भोजन के अनेक प्रकार होते हैं जिन्हें शाकाहार, मांसाहार, चिकनाईयुक्त, चिकनाई रहित, हल्का या भारी भोजन के रूप में हम जानते हैं। भोजन को ग्रहण करने के विभिन्न तरीके होते हैं। कोई इसे खा-खाकर इस कदर मोटा हो जाता है कि मोटापा उसके लिए एक बीमारी हो जाती है और कोई भोजन की कमी की वजह से कुपोषण का शिकार होकर खटिया पकड़ लेता है।
कुछ लोग चौबीसों घंटे मुंह चलाते रहने के बाद भी लकड़ी की तरह सूखते चले जाते हैं तो कुछ लोग अधिक चिकनाई युक्त भोजन करके हृदय रोग को दावत देते हैं। कुछ लोग जल्दी-जल्दी में बिना चबाये ही भोजन निगल लेते हैं। फलस्वरूप वे बदहजमी के शिकार बनकर रोगी बन जाते हैं।
आज के समय में अधिकांश लोगों को सिर्फ पेट भरना आता है, सलीके से भोजन करना आता ही नहीं है। अगर भोजन संतुलित हो और उसे सही मात्रा और सही तरीके से खाया जाये तो वह शरीर के लिए अमृत का काम करता है और सही ऊर्जा को प्रदान करता है और उसे ही अगर पेट में ठूंस-ठूंसकर खाया जाये और बिना तरीके के खाया जाये तो वह शरीर में पहुँचकर अनेक प्रकार की व्याधियों को उत्पन्न कर देता है।
यहाँ पर सलीके से खाने के कुछ आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण टिप्स दिये जा रहे हैं जिसे अपनाकर शरीर को निरोग, सुन्दर एवं चुस्त-दुरुस्त बनाया जा सकता है, साथ ही भोजन का भरपूर आनन्द भी उठाया जा सकता है-
भोजन हमेशा निश्चित समय पर ही करना चाहिए। भोजन करने से पूर्व एक-दो घूंट पानी तथा भोजन करने के लगभग दो घंटे बाद दो-तीन गिलास पानी पीना अच्छा माना जाता है।
भोजन हमेशा धीरे-धीरे एवं अच्छी तरह चबा-चबाकर करना चाहिए ताकि दाँतों का काम आंतों को न करना पड़े। बिना चबाये भोजन करने से पाचन क्रिया खराब हो जाती है तथा पेट दर्द, दस्त आदि की बीमारी हो सकती है।
छोटे-छोटे कौर (निवाले) बनाकर ही खाना खाना चाहिए। बेहतर तो यह होता है कि प्रत्येक कौर को कम से कम बत्तीस बार चबाया जाए।
भोजन हमेशा साफ बर्तनों में रखकर ही करना चाहिए। पीतल या तांबे के बर्तन में रखकर भोजन करना हानिप्रद होता है।
पालथी मारकर, जमीन पर बैठकर भोजन करना, भोजन करने की प्राचीन प्रणाली है। इससे भोजन के कणों से पेट के अंदर दबाव नहीं पड़ता और भोजन शीघ्र पचता है।
भोजन करने से पूर्व तथा बाद में अच्छी तरह हाथ-मुँह को धोना तथा पेशाब करना लाभदायक होता है।
बार-बार भोजन करते रहने से बदहजमी समेत अनेक बीमारियां हो सकती हैं। अतः मुख्य भोजन दिन में दो बार ही करना चाहिए।
भूख से कम खाना स्वास्थ्य के लिए हितकर होता है, अतः हमेशा भूख से एक रोटी कम खानी चाहिए। खाना हमेशा सादा एवं शीघ्र पचने वाला ही खाना चाहिए।
भोजन हमेशा ताजा ही करना चाहिए। बासी भोजन स्वास्थ्य के साथ-साथ बुद्धि को भी कमजोर बना डालता है।
खाना खाने के बाद कुछ देर टहलना अवश्य चाहिए। बिस्तर पर जाने के बाद सात श्वांस बायें करवट, चौदह श्वास दायें करवट तथा इक्कीस श्वांस चित्त होकर लेने से पाचन क्रिया बढ़ती है।
खाना खाने और सोने के बीच कम से कम दो घंटे का अन्तर अवश्य रखना चाहिए। भोजन करके तुरंत बिस्तर पर जाकर लेटना हानिकारक होता है।
बासी खाने को दुबारा गर्म करके खाने से उसकी पौष्टिकता नष्ट हो जाती है तथा शरीर अस्वस्थ हो सकता है।
भोजन करते समय प्रसन्नचित्त रहना चाहिए। क्रोध करने से पाचन शक्ति नष्ट हो जाती है और भोजन के तत्व शरीर में नहीं लग पाते।
भोजन करने के बाद कुल्ला करते समय आंखांे को धो लेने से नेत्रा-ज्योति बढ़ती है। भोजन के बाद मूत्रा-त्याग करने से पथरी नहीं होती।
भोजन के साथ ज्यादा तले, भुने, खट्टे या तेज मिर्च-मसाले युक्त खाद्य पदार्थों का प्रयोग हानिकारक होता है।
भोजन के साथ सलाद, फल, प्याज, हरी मिर्च, धनिया की चटनी आदि का प्रयोग स्वाद के साथ ही पाचन-शक्ति को बढ़ाने वाला होता है।
