
दो प्रकार के व्यक्ति होते हैं, जिन्हें अन्तर्मुखी एवं बहिर्मुखी के रूपों में जाना जाता है। अन्तर्मुखी व्यक्ति अपनी किसी भी इच्छा या अभिव्यक्ति को दूसरों को न बताकर अपने मन में ही रखकर भीतर ही भीतर कुढ़ते रहते हैं। बहिर्मुखी व्यक्ति अपने मन की बात को अपने मित्रों में बांटकर हमेशा प्रसन्न रहते हैं। यूं तो अन्तर्मुखी और बहिर्मुखी व्यक्ति पुरूषों में भी होते हैं किन्तु महिलाएं इन प्रवृत्तियों में अधिक पाई जाती हैं।
अन्तर्मुखी महिलाएं तनावग्रस्त रहती हैं। अन्तर्मुखी महिलाओं में मोटापा, कमजोरी, ल्यूकोरिया, मासिक की अनियमितता, चिड़चिड़ापन, क्रोध, ईर्ष्या आदि अत्यधिक पायी जाती है। अन्दर ही अन्दर घुटते रहने के कारण उनमें टी.बी., दमा जैसे श्वास रोग भी पनपने लगते हैं। उनकी अधिक सहेलियां भी नहीं बनती, इस कारण वे एकाकीपन का भी अनुभव करती रहती हैं।
अन्तर्मुखी महिलाएं हर बात को गुप्त रखना पसन्द करती हैं। अपने मान-सम्मान, अपमान, दोस्ती, शत्राुता, स्वास्थ्य से संबंधित बातें, पसन्द-नापसन्द जैसी अनेक बातों को अपने तक ही सीमित रखती हैं। किसी के द्वारा अपमानित होने पर भी वे अपमान का घूंट पीकर अन्दर ही अन्दर जलती रहती हैं किन्तु किसी से कुछ कहती नहीं हैं जिसके कारण उन्हें तनाव सहित अनेकानेक बीमारियों का भी सामना करना पड़ता है।
दूसरी ओर बहिर्मुखी महिला किसी भी बात को छिपाती नहीं है बल्कि वह अपने परिवारजनों या सहेलियों के बीच अपने मन की बात को रखकर अपना मन हल्का कर लेती है। वे किसी भी बात को बेधड़क और बेहिचक कह देती है। अपमान का घूंट पीकर वह मन ही मन घुटती नहीं रहती बल्कि परिवारजनों या सहेली के मध्य अपनी बातों को रखकर उसका समाधान खोज निकालती हैं।
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक डा॰ स्मिथ राउत के अनुसार चंचलता के कारण शरीर में कुछ विशेष प्रकार के हारमोनों का स्राव होता रहता है जिससे शारीरिक एवं मानसिक विकास में सहायता मिलती है। चंचल बालक या बालिका का उचित मानसिक एवं शारीरिक विकास होता है। साथ ही उनमें सोचने-विचारने की क्षमता भी बढ़ती है। बहिर्मुखी बच्चों में मेधाशक्ति बढ़ती है, साथ ही उनकी स्मरण शक्ति में भी विकास होता है। वृद्धावस्था में इन्हें ’अल्जाइमर्स‘ और स्मरणहीनता की बीमारी जैसी व्याधि का भी सामना नहीं करना पड़ता।
महिला रोग विशेषज्ञ के अनुसार बहिर्मुखी महिलाओं को ल्यूकोरिया, रक्तप्रदर, मासिककाल के कष्टों, गर्भधारण संबंधी जटिलताओं, प्रसव संबंधी जटिलताओं आदि का सामना प्रायः कम ही करना होता है जबकि अन्तर्मुखी महिलाओं को उक्त व्याधियों का सामना अधिकतर करना होता है। अन्तर्मुखी महिलाओं को दांपत्य सुख की कमी का भी सामना करना पड़ता है।
बाल्यकाल की अन्तर्मुखी प्रवृत्ति के कारण लड़की का शारीरिक विकास उचितानुसार नहीं हो पाता। स्तनों का अविकसित रह जाना, चेहरे की चमक का नष्ट हो जाना, हमेशा सुस्ती बने रहना तथा सेक्स के प्रति अरूचि का भाव उत्पन होने लगता है जबकि बहिर्मुखी बालिका का अवस्थानुसार शरीर छरहरा, चेहरे पर चमक, स्तनों में उचित उभार, चुस्ती आदि बनी रहती हैं। वह प्रेमभाव को समझती है तथा तन एवं मन से हमेशा अपने जीवन साथी को खुश रखने का प्रयतन करती है।
बाल्यावस्था में बच्चे की अपेक्षा बच्चियों के व्यवहार पर माता-पिता द्वारा अधिक अंकुश लगाया जाता है। बात-बात पर डांटना या हिदायत देते रहने से बच्ची अन्तर्मुखी होने लगती है और आजीवन कष्टों को झेलती है। जिन बच्चियों पर बेवजह अंकुश नहीं लगाया जाता, वे चंचलमुखी होती हैं। मित्रों के साथ घूमना, मस्ती करना, पढ़ाई करना आदि में बाधा पहुंचाने से बच्ची अन्तर्मुखी बन जाती है तथा घर में भी वह सबसे कटी-कटी रहती हैं अतएव बच्चियों पर अधिक अंकुश लगाना हानिकारक हो सकता है।
