प्राणी जो उड़ सकने में समर्थ हैं, उन्हें भी सामान्यतः पक्षी समझा जाता है पर पक्षियों की ऐसी अनेक प्रजातियां भी हैं जो जमीन पर दौड़ सकने में पूर्णतः समर्थ हैं, उड़ने में नहीं। फिर भी वे पक्षी की श्रेणी में ही आते हैं। ऐसे पक्षियों के पिच्छ अविकसित होने के कारण ही वे आकाश की ओर ताकना भी तौहीन समझते हैं।
भारत में बिल्ली और भेड़िये अत्यधिक संख्या में पाये जाने के कारण वहां न उड़ने वाले पक्षियों की कोई गुंजाइश नहीं है। ये पक्षी उन स्थानों पर ही पर्याप्त संख्या में पाये जाते हैं जहां पर उनके ’जानी दुश्मन‘ बिल्ली और भेड़िये नहीं के बराबर या बिलकुल ही नहीं होते हैं। इन पक्षियों के दांत न होने के कारण शाकाहारी भोजन की तलाश में उन्हें उन जगहों का चुनाव भी करना पड़ता है जहां आसानी से आहार उपलब्ध हो सके। पक्षी, जो उड़ने में असमर्थ है, निम्न हैं।
शुतुरमुर्ग
शुतुरमुर्ग की चार प्रजातियां अफ्रीका एवं अरब देशों के रेगिस्तानों की शोभा बढ़ा रही हैं। यह संसार के सबसे विशाल जीवित पक्षियों में से एक है। इनका वजन सामान्यतः 150 किलोग्राम से भी अधिक हो सकता है तथा ऊंचाई लगभग 3 मीटर होती है। नर शुतुरमुर्ग की पूंछ सफेद एवं गर्दन काली होती है जबकि मादाओं की अपेक्षाकृत छोटी एवं भूरे रंग की होती है।शुतुरमुर्ग की दो अनोखी आदतें हैं। पहली आदत के मुताबिक वह व्यर्थ वस्तुओं को निगल जाता है। व्यर्थ वस्तुओं में लोहे के टुकड़े, बोतलों की टोपियां तथा इसी प्रकार की वस्तुएं हो सकती हैं। रेगिस्तानी ऊंट की तरह वह भी कुछ दिनों तक बिना पानी के भी संतुष्ट रह सकता है। इसी गुण के कारण इसे ऊंट पक्षी भी कहा गया है।
यह प्रति घण्टा 40 कि॰ मी॰ की रफ्तार से दौड़ सकने में समर्थ है। इसकी टांगें भी ऊंट की ही तरह होने के कारण यह लंबा होता है। दूसरी विशेषता काफी दिलचस्प है। इनके घोंसले रेगिस्तानी बालू में अति साधारण होते हैं, जिसमें बहुत सी मादाएं एक ही घोंसले में अपने अण्डे देती हैं। रात्रि पहर में नर अंडों को सेवता हैं जबकि दिन में मादा सेवती है। वैसे अण्डे काफी बड़े होते हैं जिनका वजन 2 किलो ग्राम तक होता है।
शुतुरमुर्ग के अण्डे सजावट के काम भी आते हैं। लघु एवं वृहत उद्योगों में इसके पिच्छकों की अत्यधिक मांग है। इस कारण अफ्रीका एवं अरब देशों के रेगिस्तानों में शुतुरमुर्गो को अधिक से अधिक सुरक्षा तथा सुविधा प्रदान की जा रही है।
पेंगुइन
पेंगुइन भी पक्षी होने के बावजूद धरती से ही सटा रहता है। पानी ही इसका घर संसार है। ये दक्षिणी गोलार्द्ध के शीत पथरीले प्रदेश एंटार्टिका में बहुधा पाये जाते हैं। भोजन की तलाश पानी में ही करते हैं। मछली इनका स्वादिष्ट भोजन हैं।
पेंगुइन की ऊचाई 19 इंच होती है। इनका शारीरिक रंग रूप नीला और काला होता है। इनकी छाती में तिरछा निशान होता है, होंठ काला तथा भाग सफेद होता है। ये अपने अण्डे देने में असमर्थ होते हैं, अगर अधिक ठंड पड़ती हैं।
रीह
रीह की तीन प्रजातियां पायी जाती है। ये अधिकांशत दक्षिणी अफ्रीका के मैदानों भागों में बड़ी संख्या में एक साथ पाये जाते हैं। पंख विकसित होने के बावजूद भी ये उड़ नहीं सकते हैं।
रीह की गर्दन पर पंख इसकी सुन्दरता में चार चांद लगाये रखते हैं। पिछला भाग मुर्गे की तरह होता है जिससे ये पानी में तैरने योग्य होते हैं। इनके घोंसले काफी छिछले होते हैं जो जमीं पर नर द्वारा पत्तियों एवं घास से बने होते हैं। अण्डे भी नर द्वारा ही सेवे जाते हैं। शुतुरमुर्ग की तरह इनके पिच्छकों से भी सजावटी वस्तुओं का निर्माण होता है पर इसकी पिच्छ शुतुरमुर्ग की अपेक्षा निम्न स्तर की होने के कारण इससे निम्न स्तर की ही श्रृंगार वस्तुएं बनती हैं।
हेस्पैरोनिस
उत्तरी अमेरिका की कनास नामक स्थान से इस पक्षी का पता चला है। इसकी लम्बाई लगभग दो मीटर तक होती है। शरीर लम्बा धारोरेखित एवं गर्दन युक्त होता है। जबड़े में नुकीले दांत होते हैं।
हैस्पैरोनिस के पिच्छ पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं। उरोस्थि में कील भी नहीं होती है। इसका पिछला पैर मजबूत एवं झिल्लीयुक्त होता है जो तैरने में सहायता पहुंचाता है।