केवल एक किलोमीटर के दायरे में फैले खजुराहो के कस्बे में खुद को लेकर कभी यह गलतफहमी हो जाना स्वाभाविक बात है कि हम विदेश के किसी देसी मुहल्ले में हैं। वजह खजुराहो में देसी कम, विदेशी पर्यटक ज्यादा नजर आते हैं। मुंबई और दिल्ली के बाद सबसे ज्यादा पर्यटक आगरा, बनारस और जयपुर से होकर खजुराहो आते हैं। इसलिए भारत घूमने आए पर्यटकों की प्राथमिकता खजुराहो होती है तो बात कतई हैरत की नहीं है क्योंकि मैथुनरत मूर्तियां वह भी तरह-तरह की मुद्राओं में, यहां के मंदिरों की दीवारों में उकेरी गई हैं जो जिज्ञासा के साथ-साथ उत्तेजना भी पैदा करती हैं।
मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड इलाके के जिले छतरपुर का कस्बा खजुराहो वाकई अद्भुत है। खजुराहो की सुबह विदेशी सैलानियों के दर्शन से शुरू होती है। दुनिया का शायद ही कोई देश होगा जहां से यहां पर्यटक न आते हों। जानकर हैरानी होती है कि कई पर्यटक तो यहां नियमित अंतराल से आते हैं और सालोंसाल यहीं रहना पसंद करते हैं।
खजुराहो का इतिहास भी बड़ा दिलचस्प है जो यहां बने कई मंदिरों की दीवारों पर मैथुनरत मूर्तियों से सहज समझ आता है। इन मंदिरों की भीतरी और बाहरी दीवारों पर वात्स्यायन का कामसूत्र कुछ इस तरह चित्रित है कि यह तय कर पाना मुश्किल हो जाता है कि सहवास की ये अकल्पनीय मुद्राएं कामोत्तेजना भड़का रही हैं या फिर उसे शांत कर रही हैं।
सहवास के चौरासी आसनों के दृश्य दीवारों पर दिखते हैं। इसके अलावा श्रृंगाररत नायिकाओं के सौंदर्य का वर्णन- चित्रण तो अच्छे-अच्छे लोग नहीं कर पाते क्योंकि वे इन्हें देखते भर हैं, समझने की कोशिश नहीं करते। वैसे भी सैक्स में जो समझने लायक जिज्ञासाएं होती हैं वे इन्हें देखनेभर से दूर हो जाती हैं।
यह बात जरूर हर किसी के मन में आती है कि ऐसा आखिर क्यों किया गया होगा? भारत धर्मप्रधान देश है जिसकी संस्कृति में सैक्स और धार्मिक आस्थाएं ऐसी समानांतर रेखाएं हैं जो कहीं जाकर नहीं मिलतीं लेकिन खजुराहो में मिलती हैं तो इसकी कोई वजह भी होनी चाहिए।
9वीं से लेकर 11वीं सदी तक चंदेल शासकों द्वारा बनवाए गए ये मंदिर दरअसल एक खास मकसद से बनवाए गए थे। एक किस्सा यह प्रचलित है कि एक वक्त में बौद्ध और जैन धर्मों के बढ़ते प्रभाव के चलते यहां के युवा ब्रह्मचारी और संन्यासी बनने लगे थे, जिनका ध्यान और मन दुनियादारी में लगाने के लिए चंदेल शासकों ने इस तरह की मैथुनरत मूर्तियां बनवाईं।
एक किस्सा यह भी प्रचलित है कि चंदेल वंश का संस्थापक चंद्रवर्धन अवैध संतान था जिससे उसे काफी आलोचना व उपेक्षा मिलती रहती थी। सैक्स कोई गलत काम नहीं है, यह सलाह उसे अपनी मां से मिली थी। लिहाजा, इसका महत्व बताने के लिए उसने ये मूर्तियां बनवाईं। यह सिलसिला चंदेल वंश के अस्तित्व तक कायम रहा और एक जिद या जुनून में उन्होंने हजारों कारीगर बाहर से बुलवाए और विभिन्न शैलियों में मंदिर बनवाए। वास्तु और स्थापत्य के लिहाज से पुरातत्ववेत्ता आज भी इनकी मिसाल देते हैं।
