प्यार ही नहीं, जीवन साथी का आदर भी करें

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Shot of a mature couple chilling on the sofa at home

यह एक सच है कि वैवाहिक जीवन में आदर देने से ही आदर मिलता है। विवाह एक ऐसा सुखद रिश्ता है जिसमें बंधन होने पर भी आजादी की संभावना है। यदि एक दूसरे के निज को समझ कर चला जाए, तभी इसमें घुटन से बचा जा सकता है। जहां सफल वैवाहिक जीवन के लिए सकारात्मक सोच, संवेदनशीलता, धैर्य, और आपसी समझ आवश्यक है, वहीं एक दूसरे के प्रति आदर भाव होना भी जरूरी है।
आदर के लिये दूसरे का उच्च शिक्षित होना या अमीर घर से होना या बहुत खूबसूरत होना जरूरी नहीं। आदर की प्रथम जरूरत है प्रेम। देखा जाए तो आदर और प्रेम इस तरह जुड़े हुए भाव हैं कि एक से दूसरे को अलग रूप से नहीं देखा जा सकता।
कई पति यह कहते मिलेंगे कि पत्नी को उसकी औकात में रखना चाहिए नहीं तो वह सर पर चढ़ जाती है। उनके अनुसार कभी-कभी दो चार हाथ लगाने में कोई बुराई नहीं है। वे यह बात भूल जाते हैं कि पत्नी की अपनी अस्मिता है, स्वतंत्रा व्यक्तित्व है जिसे उसने पति के पास गिरवी नहीं रख दिया है।
प्यार का मतलब कई बार उनके लिए भौतिक जरूरतों की पूर्ति और यौनिक संतुष्टि मात्रा होता है। उनके लिये पत्नी को यह सब मिल रहा है तो यही काफी है। शायद ऐसे ही लोगों को देखकर कुछ लोगों ने यह धारणा बना ली है कि वैवाहिक जीवन महिलाओं के आत्मसम्मान और आजादी को समाप्त करने का यह समझौता मात्रा है। यह स्त्रिायों को अपमानित करता है।
यह सच है कि वैवाहिक जीवन के अपने जोखिम हैं जहां बहुत कुछ दांव पर लगा होता है लेकिन लाख जोखिमों के बावजूद यह कहा जा सकता है कि यह केवल वैवाहिक जीवन ही है जो स्थायित्व भरा आनंद और प्रेम का एक निरंतर प्रवाहमान स्रोत प्रदान करता है, जीवन को प्रेरणा से भरता है, जीवंत बनाकर उत्साह से भरता है और पति पत्नी के संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास में बाधा न बन सहायक बन जाता है।
विवाह को स्थायित्व प्रदान करने का एक बढि़या फार्मूला है समय-समय पर इस रिश्ते का विश्लेषण करना। अपनी गलती को रियलाइज करें। साथी से केवल काम भर की बातें करके ही न रह जाएं बल्कि दिल की बात भी बतायें। इस स्तर पर संवाद एक दूसरे को समझने के लिए जरूरी हैं।
परिवर्तन जीवन का नियम है। सब कुछ अस्थाई है सिवा परिवर्तन के। विवाहोपरांत स्त्राी पर बच्चों के पालन पोषण का उत्तरदायित्व भी होता है तो काफी कुछ त्याग करना पड़ता है। कई बार नौकरी छोड़नी पड़ती है। घर के लिये प्रमोशन के चांस खोने पड़ सकते हैं। पहचान तक खोनी पड़ सकती है।
इन सब का फ्रस्टेªशन वह पति पर न निकाले। इसमें उनका क्या कसूर? क्या यह सब आपने अपनी खुशी, अपनी सुरक्षा के लिए नहीं किया है। पॉजिटिव साइड देखते हुए घर गृहस्थी में दिये अपने योगदान की कद्र करें। उस पर गौरव महसूस करें। पति का निरादर यह कह कर न करें कि आपने उनके लिये अपनी जिन्दगी तबाह कर डाली।
पुरूष के जीवन में परिवर्तन कुछ और ही रंग लाते हैं। उम्र के पचास से साठ वर्ष के मध्य वह शीर्ष पद पर होता है। उसके पास सत्ता शक्ति और फिटनेस सब कुछ होता है। ऐसे में कई बार घर की उबाऊ रूटीन, वहां का खालीपन और पत्नी का बुझा-बुझा सा या कभी कड़वाहट से भरा तीखा स्वरूप उसमें वितृष्णा भर देता है। उसे लिफ्ट देने वाली बहुत मिल जाती हैं, तब उसके बहकने के चांसेज काफी होते हैं। पत्नी के लिये अगर मन में आदर होता है तो वह उस पर अंकुश लगाये रहता है, टेंपटेशन से बच जाता है।
एकनिष्ठ प्रेम में ही सुकून एवं शांति है। आजकल जो साथी बदलने की हवा चल पड़ी है उसी का अंजाम है समाज में फैलती अराजकता, अशांति बिखराव और बढ़ते मानसिक दबाव व तनाव। 

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