हर कार्य अपने समय पर

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हर कार्य अपने निर्धारित समय पर ही पूर्ण होता है। अपने समय पर हर ऋतु आती है। सूर्य और चन्द्रमा का भी अपने निश्चित समय पर उदय और अस्त होना होता है। सम्पूर्ण प्रकृति सृष्टि के आदिकाल से ही अपने नियम से कार्य करती है। हम कितना भी जोर लगा लें, कितनी ही मन्नतें मान लें परन्तु इस सार्वभौमिक सत्य को कदापि नहीं बदल सकते, झुठला नहीं सकते। यह सम्पूर्ण सृष्टि भी एक ही दिन में नहीं बन गई थी। उसका भी विकास क्रमशः हुआ था।


हम अपने इस भौतिक जीवन में देखते हैं कि किसान जमीन खोदकर तैयार करता है और फिर उस धरती में बीज डालता है। कुछ समय बाद बीज अंकुरित होता है और तब वह एक नन्हें पौधे का रूप लेता है। तत्पश्चात समय बीतते वह नन्हा पौधा एक विशाल वृक्ष बन जाता है। बीज से बना यह विशाल वृक्ष किसी किसान के दिन-रात के अथक परिश्रम, देखरेख और खाद-पानी देने का परिणाम होता है। ये वृक्ष अपने समय पर ही फल देते हैं। इसी भाव को नीलकण्ठ दीक्षित जी द्वारा रचित ‘सभारञ्जनशतकम्’ में इस प्रकार कहा है-
दोहदैरालबालैश्च कियद् वृक्षानुपास्महे।
ते तु कालं प्रतीयन्ते फलपुष्पसमागमे॥
अर्थात् वृक्ष का सिंचन करना, मेड़ बनाना आदि कितना भी प्रयास करें, वृक्ष समय आने पर ही फल देते हैं।


बच्चा पैदा होते ही युवा नहीं हो जाता। वर्षों माता-पिता उसकी देखरेख में दिन-रात एक करते हैं, उसे पढ़ा-लिखाकर योग्य बनाते हैं। इस प्रक्रिया से गुजरता हुआ एक बच्चा बीस-पच्चीस साल में जाकर युवा बनता है। इसी प्रकार जब बच्चा नर्सरी कक्षा में स्कूल में प्रवेश करता है तो एक ही वर्ष में बारहवीं कक्षा पास नहीं करता बल्कि चौदह साल तक अथक परिश्रम करने के बाद ही स्कूल पास करता है और फिर कालेज में प्रवेश पाता है। अपनी शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात वह नौकरी के लिए यत्न करता है। नौकरी पाने के उपरान्त ही वह अपने जीवनसाथी के साथ मिलकर अपनी गृहस्थी को सफलतापूर्वक चलाता है।


यह सर्वथा सत्य है कि जो एक रात बीत जाती है, वह कभी वापिस नहीं आती। इसी प्रकार उचित समय पर यदि कार्य सम्पन्न न किया जाए तो वह फलदायक नहीं हो पाता। महाकवि कालिदास ने ‘रघुवंशम्’ महाकाव्य में इस विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा है-
‘काले खलु समारब्धा: फलं बध्नन्ति नीतय:।’


अर्थात् समय पर यदि अपनी नीतियों को लागू किया जाय तो वे फलदायी होती हैं।
जो मनुष्य समय का महत्त्व समझते हुए उसके अनुसार अपनी योजनाएँ बनाते हैं और सही समय पर उनको क्रियान्वित करते हैं, वे अपने जीवन में सदा ही सफलता का मुख देखते हैं। असफलता उनके पास तक फटकती नहीं है। समय कभी भी किसी का पक्षपात नहीं करता। सबके साथ एकसमान व्यवहार करता है। उसे केवल वही लोग पसन्द आते हैं जो समय का सम्मान करते हैं। समय की महत्ता न समझकर जो उसे अपने आलस्य के कारण बर्बाद करते हैं, उनसे वह नाराज होने लगता है।
समय मानव के जीवन में बड़ी ही उठा-पटक करता है। वह पलभर में राजा को रंक बना देता है और रंक को राजा बना देता है। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि समय शक्तिशाली को निर्बल व निर्बल को पलक झपकते ही शक्तिशाली बना देता है। यह बड़े-बड़े साम्राज्यों के धराशाही होने का सबसे बड़ा गवाह है। कितनी ही सभ्यताओं को इसने नष्ट होते हुए देखा है। इसने बहुत लोगों को मिटते हुए भी देखा है। फिर हम मनुष्य क्या चीज है इसके सामने?


इस सत्य से हम मुँह नहीं मोड़ सकते कि समय न हमारा मित्र है और न ही शत्रु है। उसे अपना मित्र बनाना पड़ता है। वह कभी भी हमारी प्रतीक्षा में पलक पाँवड़े बिछाकर नहीं बैठता है। वह हमारा हाथ पकड़कर नहीं चलता बल्कि हमें ही उसके साथ कदम मिलाकर चलना होता है। वह तो अपनी अबाध गति से, दिन-रात बिना विश्राम किए चलता ही जा रहा है। यह हमारी समझदारी है कि हम उसके सहारे से जीवन में वह सब कुछ प्राप्त कर सकें जिसकी हम कामना करते हैं।


यदि समय रहते मनुष्य समय का मूल्य पहचान ले तो सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ने से उसे कोई नहीं रोक सकता। अन्यथा उसे जीवन में हर कदम पर असफलता का ही स्वाद चखना पड़ता है। प्रतिदिन इस संसार में अनेक जीवों का जन्म होता है और अनेक लोग इस दुनिया को अलविदा कह देते हैं। यदि हम में इतनी सामर्थ्य है कि हम समय की रेत पर अपने निशान छोड़कर इस दुनिया से विदा ले सकते हैं तभी हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उदाहरण बन सकते हैं अन्यथा तो कोई जान ही नहीं पाएगा कि हम इस संसार का एक हिस्सा थे।

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