बढ़ती लागत, मशीनीकरण की कमी की वजह से कपास की खेती से दूर हो रहे हैं महाराष्ट्र के किसान

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छत्रपति संभाजीनगर, 16 नवंबर (भाषा) महाराष्ट्र में कपास की खेती पिछले चार साल में लगभग 4.59 लाख हेक्टेयर कम हो गई है क्योंकि उच्च श्रम लागत और मशीनीकरण की कमी किसानों को सोयाबीन की खेती की ओर स्थानांतरित कर रही है। एक विशेषज्ञ ने यह बात कही है।

वर्ष 2020-21 में पूरे महाराष्ट्र में 45.45 लाख हेक्टेयर में कपास की खेती की गई, जिसका उत्पादन 101.05 लाख गांठ (प्रत्येक गांठ 170 किलोग्राम) था।

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और कपास अनुसंधान केंद्र, नांदेड़ के आंकड़ों के अनुसार, 2024-25 तक यह रकबा घटकर 40.86 लाख हेक्टेयर रह गया और अनुमानित उत्पादन 87.63 लाख गांठ रहा है।

कपास अनुसंधान केंद्र के कृषि विज्ञानी डॉ. अरविंद पंडागले ने पीटीआई-भाषा को बताया कि कपास की खेती का स्थान बड़े पैमाने पर सोयाबीन ने ले लिया है।

उन्होंने कहा, ‘‘कपास की तुड़ाई हाथ से करनी पड़ती है। कपास की तुड़ाई के लिए मजदूरी 10 रुपये प्रति किलो है। बिक्री मूल्य 70 रुपये प्रति किलो से ज्यादा नहीं है। इसके अलावा, फसल पर कीटनाशकों का छिड़काव ज़रूरी है, और इसके लिए जरूरी श्रमशक्ति एक बड़ा और महंगा हिस्सा है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘कपास उगाने की लागत बढ़ रही है, यही वजह है कि महाराष्ट्र में कपास की खेती का रकबा घट रहा है।’’

पंडागले ने बताया कि एक और समस्या कपास की तुड़ाई में आने वाली कठिनाई है। ‘‘मजदूरों की कमी को दूर करने के लिए कपास की तुड़ाई को मशीनीकृत किया जाना चाहिए। लेकिन भारत में उपलब्ध मशीनें कपास के साथ-साथ पत्तियां और अन्य अवांछित सामग्री भी इकट्ठा करती हैं। देश भर के कई उद्योग अधिक कुशल कपास तुड़ाई मशीनें विकसित करने पर काम कर रहे हैं।’’

पंडागले ने बताया कि दूसरे देशों में कपास की तुड़ाई मशीनों से की जाती है, और उनके पौधे 3.5 से चार फुट से ज़्यादा ऊंचे नहीं होते।

उन्होंने कहा, ‘‘भारत में, पौधे सात फुट तक ऊंचे हो सकते हैं। हम शोध की मदद से कपास के पौधों की ऊंचाई कम करने की कोशिश कर रहे हैं। भारत में, किसान कपास के बीजों की ‘सीधी किस्म’ का इस्तेमाल करते हैं। ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में, वे संकर बीजों का इस्तेमाल करते हैं। सीधी किस्म से कपास को 2-3 बार तोड़ा जा सकता है, जो संकर बीजों से संभव नहीं है।’’

छत्रपति संभाजीनगर जिले के घोसला गांव के एक कपास किसान अबा कोल्हे ने भी ऊंची मजदूरी और अन्य समस्याओं की ओर इशारा किया।

उन्होंने कहा, ‘‘इस साल, कटाई के दौरान भारी बारिश के कारण, कपास के गोलों का वजन कम हो गया। नतीजतन, मजदूर 20 रुपये प्रति किलो देने पर भी उन्हें तोड़ने को तैयार नहीं हैं। 2021-22 को छोड़कर, हमें फसल का अच्छा दाम नहीं मिला है। इसलिए हमने 2019 की तुलना में खेती का रकबा कम कर दिया है।’’

कोल्हे ने कहा कि 2019 तक, वह अपनी पूरी 11 एकड़ जमीन पर कपास उगाते थे। उन्होंने आगे कहा, ‘‘अब मैं उस जमीन के केवल आधे हिस्से पर ही कपास उगाता हूं।’’

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इस साल देश में कपास का आयात निर्यात की तुलना में बढ़ने की संभावना है।

वर्ष 2021-22 में, भारत ने 21.13 लाख गांठ कपास का आयात किया और 42.25 लाख गांठ निर्यात किया।

कपड़ा मंत्रालय के अंतर्गत कपास उत्पादन एवं उपभोग समिति (सीओसीपीसी) द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 2024-25 के लिए अनुमानित आयात 25 लाख गांठ है, जबकि निर्यात घटकर 18 लाख गांठ रह जाने की संभावना है।

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