अन्तर्मुखी महिलाएं तनावग्रस्त रहती हैं। अन्तर्मुखी महिलाओं में मोटापा, कमजोरी, ल्यूकोरिया, मासिक की अनियमितता, चिड़चिड़ापन, क्रोध, ईर्ष्या आदि अत्यधिक पायी जाती है। अन्दर ही अन्दर घुटते रहने के कारण उनमें टी.बी., दमा जैसे श्वास रोग भी पनपने लगते हैं। उनकी अधिक सहेलियां भी नहीं बनती, इस कारण वे एकाकीपन का भी अनुभव करती रहती हैं।
अन्तर्मुखी महिलाएं हर बात को गुप्त रखना पसन्द करती हैं। अपने मान-सम्मान, अपमान, दोस्ती, शत्राुता, स्वास्थ्य से संबंधित बातें, पसन्द-नापसन्द जैसी अनेक बातों को अपने तक ही सीमित रखती हैं। किसी के द्वारा अपमानित होने पर भी वे अपमान का घूंट पीकर अन्दर ही अन्दर जलती रहती हैं किन्तु किसी से कुछ कहती नहीं हैं जिसके कारण उन्हें तनाव सहित अनेकानेक बीमारियों का भी सामना करना पड़ता है।
दूसरी ओर बहिर्मुखी महिला किसी भी बात को छिपाती नहीं है बल्कि वह अपने परिवारजनों या सहेलियों के बीच अपने मन की बात को रखकर अपना मन हल्का कर लेती है। वे किसी भी बात को बेधड़क और बेहिचक कह देती है। अपमान का घूंट पीकर वह मन ही मन घुटती नहीं रहती बल्कि परिवारजनों या सहेली के मध्य अपनी बातों को रखकर उसका समाधान खोज निकालती हैं।
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक डा॰ स्मिथ राउत के अनुसार चंचलता के कारण शरीर में कुछ विशेष प्रकार के हारमोनों का स्राव होता रहता है जिससे शारीरिक एवं मानसिक विकास में सहायता मिलती है। चंचल बालक या बालिका का उचित मानसिक एवं शारीरिक विकास होता है। साथ ही उनमें सोचने-विचारने की क्षमता भी बढ़ती है। बहिर्मुखी बच्चों में मेधाशक्ति बढ़ती है, साथ ही उनकी स्मरण शक्ति में भी विकास होता है। वृद्धावस्था में इन्हें ’अल्जाइमर्स‘ और स्मरणहीनता की बीमारी जैसी व्याधि का भी सामना नहीं करना पड़ता।
महिला रोग विशेषज्ञ के अनुसार बहिर्मुखी महिलाओं को ल्यूकोरिया, रक्तप्रदर, मासिककाल के कष्टों, गर्भधारण संबंधी जटिलताओं, प्रसव संबंधी जटिलताओं आदि का सामना प्रायः कम ही करना होता है जबकि अन्तर्मुखी महिलाओं को उक्त व्याधियों का सामना अधिकतर करना होता है। अन्तर्मुखी महिलाओं को दांपत्य सुख की कमी का भी सामना करना पड़ता है।
बाल्यकाल की अन्तर्मुखी प्रवृत्ति के कारण लड़की का शारीरिक विकास उचितानुसार नहीं हो पाता। स्तनों का अविकसित रह जाना, चेहरे की चमक का नष्ट हो जाना, हमेशा सुस्ती बने रहना तथा सेक्स के प्रति अरूचि का भाव उत्पन होने लगता है जबकि बहिर्मुखी बालिका का अवस्थानुसार शरीर छरहरा, चेहरे पर चमक, स्तनों में उचित उभार, चुस्ती आदि बनी रहती हैं। वह प्रेमभाव को समझती है तथा तन एवं मन से हमेशा अपने जीवन साथी को खुश रखने का प्रयतन करती है।
बाल्यावस्था में बच्चे की अपेक्षा बच्चियों के व्यवहार पर माता-पिता द्वारा अधिक अंकुश लगाया जाता है। बात-बात पर डांटना या हिदायत देते रहने से बच्ची अन्तर्मुखी होने लगती है और आजीवन कष्टों को झेलती है। जिन बच्चियों पर बेवजह अंकुश नहीं लगाया जाता, वे चंचलमुखी होती हैं। मित्रों के साथ घूमना, मस्ती करना, पढ़ाई करना आदि में बाधा पहुंचाने से बच्ची अन्तर्मुखी बन जाती है तथा घर में भी वह सबसे कटी-कटी रहती हैं अतएव बच्चियों पर अधिक अंकुश लगाना हानिकारक हो सकता है।