वरिष्ठ नागरिकों की उपेक्षा पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने जताई चिंता
Focus News 18 November 2025 0
नयी दिल्ली, 18 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि देश में पीढ़ियों के बीच कमजोर होते संबंध और बुजुर्गों की देखभाल में कमी सामाजिक ताने-बाने के लिए गंभीर खतरा है। उन्होंने चेतावनी दी कि भारत के सामने “उस पुरानी दुनिया को खोने का जोखिम” है जिसने समाज को मानवीय बनाए रखा।
उन्होंने सोमवार को कहा कि बुजुर्गों के साथ डिजिटल धोखाधड़ी, परिजनों द्वारा छोड़े जाने और लंबे मुकदमों में फंसे होने के मामलों में बढ़ोतरी चिंताजनक है और कानून को “गरिमा को पुनर्स्थापित करने वाले ढांचे” के रूप में काम करना चाहिए।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम (एमडब्ल्यूपीएससी)’ पर आयोजित एक विशेष सत्र को संबोधित कर रहे थे, जिसमें सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार तथा सामाजिक न्याय सचिव अमित यादव भी उपस्थित थे।
कानून के छात्रों, अधिकारियों, विधिक सेवा प्राधिकरणों और सिविल सोसायटी के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि देश को अपने बढ़ते वृद्ध जनसंख्या वर्ग की भावनात्मक, डिजिटल और सामाजिक चुनौतियों का मुकाबला करना होगा।
आने वाले समय में न्यायमूर्ति सूर्यकांत भारत के प्रधान न्यायाधीश का पद संभालेंगे। उन्होंने कहा, “समृद्धि ने नजदीकियों की जगह ले ली है। प्रवासन ने काम के नए मार्ग खोले हैं, लेकिन पीढ़ियों के बीच के दरवाजे बंद कर दिए हैं।” उन्होंने इस बदलाव को “सभ्यता को झटका” बताया।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि कभी भारत में वृद्धावस्था को पतन नहीं, बल्कि उन्नयन माना जाता था और बुजुर्ग सदस्य परिवार व संस्कृति में “कथानक की अंतरात्मा” की भूमिका निभाते थे, लेकिन आधुनिकता ने इन संरचनाओं को कमजोर किया है। उन्होंने कहा, “हमने नयी दुनिया पाई है, लेकिन उस पुरानी दुनिया को खोने का खतरा भी है जिसने हमें इंसान बनाए रखा।”
उन्होंने एक हालिया मामले का उल्लेख किया जिसमें एक विधवा लगभग 50 वर्षों तक भरण-पोषण के लिए लड़ती रही। उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 142 के तहत उसकी संपत्ति बहाल की। उन्होंने कहा, “न्याय केवल तकनीकी रूप से सही होने से पूरा नहीं होता। गरिमा का अधिकार उम्र के साथ समाप्त नहीं होता।”
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने एनएएलएसए, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों, पुलिस, समाज कल्याण अधिकारियों और सामाजिक न्याय मंत्रालय के बीच बेहतर समन्वय का आह्वान किया ताकि मामलों के मुकदमे में बदलने से पहले ही हस्तक्षेप किया जा सके। लेकिन उन्होंने कहा कि कोई संस्था लोगों का स्थान नहीं ले सकती।
उन्होंने कहा, “पुराने और नए के बीच पुल युवाओं से बनता है।” उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि वे डिजिटल लेनदेन में मदद करें, साथ दें और सुनिश्चित करें कि कोई भी बुजुर्ग “कतार में अकेला न खड़ा रहे।”
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने कहा कि भारतीय संस्कृति की जड़ें बुजुर्गों के प्रति सम्मान में हैं, जो समाज की इमारत की “नींव” हैं, लेकिन शहरीकरण और बदलती जीवनशैली ने पारिवारिक संरचनाओं को बदल दिया है और कई माता-पिता को अकेलेपन की तरफ धकेल दिया है।
उन्होंने कहा, “भारत की संस्कृति में वृद्धाश्रम की अवधारणा नहीं थी। यह एक पाश्चात्य सोच है।” उन्होंने बताया कि कई युवा नौकरी मिलने के बाद माता-पिता को पीछे छोड़ देते हैं और वे वृद्धावस्था में अकेले रह जाते हैं।
कुमार ने माउंट आबू स्थित ब्रह्माकुमारीज द्वारा संचालित एक वृद्धाश्रम के अपने हालिया दौरे का उल्लेख किया और बताया कि वहां कई उच्च शिक्षित बुजुर्ग—डॉक्टर, वकील और इंजीनियर रह रहे हैं जिनके बच्चे विदेश में हैं। उन्होंने कहा, “पैसा जरूरी है, पर पैसा सब कुछ नहीं है।”
उन्होंने उन मामलों का भी हवाला दिया जिनमें बुजुर्गों ने अपनी संपत्ति बच्चों को हस्तांतरित कर दी और बाद में उपेक्षा का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि सरकार उनके अधिकार बहाल करने के लिए तैयार है, लेकिन कई माताएं कहती हैं, ‘मेरे बेटे के खिलाफ मुकदमा मत करो।’
कुमार ने एमडब्ल्यूपीएससी अधिनियम को वरिष्ठ नागरिकों की गरिमा और आत्मनिर्भरता को संरक्षित करने वाला “ऐतिहासिक कानून” बताया और समाज से बुजुर्गों को दैनिक जीवन में शामिल करने की अपील की।
उन्होंने पूछा, “हम हर महीने पिकनिक की योजना बनाते हैं, लेकिन क्या हम कभी आसपास के किसी वृद्धाश्रम जाकर वहां के बुजुर्गों से मिलते हैं? एक स्पर्श, एक बातचीत उन्हें यह महसूस करा सकती है कि वे अकेले नहीं हैं।”
सामाजिक न्याय सचिव अमित यादव ने कहा कि भारत एक बड़े जनसांख्यिकीय परिवर्तन के दौर में है और देश में बुजुर्गों की आबादी वर्तमान 10.38 करोड़ से बढ़कर 2050 तक 34 करोड़ हो जाएगी।
उन्होंने कहा, “बुढ़ापा असुरक्षा नहीं, बल्कि गरिमा, सुरक्षा और सार्थक भागीदारी के साथ होना चाहिए।”
यादव ने डिजिटल विभाजन को एक बढ़ती चुनौती बताया, जो ऑनलाइन सेवाओं के विस्तार के साथ बुजुर्गों को धोखाधड़ी, बहिष्कार और गलत सूचना के जोखिम में डाल रही है।
उन्होंने कहा कि परिवार के युवा सदस्य चिकित्सा अपॉइंटमेंट, ऑनलाइन प्रणालियों, कल्याण योजनाओं, पेंशन और संपत्ति संबंधी निर्णयों में सहायता करके निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
