कारण ढूंढें अनिद्रा का

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इस संसार का लगभग हर प्राणी अपनी दिनचर्या में स्वाभाविक अंतराल पर नींद अवश्य लेता है। ऐसा क्यों होता है, इसका ठोस कारण तो वैज्ञानिक भी अभी तक नहीं ढूंढ़ पाये हैं परन्तु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि नींद प्रत्येक जीवधारी की अनिवार्य आवश्यकता है।
विज्ञानवेताओं के अनुसार ‘नींद‘ चेतना का अस्थायी हरण है जिसके माध्यम से शरीर एवं दिमाग को आराम मिलता है। शरीर के ऊतकों की मरम्मत होती है एवं खर्च की हुई शक्ति वापस मिलती है। तन-मन में नई ऊर्जा का संचार होता है जिससे व्यक्ति दुगुने उत्साह के साथ अपना काम करने के लिए सक्षम हो जाता है।
विशेषज्ञों के अनुसार हमारी नींद टुकड़ों में बंटी होती है। सबसे पहले भुजाओं, पैरों, पीठ एवं गरदन की बड़ी मांसपेशियां सोती हैं। अंत में सबसे छोटी जैसे होंठों एवं पलकों की मांसपेशियां सोती हैं। इसी प्रकार हमारे चेतनाकेन्द्र भी क्रमशः एक-एक करके सोते हैं। पहले सूंघने की शक्ति, उसके बाद देखने व सुनने की शक्ति और अंत में स्पर्शशक्ति अवचेतना के आगोश में समा जाती है परन्तु इसका मतलब यह नहीं कि शरीर भी अपना काम करना बंद कर देता है।
नींद में भी शरीर के उपयोगी अंग क्रियाशील रहते हैं, भले इनकी क्रियाशीलता थोड़ी धीमी पड़ जाती है। नींद में रक्तचाप कम हो जाता है, हृदय एवं नाड़ी की गति मंद पड़ जाती है। यकृत, मस्तिष्क तथा वृक्क में रक्तप्रवाह मंद पड़ जाता है। इससे शरीर के अवयवों को आराम मिलता है। यदि किसी व्यक्ति को बहुत समय तक जागना पड़े, तो थकान के कारण वह चिड़चिड़ाने लगेगा एवं उसका शरीर व दिमाग ठीक से काम नहीं कर पाएगा।
चिकित्सकों के अनुसार एक स्वस्थ मनुष्य के लिए औसतन 6 से 7 घंटे की नींद पर्याप्त होती है हालांकि नींद से मिलने वाला लाभ इस बात पर निर्भर नहीं होता कि कौन कितनी देर सोया बल्कि इस तथ्य पर भी निर्भर है कि सोने वाला कितनी गहरी नींद सोया? बार-बार उचटने वाली 6-7 घंटे की नींद से दो-तीन घंटे की गहरी नींद लाभप्रद है। इसी तरह रात में ही सोना अनिवार्य नहीं है बल्कि आवश्यकता के मुताबिक किसी भी समय सोया जा सकता है।
उम्र के अनुसार नींद की आवश्यकता भी अलग-अलग होती है। बच्चों को वयस्कों से ज्यादा नींद की जरूरत होती है क्योंकि उनकी अधिकांश ऊर्जा खेलने में खर्च हो जाती है, साथ ही उनके शारीरिक विकास के लिए भी ऊर्जा चाहिए। आमतौर पर एक साल के बच्चे के लिए बारह घंटे, किशोरवय के लिए दस घंटे, वयस्क के लिए 6-7 घंटे एवं बुजुर्ग के लिए पांच-छह घंटे की नींद पर्याप्त होती है।
आजकल नींद न आना एक आम समस्या बन गई है। प्रसिद्ध अमेरिकी मनोचिकित्सक डॉ. एंथोनी वेल्स के अनुसार इसके कई कारण हैं। चिकित्साविज्ञान के अनुसार बहुत तीव्र दर्द, पुरानी खांसी, हड्डी-प्लास्टर आदि नींद न आने के कई कारण हो सकते हैं। इन बीमारियों से छुटकारा मिलते ही अनिद्रा रोग भी स्वतः ही समाप्त हो जाता है।
दूसरा कारण मनोवैज्ञानिक विकृति है, जैसे-रेस्टलेसनेस ऑफ मेनिया या डिप्रेशन। ऐसे में व्यक्ति को किसी कुशल मनोचिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। वास्तव में मनोवैज्ञानिक कारण जैसे चिंता, तनाव, ईर्ष्या, द्वेष, भय, अत्यधिक उत्तेजना एवं क्रोध नींद न आने के सबसे बड़े कारण हैं। चाय, काफी, शराब एवं धूम्रपान का अतिसेवन भी नींद संबंधी अनियमितता उत्पन्न करता है।
नींद में गड़बड़ी समूचे जीवनक्रम को अस्त-व्यस्त कर देती है। पारिवारिक दायित्वों का दबाव, रोजगार व कार्यक्षेत्रा के बढ़ते तनाव का असर भी सामान्य व्यक्ति की नींद पर पड़ता है परन्तु नींद संबंधी अधिकांश रोगों के लिए व्यक्ति का रहन-सहन, व्यायाम की कमी, खान-पान की बिगड़ी आदतें एवं मोटापा आदि ज्यादा जिम्मेदार हैं। नींद सामान्य हो, इसके लिए कोई दवा या विधि अभी तक विकसित नहीं हो पाई है जिससे स्वाभाविक नींद बिना किसी कुप्रभाव के आ सके।
चिकित्सकों के अनुसार जब तक अनिद्रा के मूल कारणों को समाप्त नहीं किया जाता, नींद की गोली से स्थायी निदान पूरी तरह से असंभव है। अगर हम चिंता-उद्वेग को दूर फेंक कर सरल-निश्छल मनोभावों को आत्मसात कर सोने का प्रयास करें तो निश्चित रूप से हमें निद्रा से मिलने वाले लाभों से वंचित नहीं होना पड़ेगा।

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