था में उच्च रक्तचाप, मधुमेह, दिल के रोग, टी.बी. जैसे रोगों से हमारा शरीर ग्रस्त हो जाता है। अनावश्यक उत्कंठाओं और अकेलेपन की व्यस्थाओं के कारण हमारा मन भी प्रायः अशान्त बन जाता है।
यानी वृद्धावस्था में तरह-तरह की चिंताओं में हमारा मन डूबा रहता है। यहां तक कि कुछ लोगों को आधी रात तक नींद नहीं आती और कुछ लोग सुबह दो बजे ही जग जाते हैं। फिर नींद न आने के कारण रात का शेष समय बिताना उनके लिए बहुत कठिन हो जाता है। कोई कोई स्लीपिंग पिल्स का आश्रय लेते हैं।
जिन वृद्धजनों के पास अधिक अवकाश है उन से मेरा अनुरोध है कि वे निकट के किसी योगाचार्य से मिलकर इस संबंध में चर्चा करें। सुखासन में बैठ कर प्राणायाम करना और ध्यान करना सीखें। आप के पास जितना अधिक समय है उतना अच्छा। यदि किसी कारणवश आप वृद्धावस्था में भी अति व्यस्त हैं तो भी आप आधा घंटा तो अपने शरीर और मन के स्वास्थ्य के लिए ले ही सकते हैं लेना ही चाहिए न?
उत्तर पश्चिम रेलवे के वरिष्ठ मंडल चिकित्सक अधिकारी डॉ. बी. आर. मारून नें लिखा है कि ध्यान की अवस्था में हमारी पीनियल ग्रंथि अधिक सक्रिय होती है और मेलाटोनिन हारमोन का अधिक निर्माण करती है। इस से हम बुढ़ापे के कई रोगों से बच सकते हैं।