न्यायालय ने परियोजनाओं को पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी देने से रोकने के फैसले को वापस लिया

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नयी दिल्ली, 18 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को 2:1 के बहुमत से अपने 16 मई के उस फैसले को वापस ले लिया, जिसमें केंद्र को पर्यावरणीय मानदंडों का उल्लंघन करने वाली परियोजनाओं को पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी (रेट्रोस्पेक्टिव एनवायरनमेंटल क्लियरेन्स) देने से रोक दिया गया था।

भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बी आर गवई, न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने वनशक्ति फैसले के खिलाफ दायर लगभग 40 पुनर्विचार और संशोधन याचिकाओं पर तीन अलग-अलग फैसले सुनाए।

न्यायमूर्ति ए एस ओका (अब सेवानिवृत्त) और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने 16 मई को अपने फैसले में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और संबंधित प्राधिकारियों को उन परियोजनाओं को पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी देने से रोक दिया था, जो पर्यावरणीय मानदंडों का उल्लंघन करती पाई गई थीं।

सीजेआई गवई और न्यायमूर्ति चंद्रन ने 16 मई के फैसले को वापस ले लिया और मामले पर नए सिरे से पुनर्विचार के लिए उसे उचित पीठ के समक्ष भेज दिया।

सीजेआई ने कहा, ‘‘अगर मंज़ूरी की समीक्षा नहीं की गई तो 20,000 करोड़ रुपये की सार्वजनिक परियोजनाओं को ध्वस्त करना पड़ेगा। अपनी व्यवस्था में मैंने फैसला वापस लेने की अनुमति दी है। मेरे फैसले की मेरे भाई न्यायमूर्ति भुइयां ने आलोचना की है।’’

न्यायमूर्ति भुइयां ने इस पर कड़ी असहमति जताते हुए कहा कि पूर्वव्यापी मंजूरी का पर्यावरण कानून में कोई प्रावधान नहीं है।

उन्होंने कहा कि ‘‘पर्यावरण कानून में घटना के बाद दी जाने वाली मंजूरी जैसी कोई अवधारणा नहीं है’’ और उन्होंने इस विचार को ‘‘एक घोर अपवाद, एक अभिशाप, पर्यावरणीय न्यायशास्त्र के लिए हानिकारक’’ बताया।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अदालत ने ‘‘पाया है कि 2013 की अधिसूचना के साथ-साथ 2021 के कार्यालय ज्ञापन में योजना भारी जुर्माना लगाने पर पर्यावरणीय मंज़ूरी देने की अनुमति देने की थी।’’

सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ ने नौ अक्टूबर को कपिल सिब्बल, मुकुल रोहतगी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। ये अधिवक्ता विभिन्न औद्योगिक और अवसंरचना संस्थाओं के साथ-साथ सरकारी निकायों की ओर से पेश हुए थे और विवादित फैसले की समीक्षा या संशोधन के पक्ष में थे।

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