चन्द्र प्रभा सूद
समलैंगिक शब्द का अर्थ है एक ही लिंग। वे लड़के हो सकते हैं या फिर लड़कियॉं। समलैंगिकों के विवाह की चर्चा कुछ समय पूर्व सोशल मीडिया, टी वी व समाचारपत्रों में बहुत जोर-शोर से हुई थी। कुछ पाठकों का आग्रह था कि मैं इस विषय पर अपने विचार लिखूँ। इस विषय पर मेरे विचार प्रस्तुत हैं।
शास्त्रों के अनुसार शादी एक नवयुवक एवं एक नवययुवती में होती है। ऐसा ही हमारे शास्त्रों में विधान है। कभी-कभी बेमेल विवाह भी होते हैं जहाँ पति और पत्नी की आयु में अन्तर होता है। इसके अतिरिक्त बाल विवाह और विधवा विवाह भी होते हैं, यानी हर स्थिति में दो अलग-अलग लिंग के लोगों में ही वैवाहिक सम्बन्ध बनाते हैं। समाज में यही विवाह मान्य होता है। भारत में ही नहीं, पूरे विश्व में ऐसे ही सम्बन्ध होते हैं। मनुष्यों में ही नहीं, पूरी सृष्टि यानी पशु-पक्षियों तक में भी इसी नियम का पालन किया जाता है।
आजकल एक ही लिंग के दो लोग विवाह के बन्धन में बन्धना चाहते हैं। इसका सीधा-सा यह अर्थ है कि युवक युवक से और युवती युवती से विवाह करके एक साथ रहना चाहते हैं। इस विवाह को समलैंगिक विवाह कहते हैं।
पूरे विश्व में इस समस्या पर आज गम्भीरता से इस विषय पर विचार किया जा रहा है। यूके में समलैंगिक लोगों की शादी को कानूनी मान्यता है परन्तु भारत सहित विश्व के कई देशों में ऐसी शादियाँ प्रतिबन्धित हैं। अभी कुछ दिन पूर्व आयरलैंड जनमत से समलैंगिकों के विवाह की अनुमति देने वाला पहला देश बन गया है।
समलैंगिक विवाह के इच्छुक एक युवक की माँ ने उसकी शादी के लिए किसी दूल्हे (लड़के ) के लिए मुम्बई के एक समाचार पत्र में 19 मई 2015 को विज्ञापन दिया था। तब 20 मई 2015 सायं 6.15 आजतक न्यूज चैनल पर उन दोनों माँ-बेटे से बातचीत की गई। उसके बाद 28 मई 2015 के हिन्दी हिन्दुतान में समाचार प्रकाशित हुआ कि इस शादी के विज्ञापन पर युवक की माँ को 150 से अधिक जवाब मिले। इनमें से कुछ लोगों ने नफरत दिखाई और कुछ ने प्रोत्साहित किया। कुछ लोगों ने अभद्र भाषा में मेल करके शादी जैसी संस्था को खत्म करने के लिए उसकी माँ पर आरोप भी लगाया था।
20 मई 2015 के टाइम्स आफ इण्डिया पत्र ने समाचार प्रकाशित किया था कि बंगलौर की दो लड़कियाँ हैदराबाद में मिलीं और कुछ समय एकसाथ रहीं और फिर यू एस ए में शादी करने के लिए गई थीं। कुछ वर्ष पूर्व भी दो लड़कियों ने ऐसा ही प्रयत्न किया था। टी वी ने उनसे इन्टरव्यू भी लिया था परन्तु कुछ समय बाद ही उनका ब्रेकअप हो गया। जो पहले कसमें खाया करती थीं, वे इसलिए अलग हो गई थीं कि वे अब उनमें से एक किसी दूसरे की ओर आकृष्ट हो गई थी।
वास्तविकता यही है कि इन सम्बन्धों में भी कुछ दिन बाद आकर्षण कम होने लगता है। फिर वे एक-दूसरे को छोड़कर किसी अन्य की ओर आकर्षित हो जाते हैं। यहाँ सामाजिक बन्धन तो है नहीं कि सात जन्मों का बन्धन है। कभी घर-परिवार तो कभी समाज का भय या फिर बच्चों का ध्यान रिश्तों की टूटन को बचा लेता हैं। इस
अप्राकृतिक सम्बन्ध में ऐसा कोई बन्धन नहीं होता। एक-दूसरे से ईर्ष्या, घृणा आदि भाव शीघ्र ही पनपने लगते हैं। यह मानवीय स्वभाव है। यहाँ भी मरने-मारने वाली स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
कहने का तात्पर्य है कि प्राकृतिक यौन सम्बन्धों को छोड़कर अप्राकृतिक सम्बन्ध किसी भी तरह से समाज में मान्य नहीं होते। समाज ऐसे पुरुषों और महिलाओं के प्रति उदासीन रहता है। कुछ समय पूर्व तक ये लोग स्वयं के विषय में किसी से चर्चा भी नहीं करते थे। समाज भी इन लोगों को हेय दृष्टि से देखता था। इसमें कोई दो राय नहीं कि ईश्वर ने इन लोगों को ऐसा ही बनाया है। इनसे घृणा करना उचित नहीं हैं। ये समाज का अभिन्न अंग हैं। इनके साथ सदा ही सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करना चाहिए पर हमारी भारतीय संस्कृति ऐसे अप्राकृतिक सम्बन्धों को कभी मान्यता नहीं देती।
