सप्तऋषि आश्रम

हरिद्वार भारत का प्रमुख तीर्थ स्थान है जो मठों, मन्दिरों, आश्रमों, धर्मशालाओं, पुलों, घाटों सहित पतित पावनी भागीरथी गंगा व शिवालिक पर्वत श्रृंखलाओं आदि के कारण आस्तिकों के आकर्षण का मुख्य कारण है।


भारत के अन्य भागों की झुलसाने वाली गर्म हवाएँ भी पर्यटकों को लू से निजात पाने हेतु भागीरथी गंगा की सैर करने हेतु उद्यत करती हैं। गख्रमयों में हजारां-हजारों लोग धाख्रमक आस्था और पर्यटन के वशीभूत होकर शिवालिक पर्वत श्रृंखलाओं की गोद में बसे हरिद्वार की ओर कूच करते हैं।


सप्तऋषि आश्रम भी हरिद्वार के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है। यह सात गोत्रों पर आधारित सप्तऋषियों के नामों पर स्थापित है कश्यप, भारद्वाज, अत्रि, गौतम, जमदग्नि, विश्वामित्रा, वशिष्ट। इन सातों ऋषियों ने यहाँ घोर तपस्या की थी। यही कारण है कि भागीरथी गंगा को अपने आगमन के समय यहां सात धाराओं में होकर बहना पड़ा था। आज भी ये सात धाराएं द्रष्टव्य हैं। इसी कारण से भी इस स्थान का नाम सप्त सरोवर भी है। यह अति प्राचीन स्थान है।


समय व परिवेश के साथ-साथ यहाँ निर्माण कार्यों में प्रगति, परिवर्तन होते रहे हैं। सनातन मत में ऐसी दृढ़ मान्यता है कि उक्त सात गोत्रा के सप्तऋषियों को प्रसन्न करने हेतु भागीरथी गंगा स्वयं तत्कालिक समय में सात धाराओं में बही थी। यह स्थान भीम गोडा से 2 मील आगे स्थित है। सप्तऋषि आश्रम की स्थापना सन् 1954 में हुई थी। इसका निर्माण कार्य गोस्वामी गणेश दत्त ने कराया था। आज यहाँ संस्कृत विद्यालय, अतिथि निवास, कुटियायें आदि विस्तृत रूप में पल्लवित होते जा रहे हैं। यहाँ जो कुटियायें हैं वहां साधक निवास करते हैं।


सप्तऋषि आश्रम के आरम्भ में तोरणनुमा मुद्रा में द्वार है जिसके दोनों ओर शिलालेख अंकित है। तोरण द्वार के नीचे से भीतर जाने का रास्ता है तथा इसके अलावा तोरण द्वार के अगल-बगल से भी भीतर जाने के रास्ते हैं। भीतर प्रवेश होने पर अर्द्धगोलाकार छत आरम्भ होती है जो टिन शेडनुमा है तथा जिसका रंग ऊपर से हरा है। यह छतनुमा शेड लगभग पचास-साठ फुट लम्बा है। यह प्लास्टिक की अथवा आधुनिक धातु की लगती है जो सूर्य की रोशनी में चमकीली प्रतीत होती है।


यह पचास-साठ फुट लम्बाई वाली गैलरी है जो आगन्तुक को छाया प्रदान करती है, साथ ही उसका वर्षा से बचाव करती है लेकिन इस गैलरी के दोनों ओर बाग-बगीचे हैं, साथ ही कुछ अतिथि कक्ष भी बने हुए हैं। राह में श्री जगदेव सिंह महाविद्यालय का बोर्ड टंगा हुआ है।
हरे रंग की छत वाली शेड के मध्य रास्ते में एक कीख्रत स्तम्भ भी है जो लगभग 50 फुट से भी ऊँचा प्रतीत होता है। यह बायीं ओर स्थित है। इसी प्रकार से दाहिनी ओर एक मूख्रत स्थित है। शेड गैलरी के खत्म होने के बाद कार्यालय स्थित है। उसके पास ही आयुर्वेदिक दवाइयों की दुकान अवस्थित है। यहां और भी कक्ष दिखाई पड़ते हैं।


आगे चलने पर दाहिनी ओर सर्वप्रथम गणेशजी का मन्दिर अवस्थित है। गणेशजी मन्दिर के सामने यज्ञशाला अवस्थित है। यह यज्ञशाला भारत की आन-बान व शान की प्रतीक है। इस यज्ञशाला का निर्माण 56 साल पूर्व हुआ था। 101 वर्षों तक प्रतिदिन यहां यज्ञ होता रहेगा, यह इस यज्ञशाला का प्रमुख प्रतिपाद्य है।


आँधी, तूफान, मूसलाधार वर्षा, बाढ़ जैसी स्थितियों में भी आश्रमवासियों द्वारा कभी इस उद्देश्य में बाधा उपस्थित नहीं होने दी गयी। इस यज्ञ का प्रतिफल विश्वकल्याण, विश्व शांति और भारत की उन्नति की चाह है। गणेश मन्दिर के आगे बैठने की व्यवस्था है उसके आगे कुण्ड हैं जहां भगवान शंकर विराजे हुए हैं। फिर सरस्वती जी का मन्दिर आता है।


सप्तऋषि परिसर में सप्तऋषि मन्दिर, दुर्गा मन्दिर, हनुमान मन्दिर, राधा-कृष्ण मन्दिर आदि अन्य मन्दिर भी अवस्थित हैं। परिसर में महामना मदनमोहन मालवीय की मूख्रत भी देखने योग्य है। आश्रम के कार्यालय में बैठे मुन्ना भाई ने बताया कि तरह-तरह के पौधों, वृक्षों, जलकुण्डों, फूलों-पत्तों आदि की निराली शोभा से आच्छादित यह आश्रम शांति व सुकून का सागर है जहां बाहर का कोई भी आगन्तुक आने के बाद परम शांति का विशेष अनुभव करता है।