विदेशी पर्यटक जितनी दिलचस्पी इन वर्जनारहित चित्रों में लेते हैं, देशी पर्यटक उतना ही इनसे हिचकते हैं। वे मंदिर के भीतर जाकर पूजा-पाठ तो करते हैं पर दीवारों को घंटों निहारते नहीं बल्कि चोर निगाहों से देखते हैं मानो वहां सांप-बिच्छू लटक रहे हों। खजुराहो में देशी पर्यटकों के कम जाने की एक वजह यह भी है कि ये चित्र परिवार के साथ नहीं देखे जा सकते हालांकि अब बड़ी तादाद में नवविवाहित यहां आने लगे हैं।
ऐसा भी नहीं है कि खजुराहो में सिवा मंदिरों और मूर्तियों के वक्त गुजारने को कुछ और न हो। सूरज ढलने के बाद मंदिर बंद हो जाते हैं तो पर्यटकों की चहल-पहल सड़कों पर नजर आती है। यहां हर तरह का अंतर्राष्ट्रीय खाना होटलों में मिलता है। यहां स्थित शिल्प ग्राम में कोई न कोई सांस्कृतिक आयोजन होता रहता है और लाइट एवं साउंड शो होते हैं।
खजुराहो में वक्त गुजारने का अपना एक अलग मजा है। घूमने के लिए यहां साइकिल और मोटरसाइकिल किराए पर मिलती हैं। रात में सड़कों पर बैडमिंटन खेलते पर्यटकों को देख लगता है कि कैसे बुंदेलखंडी अनौपचारिकता और सहजता पर्यटकों को अपने रंग में रंग लेती है। उन्मुक्त घूमते विदेशी पर्यटकों, खासतौर से युवतियों को देख स्थानीय लोगों को हो न हो पर दूसरे पर्यटकों को जरूरत हैरत होती है।
गर्मी के दिनों में यहां पारा 48.2 डिग्री तक पहुंच जाता है तो जाड़ों में 4 डिग्री तक उतर भी जाता है लेकिन मौसम का एहसास यहां नहीं होता। वजह, जाहिर है ये मूर्तियां हैं जो दुनिया भर के लोगों को खजुराहो खींच लाती है।
मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड इलाके के जिले छतरपुर का कस्बा खजुराहो वाकई अद्भुत है। खजुराहो की सुबह विदेशी सैलानियों के दर्शन से शुरू होती है। दुनिया का शायद ही कोई देश होगा जहां से यहां पर्यटक न आते हों। जानकर हैरानी होती है कि कई पर्यटक तो यहां नियमित अंतराल से आते हैं और सालोंसाल यहीं रहना पसंद करते हैं।
खजुराहो का इतिहास भी बड़ा दिलचस्प है जो यहां बने कई मंदिरों की दीवारों पर मैथुनरत मूर्तियों से सहज समझ आता है। इन मंदिरों की भीतरी और बाहरी दीवारों पर वात्स्यायन का कामसूत्र कुछ इस तरह चित्रित है कि यह तय कर पाना मुश्किल हो जाता है कि सहवास की ये अकल्पनीय मुद्राएं कामोत्तेजना भड़का रही हैं या फिर उसे शांत कर रही हैं।
सहवास के चौरासी आसनों के दृश्य दीवारों पर दिखते हैं। इसके अलावा श्रृंगाररत नायिकाओं के सौंदर्य का वर्णन- चित्रण तो अच्छे-अच्छे लोग नहीं कर पाते क्योंकि वे इन्हें देखते भर हैं, समझने की कोशिश नहीं करते। वैसे भी सैक्स में जो समझने लायक जिज्ञासाएं होती हैं वे इन्हें देखनेभर से दूर हो जाती हैं।
