ईश्वर निर्मित प्रकृति बहुत सुन्दर

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ईश्वर निर्मित यह सम्पूर्ण प्रकृति बहुत ही सुन्दर है। इसका सौन्दर्य मनमोहक है। इसके किसी भी अंश पर यदि ध्यान दिया जाए तो उसकी सुन्दरता में मन खो जाना चाहता है। इसे जितना भी गहराई से हम निहारते हैं, वह उतना ही हमारे मन में गहरे उतरती जाती है। ईश्वर की बनाई इस सृष्टि में, प्रकृति में हम ढूंढने पर भी कोई कमी नहीं निकाल सकते। उसकी रचना वास्तव में सम्पूर्ण है, हम मनुष्यों की बनाई हुई वस्तुओं की तरह नहीं है। जो कुछ समय पश्चात बेकार हो जाती हैं और फिर उन्हें हम कचरा समझकर फैंक देते हैं।

हमें चारों ओर एक-से-एक सुन्दर पक्षी दिखाई देते हैं। उनको देखते ही रह जाने का मन करता है। ऊषाकाल में होने वाली उनकी चहचहाहट इस सृष्टि में सदा नवजीवन का संचार करती है। पक्षियों का कलरव जीवनदायनी शक्ति होता है। मोर का नृत्य, तोते की वाचालता, कोयल का मधुर गान किसी को भी प्रभावित कर लेते हैं। इनका मासूम सौन्दर्य तब इनका शत्रु बन जाता है जब हम मनुष्य अपने मनोरंजन के लिए निर्दयता से इन्हें पिंजरों में कैद कर लेते हैं।

इसी प्रकार हम पशुओं के सौन्दर्य के विषय में भी कह सकते हैं। कुलॉंचे भरता हिरण अपने अबोधपन के कारण बहुत ही मोहक लगता है। पशुजगत हमारे लिए बहुत ही उपयोगी है। गाय, बैल, भैंस, बकरी, भेड़, हाथी, घोड़ा, गधा आदि पशु हमारे दैनन्दिन हमारे लिए कार्य करते हैं। शेर, हाथी आदि पशुओं को हम पालतू बनाकर या कैद करके इनसे हम मनोरंजन करते हैं। विभिन्न प्रकार के कार्यों को करवाने के लिए हम इन पशुओं का उपयोग करते हैं।

इसी प्रकार नदियाँ, झरने, जल प्रपात व समुद्र भी हमें पल-पल पुकारते हैं। इनका सुन्दर रूप हर किसी को मोह लेता है। लोग इन्हें निहारने के लिए दूर-दूर से अपना समय व पैसा व्यय करके जाते हैं। समुद्र व समुद्री जीव यानी जलचर सदा से ही हमारे आकर्षण का केन्द्र रहे हैं। इन्हें भी हम सजावट का सामान समझते हैं। हद तो हम मनुष्य तब पार करते हैं जब इन मासूम से सुन्दर जीव-जन्तुओं को मारकर खा जाते हैं। तब बड़ी शान से हम सबके बीच में बैठकर बताते हैं कि हमें सी फूड बहुत अच्छा लगता है। हम उसे अक्सर खाते रहते हैं।

सुन्दर और रंग-बिरंगी, मनभावन तितलियाँ इधर-उधर उड़ती हुई बच्चों के साथ-साथ बड़ों का ध्यान भी आकर्षित करती हैं। इन्हें भी पकड़कर बच्चे अपना मनोरंजन करते हैं। विभिन्न प्रकार के सुन्दर, मनमोहक व सुगन्धित पुष्प पूरे वातावरण को महका देते हैं। पौधों पर लगे हुए ये फूल सभी के आकर्षण का केन्द्र बनते हैं। इन्हें तोड़कर हम अपने स्वार्थों की पूर्ति करते है। फिर अपने ही पैरों से उन्हें मसल‌कर रख देते हैं।

पर्वतों की सुन्दरता का बखान क्या किया जाए? इनके सौन्दर्य प्रेमी न जाने कितने कष्ट उठाकर इन्हें निहारने आते हैं। इनके आकर्षण में बॅंधे हुए लोग स्वयं को तरोताजा बनाने के लिए अपने साथियों या परिवार के साथ आते हैं। कामकाज की आपाधापी और शहरों के शोर-शराबे से दूर इन शान्त पर्वतों की गोद में समय व्यतीत करके ताजगी के साथ आत्मसन्तोष का अनुभव होता है। यदि पहाड़ों की चोटियाँ बर्फ से ढकी हों, रास्तों पर बर्फ का साम्राज्य हो, पेड़ों पर लटकती सफेद बर्फ हो और चारों ओर बर्फ की सफेद चादर बिछी हो तो उस दृश्य के क्या कहने? यह श्वेतिमा मन को आनन्द से सराबोर कर देती है।

ग्रह-नक्षत्र, चाँद-सितारे हमेशा से ही मनुष्यों के लिए रहस्य रहे हैं। इन सबकी गाथाएँ हम समय-समय पर सुनते व पढ़ते रहते हैं। उनके विषय में जानकारी जुटाने का हम प्रयास करते रहते हैं। वैज्ञानिक दिन-रात परिश्रम करते रहते हैं और हमारे लिए कुछ नवीन खोजकर लाते हैं।

कहने का तात्पर्य है कि इस सृष्टि की प्रत्येक रचना को हम निहारने लगें और उसमें डूबते चले जाएँ तो उस मालिक की प्रशंसा करने की इच्छा होती है। उसने चारों ओर इतनी अधिक सुन्दरता भर दी है जिसकी हम कभी स्वप्न में भी कल्पना नहीं कर सकते। उस प्रभु की सृष्टि में किसी प्रकार की कोई कमी निकालने की सामर्थ्य हम इन्सानों में नहीं है। हम लोग तो बस सृष्टि को बर्बाद करने में कोई कभी नहीं छोड़ते। पर्यावरण को दूषित करके हम निस्सन्देह अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी मारने का कार्य करते हैं।

ईश्वर ने इस सृष्टि को हमारी कल्पना से भी परे इतना सुन्दर बनाया है और वह चाहता है कि हम अपने व्यवहार अथवा अपने दुष्कृत्यों से इसे दूषित न करें। हम उसे उसी ही तरह सम्हाल कर रखें जैसा कि उसने इसे बनाया है। तभी हम मनुष्यों के साथ-साथ सभी जीव-जन्तुओं की सुरक्षा हो सकती है। अब यह सब हमारे कृत्यों पर निर्भर करता है। हमें कभी इस सृष्टि को हानि पहुंचाने का नकारात्मक कार्य नहीं करना चाहिए।

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