यह बात जरूर हर किसी के मन में आती है कि ऐसा आखिर क्यों किया गया होगा? भारत धर्मप्रधान देश है जिसकी संस्कृति में सैक्स और धार्मिक आस्थाएं ऐसी समानांतर रेखाएं हैं जो कहीं जाकर नहीं मिलतीं लेकिन खजुराहो में मिलती हैं तो इसकी कोई वजह भी होनी चाहिए।
9वीं से लेकर 11वीं सदी तक चंदेल शासकों द्वारा बनवाए गए ये मंदिर दरअसल एक खास मकसद से बनवाए गए थे। एक किस्सा यह प्रचलित है कि एक वक्त में बौद्ध और जैन धर्मों के बढ़ते प्रभाव के चलते यहां के युवा ब्रह्मचारी और संन्यासी बनने लगे थे, जिनका ध्यान और मन दुनियादारी में लगाने के लिए चंदेल शासकों ने इस तरह की मैथुनरत मूर्तियां बनवाईं।
एक किस्सा यह भी प्रचलित है कि चंदेल वंश का संस्थापक चंद्रवर्धन अवैध संतान था जिससे उसे काफी आलोचना व उपेक्षा मिलती रहती थी। सैक्स कोई गलत काम नहीं है, यह सलाह उसे अपनी मां से मिली थी। लिहाजा, इसका महत्व बताने के लिए उसने ये मूर्तियां बनवाईं। यह सिलसिला चंदेल वंश के अस्तित्व तक कायम रहा और एक जिद या जुनून में उन्होंने हजारों कारीगर बाहर से बुलवाए और विभिन्न शैलियों में मंदिर बनवाए। वास्तु और स्थापत्य के लिहाज से पुरातत्ववेत्ता आज भी इनकी मिसाल देते हैं।
विदेशी पर्यटक जितनी दिलचस्पी इन वर्जनारहित चित्रों में लेते हैं, देशी पर्यटक उतना ही इनसे हिचकते हैं। वे मंदिर के भीतर जाकर पूजा-पाठ तो करते हैं पर दीवारों को घंटों निहारते नहीं बल्कि चोर निगाहों से देखते हैं मानो वहां सांप-बिच्छू लटक रहे हों। खजुराहो में देशी पर्यटकों के कम जाने की एक वजह यह भी है कि ये चित्र परिवार के साथ नहीं देखे जा सकते हालांकि अब बड़ी तादाद में नवविवाहित यहां आने लगे हैं।
ऐसा भी नहीं है कि खजुराहो में सिवा मंदिरों और मूर्तियों के वक्त गुजारने को कुछ और न हो। सूरज ढलने के बाद मंदिर बंद हो जाते हैं तो पर्यटकों की चहल-पहल सड़कों पर नजर आती है। यहां हर तरह का अंतर्राष्ट्रीय खाना होटलों में मिलता है। यहां स्थित शिल्प ग्राम में कोई न कोई सांस्कृतिक आयोजन होता रहता है और लाइट एवं साउंड शो होते हैं।
खजुराहो में वक्त गुजारने का अपना एक अलग मजा है। घूमने के लिए यहां साइकिल और मोटरसाइकिल किराए पर मिलती हैं। रात में सड़कों पर बैडमिंटन खेलते पर्यटकों को देख लगता है कि कैसे बुंदेलखंडी अनौपचारिकता और सहजता पर्यटकों को अपने रंग में रंग लेती है। उन्मुक्त घूमते विदेशी पर्यटकों, खासतौर से युवतियों को देख स्थानीय लोगों को हो न हो पर दूसरे पर्यटकों को जरूरत हैरत होती है।
गर्मी के दिनों में यहां पारा 48.2 डिग्री तक पहुंच जाता है तो जाड़ों में 4 डिग्री तक उतर भी जाता है लेकिन मौसम का एहसास यहां नहीं होता। वजह, जाहिर है ये मूर्तियां हैं जो दुनिया भर के लोगों को खजुराहो खींच लाती है।
